लखनऊ:पिछले साल कोरोना की पहली लहर में सरकार ने राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लगा दिया था. पहली बार भारतीय रेल भी एक माह से ज्यादा समय के लिए बंद की गई. बसों के संचालन पर भी पाबंदी लगा दी गई, वहीं इस बार दूसरी लहर में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन तो नहीं लगाया गया है. राज्यों ने अपनी सुविधानुसार लॉकडाउन लगाया है, लेकिन लोगों की दिनचर्या पर इस बार भी बड़ा असर पड़ा है. काम-धंधा बंद होने से लोगों का रोजगार चौपट हुआ है तो तमाम लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ गया है. अन्तर्राजीय बस सेवाओं का संचालन न होने और ट्रेनों की संख्या काफी कम होने के चलते लोगों को आवागमन में भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन पर यात्रियों को हो रही दिक्कतों के साथ ही यहां पर स्टॉल लगाकर आजीविका चलाने वाले लोगों से 'ईटीवी भारत' ने बात की. ये जानने का प्रयास किया कि कोरोना काल में वे किन-किन तरह की कठिनाइयों से जूझ रहे हैं. उन्होंने 'ईटीवी भारत' के समक्ष अपनी बात रखी.
पैक्ड खाद्य सामग्री ही यात्रियों का सहारा
नई दिल्ली से असम के डिब्रूगढ़ जाने के लिए लखनऊ होते हुए ट्रेन चारबाग रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म संख्या 1 पर ठहरती है. जैसे ही ट्रेन में यात्रा कर रहे यात्री यहां पर खाने-पीने की सामग्री का स्टॉल देखते हैं तो उसकी ओर दौड़ पड़ते हैं. वजह है कि इन दिनों कई राज्यों में लॉकडाउन के चलते तमाम तरह के प्रतिबंध लगे हुए हैं, जिससे यात्रियों को खाने-पीने की सामग्री उपलब्ध नहीं हो पा रही है. ट्रेन से सफर करने वाले यात्रियों से बात की गई तो उनका कहना था कि ट्रेन के अंदर पानी बगैरह तो मिल जाता है लेकिन अभी खाने-पीने की सामग्री नहीं मिल रही है. इससे दिक्कत हो रही है.
दिल्ली में छूटी जॉब तो चल दिए छपरा अपने घर
इसी ट्रेन से बिहार के छपरा निवासी पवन कुमार भी यात्रा कर रहे हैं. वह दिल्ली से वापस अपने घर छपरा जा रहे हैं. दिल्ली में कोरोना का संक्रमण ज्यादा होने की वजह से संपूर्ण लॉकडाउन लगा दिया गया है. ऐसे में जहां वे जॉब करते हैं वहां इन दिनों आने के लिए मना कर दिया गया है. पवन के सामने जॉब का संकट खड़ा हो गया. लिहाजा, कोई और रास्ता न देख उन्होंने घर की तरफ ही वापस होना मुनासिब समझा. 'ईटीवी भारत' से बातचीत में वे बताते हैं कि दिल्ली में रहकर पढ़ाई और जॉब दोनों करते हैं, लेकिन संपूर्ण लॉकडाउन लगा है तो जॉब नहीं चल रही है. इसलिए दिक्कत हो गई तो अपने घर वापस छपरा जा रहे हैं. अब जब दिल्ली में लॉकडाउन हटेगा तो फिर से आजीविका के लिए जाने के बारे में सोचेंगे. वहीं यात्रा में भोजन या खाद्य सामग्री उपलब्ध होने के सवाल पर पवन का कहना है कि स्टेशन के स्टॉल पर पैक्ड सामग्री मिल जाए, यही बहुत है.
स्थितियां ठीक होने पर कर सकते हैं आजीविका के लिए ट्राई
नई दिल्ली से असम जा रही इसी ट्रेन से गुवाहाटी में जॉब करने वाले देवेंद्र भी लॉकडाउन के कारण हो रही दिक्कतों के अनुभव 'ईटीवी भारत' से साझा करते हैं. देवेंद्र का कहना है कि सरकार ने जो भी कदम उठाए हैं वह बहुत जरूरी हैं. हम सभी को सरकार का सहयोग करना चाहिए. जहां तक बात आजीविका की है तो एक-दो माह में सब कुछ सही हो जाएगा तो फिर से आजीविका के लिए हम ट्राई कर सकते हैं. यात्रा के लिए ट्रेन में पहले ही रिजर्वेशन करा लिया था. इसलिए कोई दिक्कत नहीं हुई. हां, खाने-पीने की दिक्कत जरूर हो रही है. चाय वगैरह नहीं मिल पा रही है, लेकिन रेडी टू ईट सामग्री उपलब्ध है तो उतनी दिक्कत नहीं हो रही है.
डेढ़ घण्टे करना पड़ा बस का इंतजार
प्रतापगढ़ निवासी सूरज शिवाकांत तिवारी गुजरात के अहमदाबाद जा रहे हैं. प्रतापगढ़ से लखनऊ उन्हें बस से आना था और यहां से अहमदाबाद के लिए ट्रेन पकड़नी थी. वे बताते हैं कि प्रतापगढ़ में डेढ़ घंटे तक बस का इंतजार करना पड़ा तब जाकर बस मिली और लखनऊ पहुंचे. उनका कहना है कि अहमदाबाद में ही काफी दिनों से अपना बिजनेस करते हैं. उनका कहना है कि तकलीफ तो काफी ज्यादा बढ़ गई है क्योंकि जिन्हें अभी तक ₹20 हजार सैलरी मिलती थी उन्हें अब आठ या ₹10 हजार ही सैलरी दी जा रही है. ऐसे में अगर उनका अपना घर है तब तो काम चल जाएगा, लेकिन भाड़े पर रहते हैं तो फिर काम नहीं चल पाएगा. कुछ बचेगा ही नहीं. कोरोना के कारण काफी समस्या बढ़ गई है.