लखनऊ. प्रदेश में सड़क हादसों की बाढ़ सी आई हुई है. दर्जनों लोग रोज सड़क दुर्घटनाओं (road accidents) में असमय ही मारे जाते हैं. यह सिलसिला बदस्तूर जारी है. सरकारी स्तर पर भी दुर्घटनाएं रोकने के लिए गंभीर प्रयासों की बजाए रस्मअदायगी ही की जाती है. आंकड़े बताते हैं कि हादसों में इतने लोग हर साल मारे जाते हैं, जितने युद्ध और दैवीय आपदाओं में भी नहीं मारे जाते. 2021 में देशभर में लगभग डेढ़ लाख लोग सड़क हादसों के शिकार हुए. यानी लगभग सवा चार सौ लोग रोज हादसों में मारे जाते हैं. यही नहीं इन हादसों में लगभग पौने चार लाख लोग इन घटनाओं में घायल भी होते हैं, पर मजाल है कि हमारा तंत्र जागा हो. सरकार की संवेदना सिर्फ मुआवजा देने तक ही दिखाई देती है.
पिछले माह ही प्रदेश की राजधानी लखनऊ और कानपुर में ट्रैक्टर ट्रॉली से हुए सिर्फ दो सड़क हादसों में 36 लोगों की मौत हुई, जबकि 50 से ज्यादा लोग घायल हुए. इसी दौरान कासगंज और लखीमपुर में भी ट्रैक्टर ट्रॉली से होने वाले हादसों में कई दर्जन लोग घायल हुए, तो कुछ मौतें भी हुईं. प्रदेश में ट्रैक्टर ट्रॉली से सवारियां ढोना गैरकानूनी है, पर यह होता खुलेआम है. सालभर नियम-कानून की धज्जियां उड़ाकर ट्रैक्टर ट्राॅलियां सड़कों पर सवारियां ढोती हैं या फिर इनका व्यावसायिक उपयोग किया जाता है. यूं तो दोनों ही काम गैर कानूनी हैं, फिर भी यह होता बिना रोकटोक के है. नुक्कड़ों, गलियों और चौराहों पर मुस्तैद योगी की पुलिस क्यों नहीं इन ट्रॉलियों को रोक पाती? अमूमन सभी ट्रैक्टर ट्रॉलियों में बैक लाइट नहीं होती. यही कारण है कि सड़कों पर पीछे से रफ्तार में आ रही गाड़ियों को यह दिखाई नहीं देतीं और हादसा हो जाता है. कई हाईवे ऐसे हैं, जहां पर ट्रैक्टर ट्राॅलियों में ईंटों की मंडियां सजती हैं, तो कई जगह बालू और मौरंग ढोई जाती है. यह कारोबार करने वाले पुलिस को खुश रखते हैं. यही कारण है कि इनका कारोबार बिना रोकटोक चलता है. पुलिस इन्हें कुछ नहीं कहती चाहे जितनी जानें चली जाएं.
राजमार्ग हों या शहरों और कस्बों की सड़कें, छुट्टा जानवर कब मौत का पैगाम लेकर सामने आ जाएं, किसी को नहीं मालूम. हाल ही में बने बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे पर तो सैकड़ों छुट्टा पशुओं का रेला चलता है. आपकी यात्रा सकुशल संपन्न हो जाए तो खुद को भाग्यशाली समझिए. अन्य राजमार्गों पर भी कमोबेश यही स्थिति है. यह मुद्दा हालिया विधान सभा के चुनावों में जोरशोर से उठा था, पर मजाल है कि सरकार ने इस दिशा में कोई प्रभावी कदम उठाया हो. यह बात सही है कि समस्या बड़ी है, लेकिन इसीलिए तो सूबे की जनता ने सरकार को पूरा बहुमत देकर भेजा है. यदि सरकार ही हार मान लेगी तो सूबे की समस्याओं का निदान करने कौन आएगा. देश की सबसे बड़ी परीक्षा पास करने आने वाले अधिकारियों और अभियंताओं ने लखनऊ बरेली एनएच 24 पर विकास का ऐसा मॉडल पेश किया है कि जिससे दुनियाभर के लोग हैरत में पड़ जाएं.