लखनऊ : राजधानी में चल रहे पुस्तक मेले में 'लेखक हमारे बीच' कार्यक्रम के अंतर्गत कई वक्ताओं ने अपने विचार रखे. इस दौरान वरिष्ठ आलोचक वीरेंद्र यादव, कथाकार-उपन्यासकार अखिलेश और कवि-आलोचक अनिल त्रिपाठी ने भी इसमें भाग लेते हुए अपने विचार व्यक्त किए.
विचारधारा को निरंतर मांजने की है जरूरत- वीरेन्द्र यादव
वरिष्ठ आलोचक वीरेंद्र यादव ने कहा कि मार्क्स ने कहा था कि हमेशा संदेह की गुंजाइश रहनी चाहिए. उन्होंने कहा कि विचारधारा को निरंतर मांजने की जरूरत है, उसका पुनरावलोकन होना चाहिए. अगर विचारधारा गूढ़ अर्थों में प्रयोग की जाएगी तो वह अवरोध है और अगर वह अद्यतन संदर्भ में स्वयं को परिभाषित करती चलेगी तो वह हमें आगे जाने का रास्ता भी दिखाएगी. उन्होंने कहा कि रामविलास शर्मा द्वारा 'रेणु ' के मूल्यांकन में विचारधारा का अवरोध उत्पन्न हुआ था.
रचना से आलोचना की मुठभेड़ होती है- अखिलेश
साहित्यिक 'तद्भव' पत्रिका के संपादक अखिलेश ने कहा कि एक अच्छा आलोचक वह होता है जो रचना में अदृश्य की भी शिनाख्त कर लेता है. कोई रचना लिखे जाने के बाद अपने रचनाकार से स्वतंत्र भी हो जाती है और उसका पाठ विभिन्न समय के अनुकूल किया जाता है. रचना से आलोचना की मुठभेड़ होती है और कई बार आलोचना की आलोचना से भी.
मैं रचना में रचना के माध्यम से प्रवेश करना चाहता हूं- अनिल त्रिपाठी
कवि और आलोचक अनिल त्रिपाठी ने कहा कि मैं रचना में रचना के माध्यम से प्रवेश करना चाहता हूं. उन्होंने कहा कि आजकल पाठ केंद्रित आलोचना हो रही है. उन्होंने कहा कि रचना की विशिष्टता को रचना के माध्यम से ही रेखांकित करना चाहिए. उन्होंने कहा कि रचना की श्रेष्ठता न ही आलोचना के माध्यम से निर्धारित होती है और न ही उसकी लोकप्रियता से. बल्कि इसकी कसौटी वह जीवनदृष्टि होती है जो उसके भीतर होती है.
संचालन आलोक पराड़कर ने किया
कार्यक्रम का संचालन करते हुए पत्रकार आलोक पराड़कर ने कहा कि कई बार आलोचना रचना को एक नया अर्थ देती है तो कई बार रचना आलोचना का अतिक्रमण भी करती है. मेला के संयोजक मनोज सिंह चंदेल ने वक्ताओं को स्मृति चिह्न प्रदान किए.
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