लखनऊ : रिश्ते नाजायज होते हैं, रिश्तों से आने वाली संतान नाजायज नहीं होती. मगर समाज ऐसे कलंक बच्चे के साथ जोड़ देता है. शायद इसी कारण कभी सड़क किनारे तभी कभी कूड़े में अनचाहे बच्चे के मिलने की खबर आती है. अगर सही समय पर इन बच्चों की जानकारी पुलिस तक पहुंचती है तो बालगृह इन मासूमों का पहला ठिकाना बन जाता है. बालगृह में आने के बाद इन बच्चों की किस्मत कभी-कभी उन्हें गोद लेने वाले नए माता-पिता के घर तक पहुंचा देती है. जिनका कोई सहारा नहीं होता, वे बालगृह में पाले-पोसे जाते हैं. उनके खान-पान, पढ़ाई और हेल्थ की जिम्मेदारी शासन की है. उत्तर प्रदेश बाल संरक्षण आयोग की सदस्य अनीता अग्रवाल अक्सर राजकीय बालगृहों का निरीक्षण करती हैं और ऐसे बच्चों से मिलती हैं. उन्होंने बताया कि बहुत सारे बच्चे आज बाल गृह में ही रहकर पल-बढ़ रहे हैं. बहुत सारे बच्चों को लोग गोद भी ले जाते हैं. ऐसे बच्चे एक अच्छी जिंदगी जीते हैं.
बालगृह में पली बेटी का बसा घर : साल 2001 में एक नवजात बच्ची लखनऊ के बालगृह में उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले से लाई गई थी. हाल ही में अभी की उस बेटी की शादी हुई है. अनीता अग्रवाल ने बताया कि यह बच्ची सोनभद्र के सड़क किनारे कूड़े के ढेर में पड़ी मिली थी. तब किसी ने भी बच्ची की आवाज सुनी , उसने बालगृह को सूचना दी थी. यह बच्ची बाल गृह में ही पली-बढ़ी. उसने 12वीं तक की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास किया. उसकी शादी लखनऊ के लड़के ही से हुई. लड़का एलएलएम कर रहा था. उसकी जिंदगी आज काफी खुशहाल है. इसी तरह से बहुत सारी बच्चियों की जिंदगी सेटल हुई हैं.
बच्चे को पता नहीं चला कि वह दत्तक पुत्र है : साल 1998 में पुराने लखनऊ के सड़क किनारे कोई बच्चे को छोड़ गया था. बच्चा बालगृह में बहुत बुरी स्थिति में लाया गया था. डॉक्टरों की मशक्कत के बाद बच्चे की जान बचाई गई. कुछ ही दिनों में एक दंपत्ति ने उस बच्चे को गोद लिया. बालगृह के सदस्य अक्सर उससे मिलने जाया करते थे. बच्चा पला बढ़ा. अनीता अग्रवाल ने बताया कि एजुकेशन कंप्लीट करने के बाद वह बच्चा बेहतर मुकाम पर है. उसके घरवाले उसके लिए रिश्ता ढूंढ रहे हैं. उसे गोद लेने वाले पैरेंटस ने उसे इतना प्यार दिया कि आज भी बच्चे को पता नहीं है कि वह उनका दत्तक पुत्र है.