हैदराबाद: पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2017 में सूबे में कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करने के मुद्दे को भाजपा ने जोर-शोर से उठाया था. साथ ही इस मुद्दे को पार्टी ने अपने घोषणापत्र में भी शामिल किया था. जिसके परिणामस्वरूप पार्टी को यहां अपार जनसमर्थन के साथ ही रिकॉर्ड वोटों से 312 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. हालांकि, सूबे के हर चुनाव में कानून-व्यवस्था एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनता रहा है. चाहे वो मायवती की सरकार रही हो या अखिलेश की, हर चुनाव में कानून-व्यवस्था पर सरकारें घिरती रही हैं.
वहीं, 2017 में यूपी में भाजपा की सरकार बनने के बाद शपथ के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एलान किया था कि अपराधी या तो अपराध छोड़ दे या फिर उत्तर प्रदेश को छोड़ दे वरना उन्हें सही जगह पहुंचा दिया जाएगा. यानी उनका इशारा अपराधियों को जेल भेजने की ओर था.
2017 में चुनाव के दौरान भाजपा के घोषणापत्र और चुनावी प्रचार में भी गुंडा राज और भ्रष्टाचार को खत्म करने के मुद्दे प्रमुख से उठाया था. वहीं, महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध पर लगाम लगाने को मुख्यमंत्री ने एंटी रोमियो स्वायड का गठन किया. ताकि सूबे की बिगड़ी छवि को बेहतर बनाया जा सके.
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इधर, मुख्यमंत्री की छूट की आड़ में पुलिसवालों ने जमकर 'ठोकों नीति' के तहत अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की. लेकिन कुछ मामलों पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में रही और इसका असर सूबे की सरकार पर भी पड़ा. चाहे कासगंज में अल्ताफ का मामला हो, आगरा में सफाईकर्मी अमित वाल्मीकि का मामला हो, सीएम सिटी गोरखपुर में कानपुर के कारोबारी मनीष गुप्ता की हत्या का मामला या फिर राजधानी लखनऊ में विवेक तिवारी की हत्या की मामला हो.