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एसजीपीआई में अमाशय के कैंसर का लेप्रोस्कोपिक विधि से हुआ ऑपरेशन - लखनऊ में लेप्रोस्कोपिक विधि से ऑपरेशन

यूपी के लखनऊ में एसजीपीजीआई में अमाशय के कैंसर का लेप्रोस्कोपिक विधि से ऑपरेशन किया गया. इस ऑपरेशन में मरीज को जहां कम रक्त स्राव हुआ. वहीं मरीज स्वस्थ भी जल्द होगा. डॉक्टरों का कहना है कि पहले इस तरह के ऑपरेशन में 20 से 20 सेमी. का चीरा लगता था.

एसजीपीआई में अमाशय के कैंसर का लेप्रोस्कोपिक विधि से हुआ ऑपरेशन
एसजीपीआई में अमाशय के कैंसर का लेप्रोस्कोपिक विधि से हुआ ऑपरेशन

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Published : Mar 22, 2021, 10:29 PM IST

लखनऊ: एसजीपीजीआई में अमाशय के कैंसर का लेप्रोस्कोपिक विधि से सफल ऑपरेशन किया गया. ऐसे में मरीज में जहां कम रक्त स्राव हुआ. वहीं रिकवरी भी फास्ट होगी. अभी तक यहां डॉक्टर बड़ा चीरा (ओपेन सर्जरी) लगाकर मरीज का ऑपरेशन करते थे.

लेप्रोस्कोप से जल्दी स्वस्थ हो जाता है मरीज
पीजीआई के गैस्ट्रो सर्जरी विभाग ने आमाशय कैंसर की सर्जरी में लेप्रोस्कोपिक सर्जरी की तकनीक स्थापित करने में सफलता हासिल की है. अभी तक आमाशय में कैंसर होने पर फिलहाल ओपेन सर्जरी ही की जाती रही है, लेकिन अब यह सर्जरी लेप्रोस्कोप से भी संभव हो गई है. इस तकनीक से सर्जरी करने में मरीज को बहुत ही जल्दी स्वस्थ्य हो जाता है. साथ ही संक्रमण की आशंका भी कम होती है. वहीं इलाज का खर्च भी घट जाता है. विभाग के प्रो. अशोक कुमार (सेकेंड) ने इस सर्जरी को एनेस्थीसिया विभाग के डॉ. सुजीत गौतम, डॉ. सुरुचि के साथ स्थापित किया. ऑपरेशन टीम में डॉ. सोमनाथ, डॉ. किरन, डॉ. चंदन शामिल रहे.

पहले 20 से 25 सेमी लगता था चीरा
प्रो. अशोक के मुताबिक ओपेन विधि से 20-25 सेंटीमीटर चीरा मरीज के लगाया जाता था. वहीं लेप्रोस्कोपिक विधि से 'की होल' कर सर्जरी की जाती है. इससे अंदर के अंगों में इंजरी व ब्लड लॉस कम हो जाता है. इसकी वजह से ऑपरेशन के बाद दर्द भी कम होता है. घाव कम होने से मरीज की हॉस्पिटल्स से जल्द छुट्टी मिल जाती है.

ऐसे की सर्जरी
डॉ. अशोक के मुताबिक प्रतापगढ़ निवासी प्रदीप सिंह आमाशय कैंसर से ग्रस्त थे. कैंसर के कारण वह खाना नहीं खा पा रहे थे, जिसके कारण वह कुपोषण के शिकार हो गए. उनके शरीर में तमाम आवश्यक तत्वों की कमी हो गई थी. इलाज कर पहले उनमें आवश्यक तत्वों की कमी पूरी की गई. कैंसर आमाशय के मुंह पर था, जिसके लिए छोटा होल बना कर अंदर खाने की नली और आमाशय को अलग किया गया. आमाशय के 75 फीसद हिस्से को निकाल दिया गया। साथ ही आमाशय के आस पास की नसों, ग्रंथियों को भी निकाला गया. बचे हुए 25 फीसद आमाशय को छोटी आंत से जोड़ दिया जिससे आमाशय की कमी भी पूरी हो गई.

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