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बसपा काल में करोड़ों की लागत से बने स्मारकों पर पर्यटकों का टोटा, योगी सरकार नहीं दे रही ध्यान

यूपी में बसपा के शासन काल में लगभग 5 हजार करोड़ रुपये खर्च करके स्मारक स्थल बनाए गए थे. इन स्मारकों की देखभाल के लिए लगभग 5300 सरकारी कर्मचारी भर्ती किए गए थे. मौजूदा समय में इन स्मारकों का आलम ये है कि यहां पर कार्यरत कर्मचारियों से भी कम संख्या में पर्यटक आते हैं. यहां पर तैनात कर्मचारियों की कई समस्याएं हैं जिनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं है, पूरी रिपोर्ट पढ़िए...

बसपा काल में करोड़ों की लागत से बने स्मारकों पर पर्यटकों का टोटा
बसपा काल में करोड़ों की लागत से बने स्मारकों पर पर्यटकों का टोटा

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Published : Jun 29, 2022, 7:55 PM IST

लखनऊ : बसपा के शासन काल से स्मारकों में कुल 5300 कर्मचारी काम कर रहे हैं, लेकिन अधिकांश दिनों में इन स्मारकों में आने वाले लोगों की संख्या यहां तैनात कर्मचारियों की संख्या से कम हो जाती है. लखनऊ और नोएडा में स्थित 7 स्मारकों में कई बार ऐसा समय भी आता है जब स्मारकों के 5300 टिकट भी नहीं बिकते हैं. इन स्मारकों में कार्यरत कर्मचारियों को अनेक बार दूसरे विभागों में समायोजित करने के प्रस्ताव बने, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला.

बसपा काल में बनाए गए इन स्मारकों पर न तो छाया सन्नाटा खतम हो रहा है और न ही यहां दर्शकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है. इन स्मारकों को बनाने के लिए करीब 5 हजार करोड़ रुपये का खर्च हुआ था. यहां के कर्मचारियों को अब तक छठे वेतनमान की ही तनख्वाह दी जा रही है. स्मारकों में कार्यरत कर्मचारियों को सातवां वेतनमान न मिलने का अभी भी इंतजार है. इन कर्मचारियों का कहना है कि सरकार चाहे तो भले ही उनको दूसरे विभागों में समायोजित कर दे. लेकिन उनको सामान्य सरकारी कर्मचारी जैसी सुविधाएं दी जाएं.

बसपा की सरकार में बनाए गए स्मारकों पर पसरा सन्नाटा

स्मारकों में भले ही कर्मचारियों की खासी तादाद हो, लेकिन सुविधाओं के नाम पर उनका जमकर शोषण हो रहा है. ना नेशनल पेंशन स्कीम के दायरे में यह कर्मचारी आ रहे हैं और ना ही इनको मेडिक्लेम जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं. सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद इन पर मृतक आश्रित की व्यवस्था भी लागू नहीं की जा रही है. इन कर्मचारियों के उत्थान के लिए 80 करोड़ का बजट इनके पुनरीक्षित वेतनमान के तौर पर शासन ने करीब 3 साल पहले जारी किया था. मगर, वेतन बढ़ोतरी का शासनादेश ना होने की वजह से यह बजट हर साल वापस चला जाता है.

डॉ. भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल गोमती नगर में कार्यरत कर्मचारी शशिकांत ने बताया कि रिवाइज वेतन को लागू करने के साथ ही अन्य सुविधाएं दी जानी चाहिए. अगर इन सुविधाओं को देने के लिए इन कर्मचारियों को दूसरे ऐसे विभाग, जहां कर्मचारियों की कमी है. वहां समायोजित किया जा सकता है, तो हम उसके लिए तैयार हैं. लेकिन महंगाई के इस दौर में कम से कम सातवां वेतन आयोग तो हमें मिलना ही चाहिए. एक अन्य कर्मचारी लाल बहादुर चौहान का कहना है कि सातवां वेतन आयोग न मिलने की वजह से ज्यादातर फोर्थ क्लास के कर्मचारियों को तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है. ये कर्मचारी किराए का कमरा लेकर लखनऊ में रहते हैं. स्मारक संरक्षण समिति की जनसंपर्क अधिकारी भावना सिंह ने बताया कि समय-समय पर कर्मचारियों की जो मांगे हैं उनको बोर्ड मीटिंग से पास कराकर शासन को प्रेषित किया जाता है. कई समस्याओं का समाधान हुआ भी है और अनेक समस्याओं के समाधान के लिए कोशिश जारी है.

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