लखनऊ : प्रदेश के कई जिलों के सरकारी अस्पतालों में होने वाली मूलभूत व्यवस्थाएं भी नहीं हैं. ऐसे में प्रदेश के कई जिले ऐसे हैं जहां पर अल्ट्रासाउंड व्यवस्था बेपटरी चल रही है. मरीज अस्पताल तो जाता है, लेकिन उसे बेहतर चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती है. एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक भटकना पड़ता है. प्रदेश के अन्य जिलों से भी मरीज राजधानी इलाज के लिए आते हैं, जिसके चलते अस्पतालों में काफी भीड़ रहती है. हालत यह है कि जिला अस्पतालों में मशीनें होने के बाद भी मरीजों की जांच नहीं हो पा रही है. कहीं रेडियोलॉजिस्ट नहीं हैं तो कहीं मशीनें खराब हैं. सिर्फ पीपीपी मॉडल वाले केंद्रों पर ही जांच रिपोर्ट मिल रही है. कई जिलों के महिला अस्पताल में भी अल्ट्रासाउंड की सुविधा नहीं है. ऐसे में मरीज परेशान होते हैं.
राजधानी के सिविल अस्पताल में महज दो रेडियोलॉजिस्ट हैं और यहां पर इलाज के लिए प्रदेश के अन्य जिले से भी मरीज आते हैं. आलम यह होता है कि एक से चार महीने की तिथि अल्ट्रासाउंड के लिए मिलती है. ऐसे में कई मरीज जिन्हें स्टोन या अपेंडिक्स की शिकायत होती है वह दर्द से परेशान रहते हैं या फिर निजी अस्पताल का सहारा लेते हैं. इसके अलावा राजधानी के महिला अस्पतालों में भी गर्भवती महिलाओं को भी लंबी तिथि अल्ट्रासाउंड के लिए मिलती है. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, विभाग में 695 अल्ट्रासाउंड मशीनें हैं. ये जिला अस्पताल से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों तक लगाई गई हैं, लेकिन हर अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट नहीं हैं. प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग में इन दिनों करीब 37 रेडियोलॉजिस्ट हैं. ऐसे में एक रेडियोलॉजिस्ट को दो से तीन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की जिम्मेदारी दी गई है. वे दो-दो दिन अलग-अलग सीएचसी पर सेवाएं दे रहे हैं. उदाहरण के तौर पर शामली के सरकारी अस्पताल में जांच सुविधा न होने से लोगों को दूसरे अस्पताल जाना पड़ता है. इसी तरह मुजफ्फरनगर, अमरोहा, मुरादाबाद, संतकबीरनगर, चित्रकूट, मऊ आदि जिलों में मशीनें हैं, लेकिन संचालन नहीं हो रहा है. महराजगंज, बांदा, मऊ आदि जिलों में कहीं सप्ताह में दो दिन तो किसी सीएचसी पर एक दिन जांच की सुविधा दी जा रही है.