लखनऊ: आयुर्वेद डॉक्टरों को सर्जरी का अधिकार दिए जाने का एलोपैथी चिकित्सक विरोध कर रहे हैं. एलोपैथी डॉक्टरों का कहना है कि बिना उचित शिक्षण और ट्रेनिंग के की गई सर्जरी से चिकित्सा की गुणवत्ता प्रभावित होगी. इससे मरीजों की जान को भी खतरा रहेगा, जबकि आयुर्वेद और यूनानी डॉक्टर सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडिया मेडिसिन के नोटिफिकेशन को जायज ठहरा रहे हैं. आइए जानते हैं आयुर्वेद चिकित्सकों व एलोपैथ डॉक्टरों के दो भागों में बंटने की वजह.
सरकार ने जारी किया नोटिफिकेशन
केंद्र सरकार 7 नवंबर 2016 को सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडिया मेडिसिन का नोटिफिकेशन कर चुकी है. इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयुर्वेद की पहचान तो बनेगी ही, साथ ही आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को भी बढ़ावा मिलेगा. यही वजह है कि केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर आयुर्वेद अध्ययन के पाठ्यक्रम में संशोधन कर भारतीय चिकित्सा परिषद संशोधन विनियम 2020 जारी कर आयुर्वेद चिकित्सकों को भी एलोपैथी चिकित्सकों के समान सर्जरी करने का अधिकार दिया है.
यहां जानिए पूरा मामला
दरअसल आयुर्वेद, योगा, नेचुरोपैथी, यूनानी, सिद्धा, होम्योपैथी को मिलाकर आयुष कहते हैं. इन पद्धतियों की वैधानिक संस्था सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन होती है. वहीं सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन की ओर से 20 नवंबर को एक अधिसूचना जारी की गई, जिसमें कहा गया है कि आयुर्वेद के डॉक्टर भी अब जनरल ऑर्थोपेडिक सर्जरी के साथ आंख, नाक, कान और गले की भी सर्जरी करेंगे.
गौरतलब है कि भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद अधिनियम 2016 में संशोधन किया गया है. इसमें बीएएमएस आयुर्वेद डॉक्टर स्नातक यूजी डिग्री के बाद आयुर्वेद में 3 वर्षीय स्नातकोतर पीजी डिग्री आयुर्वेद एमएस शल्य व शालाक्य, स्त्री रोग और प्रसूति तंत्र होंगे, वही सर्जरी कर सकेंगे. इसके तहत अधिकार के साथ शिक्षण व्यवस्था में भी बदलाव किए जाएंगे. पाठ्यक्रम में सर्जिकल प्रक्रिया के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल को भी जोड़ा गया है.
एलोपैथ में सर्जरी की यह व्यवस्था