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यूपी में स्थाई DGP के लिए राह हुई आसान, जानिए कौन है कमजोर व मजबूत दावेदार!

यूपी में मौजूदा कार्यवाहक डीजीपी का रिटायमेंट जनवरी माह में होना है, ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार इस बार आयोग को डीजीपी पद के लिए नामों का पैनल और प्रस्ताव भेज सकती है. आइये जानते हैं कि कौन कौन अधिकारी डीजीपी की रेस में खड़ा है?

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 7, 2023, 6:56 PM IST

Updated : Dec 7, 2023, 7:02 PM IST

लखनऊ : यूपी में कार्यवाहक डीजीपी की हैट्रिक होने के बाद नए साल में क्या यूपी को दो वर्ष बाद स्थाई डीजीपी मिलेगा? शायद इसका जवाब हां में हो सकता है, क्योंकि स्थाई डीजीपी मिलने में सबसे बड़ा पेंच जिस नाम पर है वह अधिकारी फरवरी में रिटायर हो जायेगा और मौजूदा कार्यवाहक डीजीपी का रिटायमेंट जनवरी माह में होना है. ऐसे में सरकार इस बार आयोग को डीजीपी पद के लिए नामों का पैनल और प्रस्ताव भेज सकती है. आइए जानते हैं कि इस बार स्थाई डीजीपी बनने की राह कैसे होगी आसान और कौन कौन अधिकारी रेस में खड़ा है?


क्यों नहीं मिल पा रहा है स्थाई DGP


11 मई 2022 को तत्कालीन डीजीपी मुकुल गोयल को सरकार ने यह कह कर पद से हटा दिया था कि उन्होंने शासकीय कार्यों की अवहेलना की और विभागीय कार्यों में रुचि नहीं ले रहे थे. सरकार ने डीएस चौहान को कार्यवाहक डीजीपी बना नए डीजीपी के लिए यूपीएससी को प्रस्ताव भेजा, लेकिन आयोग ने बैरंग उस प्रस्ताव को वापस भेजते हुए सरकार से मुकुल गोयल को पद मुक्त करने का ठोस कारण पूछ लिया था. उसके बाद से अब तक सरकार ने आयोग बिना प्रस्ताव भेजे ही कार्यवाहक डीजीपी नियुक्ति करती रही. सूत्र बताते हैं कि सरकार भलीभांति जानती थी, कि यदि डीएस चौहान के रिटायरमेंट के बाद अगर फिर से आयोग को पैनल और प्रस्ताव भेजा जाता है तो एक बार फिर उससे मुकुल गोयल को हटाए जाने पर जवाब तलब किया जा सकता है. लिहाजा सरकार ने पहले डीएस चौहान फिर आरके विश्वकर्मा और विजय कुमार को कार्यवाहक डीजीपी बना दिया.

ऐसे मिलेगा स्थाई डीजीपी

ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि क्या इस बार यूपी को स्थाई डीजीपी मिल सकेगा. इसे जानने के लिए सबसे पहले यह जानना होगा कि स्थाई डीजीपी न बन पाने और आयोग व सरकार के बीच विवाद क्या है और वह इस बार जनवरी में कैसे खत्म हो सकता है. दरअसल, 11 मई 2022 को पदमुक्त किए गए तत्कालीन डीजीपी मुकुल गोयल जोकि वर्ष 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं उन्हें सरकार ने अचानक शासकीय कार्यों की अवहेलना का आरोप लगा कर हटा दिया था. इसके बाद नए डीजीपी के लिए आयोग को प्रस्ताव भेजा और आयोग ने मुकुल गोयल को हटाने का मुख्य कारण पूछ लिया. सूत्रों के मुताबिक सरकार को मालूम था कि यदि फिर से प्रस्ताव भेजा गया तो मुकुल गोयल पर फिर से सुई अटक जाएगी. ऐसे में सरकार मुकुल गोयल के रिटायरमेंट का इंतजार करते हुए कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति करती रही. अब अगले वर्ष फरवरी में मुकुल गोयल रिटायर हो रहे हैं ऐसे में वो डीजीपी की रेस से बाहर हो गए हैं. इस वजह सरकार आयोग को आसानी प्रस्ताव भेज देगी और इसमें मुकुल गोयल का पेंच भी नहीं फंसेगा.

कौन-कौन है डीजीपी पद की रेस में शामिल

अब यह जानना रोचक है कि लगभग दो वर्षों बाद यूपी को मिलने वाला स्थाई डीजीपी कौन होगा? दरअसल, जनवरी में मौजूदा डीजीपी विजय कुमार के रिटायरमेंट होने के बाद पांच आईपीएस अफसर डीजीपी पद के लिए प्रबल दावेदार हैं. इन दावेदारों में से तीन ऐसे आईपीएस अधिकारी हैं जो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर तैनात हैं. वर्ष 1989 बैच के आईपीएस शफी अहसान रिजवी केंद्र में तैनात हैं. दूसरा नाम इसी बैच के आशीष गुप्ता है, जो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से यूपी वापस आए तो उन्हें छह माह तक मुख्यालय से अटैच करने के बाद साइड पोस्टिंग पर भेज दिया गया. तीसरे दावेदार है आदित्य मिश्रा का, जो हालही में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर गए हैं. लंबे समय तक मुख्यालय में अहम पदों पर तैनात रहे हैं. चौथा नाम योगी सरकार में लंबे समय तक एडीजी कानून व्यवस्था रहे पीवी रामाशास्त्री का है, जो वर्तमान में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं. पांचवा नाम डीजी सीबीसीआईडी आनंद कुमार व छठा नाम वर्तमान में स्पेशल डीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार का है.


छह दावेदारों में किसकी है मजबूती और कौन पड़ रहा कमजोर

यूपी का स्थाई डीजीपी के लिए छह नाम दावेदारी की लिस्ट में सबसे ऊपर है, हालांकि कुछ ऐसे नाम है, जिनकी दावेदारी कमजोर पड़ रही है. पहले दावेदार 1989 बैच के शफी अहसान रिजवी है, जो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं और यूपी लौटने पर उनका कोई भी विचार नहीं है. दूसरा नाम 1989 बैच के ही आशीष गुप्ता का है. यह आठ माह पहले केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस आए, लेकिन इन्हें योगी सरकार ने छह माह बाद पोस्टिंग दी वह भी उन्हें साइड पोस्टिंग देते हुए डीजी रूल एंड मेन्यू बनाया गया. ऐसे में उन्हें डीजीपी बनाया जाए इसकी कम ही संभावना है. तीसरे नम्बर पर आदित्य मिश्रा का है, जिनकी दावेदारी कमजोर पड़ रही है. इसके पीछे का कारण सरकार का उन पर कम भरोसा होना है. उन्हें योगी सरकार में एडीजी लॉ एंड ऑर्डर बनाया गया, लेकिन उनके कार्य से सरकार खुश नहीं थी. मजबूत दावेदारों में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर अहम पद पर तैनात पीवी रामाशास्त्री हैं, जो योगी सरकार में लंबे समय तक एडीजी (लॉ ऐंड ऑर्डर) और बाद में विजिलेंस निदेशक के पद पर रहे हैं, इसके बाद वर्तमान में डीजी सीबीसीआईडी आनंद कुमार का नाम आता है जिनसे कुछ माह पहले ही योगी सरकार की नाराजगी दिखी थी जब उनके कंधों पर यूपी जेल की जिम्मेदारी थी और वहां माफिया की अवैध मुलाकातें हो रही थी. मार्च 2023 को सरकार ने उन्हें जेल विभाग से हटाकर साइड लाइन कर दिया लेकिन करीब सात माह बाद योगी सरकार ने दोबारा आनंद कुमार को बड़ी जिम्मेदारी देते हुए सीबीसीआईडी की बागडोर सौंप दी ऐसे में आनंद कुमार भी एक बार फिर डीजीपी की रेस में अग्रिम पंक्ति में खड़े हो गए. वहीं स्पेशल डीजी प्रशांत कुमार की दावेदारी भी मजबूत मानी जा रही है. वह लंबे समय से कानून व्यवस्था संभाल रहे हैं और उसके अलावा ईओडब्ल्यू समेत कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर है.

कैसे होती है DGP की नियुक्ति

किसी भी राज्य के डीजीपी की नियुक्ति के लिए सरकार ऐसे डीजी रैंक के आईपीएस अधिकारियों के नाम संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को भेजती है, जिनका कार्यकाल कम से कम छह महीने का बचा हुआ होता है. आयोग में यूपीएससी के चैयरमैन या यूपीएससी का सदस्य इम्पैनलमेंट कमेटी के अध्यक्ष होते हैं. उनके अलावा भारत सरकार के गृह सचिव या विशेष सचिव, राज्य के मुख्यसचिव, वर्तमान डीजीपी व केंद्रीय बल का कोई एक चीफ शामिल होते हैं. आयोग तीन सबसे वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों का एक पैनल राज्य सरकार को भेजता है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, डीजीपी की नियुक्ति कम से कम दो वर्ष के लिए होती है. डीजीपी को हटाने की प्रक्रिया सर्विस रूल्स के उल्लंघन या क्रिमिनल केस में कोर्ट का फैसला आने, भ्रष्टाचार साबित होने पर शुरू होती है या डीजीपी को तब हटाया जा सकता है जब वह अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो.

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Last Updated : Dec 7, 2023, 7:02 PM IST

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