लखनऊ : महिलाओं को माहवारी या पीरियड्स (Menstrual Cycle) आना एक बायोलॉजिकल प्रोसेस (Biological process) है. हर लड़की के लिए उसकी जिंदगी का ये सबसे अहम हिस्सा है. इसी की वजह से महिलाओं को जननी कहा जाता हैं. लखनऊ के क्वीन मेरी अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रेखा सचान बताती हैं कि जिन लड़कियों को पीरियड आना शुरू होता है, उस समय शरीर में हार्मोन में परिवर्तन होता है. जिसकी वजह से पीरियड्स के शुरुआती दिनों में तकलीफ होती है, लेकिन अगर ये किसी को अधिक तकलीफ होती हैं, तो उसे डॉक्टर से परामर्श लेनी चाहिए.
शुरूआती दिनों में होती है समस्या
डॉ. रेखा बताती हैं कि पीरियड्स के शुरुआती दिनों में पेट दर्द से संबंधित दिक्कतें होती हैं, लेकिन कभी भी इतना ज्यादा दिक्कत या पेट में दर्द नहीं होता कि लड़कियां स्कूल न जा सके या घर का कामकाज न कर सके. इस दौरान हल्का दर्द सभी को होता है, जो नेचुरल है. अगर किसी को असहनीय दर्द हो रहा है, ऐसी समस्याओं को तुरंत डॉक्टर से बताना चाहिए. कभी-कभी लड़कियां इन चीजों को दूसरों से छुपाती हैं. जिसकी वजह से आगे चलकर उन्हें प्रेगनेंसी के दौरान अधिक दिक्कत होती है. नॉर्मल बच्चेदानी में सूजन भी पीरियड्स को बदल देता है. इसलिए जरूरी है कि पीरियड्स को लेकर महिलाओं को जो समस्या है उसे बतानी चाहिए, ताकि सही समय पर इलाज मिल सके.
पीरियड्स के असहनीय दर्द से मिलेगी राहत सामाजिक भ्रांतियों से बचें
डॉ. रेखा ने बताया कि सामाजिक स्तर पर जो भ्रांतियां फैली हुई हैं जैसे- इस्तेमाल किए गए नैपकिन को जलाने से पीरियड के दौरान जो दर्द होता है, वह खत्म हो जाता है. ऐसी भ्रांतियों के चक्कर में बिल्कुल नहीं पड़ना चाहिए. इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा. समस्या होने पर डॉक्टर से परामर्श लें, न कि रूढ़िवादी भ्रांतियां पर विश्वास करें.
अभी भी जागरूकता की जरूरत
डॉ. रेखा ने बताया कि क्वीन मेरी अस्पताल (केजीएमयू) में पीरियड्स के दौरान होने वाली समस्याओं के ऊपर पायलट स्टडी की. जिसके दौरान यह पता चला कि अभी भी महिलाओं में माहवारी को लेकर जागरूकता की कमी है. आज भी ऐसा तबका हमारे समाज में मौजूद है, जो कि रूढ़िवादी परंपराओं और भ्रांतियों पर विश्वास करता है. ऐसे में सिर्फ जागरूकता के बल पर ही लोगों को समझाया व बताया जा सकता है.
क्यों होता है पीरियड (periods) में बदलाव?
डॉ. रेखा बताती हैं कि पीरियड में बदलाव होने की कुछ प्रमुख कारण हैं, जैसे- पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम या पीसीओडी (Polycystic ovary syndrome), हार्मोन असंतुलन, डिस्फंक्शन यूटेराइन बिल्डिंग या डीयूवी (Dysfunctional uterine bleeding), यूटेराइन फायब्रॉइड, एंडोमेट्रियोसिस, अत्यधिक मासिक तनाव, दवाइयों के साइड इफेक्ट बच्चेदानी के मुंह का कैंसर, वजन अधिक या कम होना (थायराइड), गर्भाशय की सूजन, गर्भाशय में रसोली, अंडाशय का ट्यूमर, हाइपोथायरायडिज्म गर्भ निरोधक गोलियों के प्रयोग से पीरियड्स में बदलाव आते हैं.
मासिक पूर्व सिंड्रोम या पीएमएस (Premenstrual Syndrome)
झलकारी बाई अस्पताल की सीएमएस डॉक्टर रंजना बताती हैं कि कुछ लड़कियों को पीरियड्स आने से पहले शरीर में कुछ लक्षण नजर आते हैं. जिसकी वजह से उन्हें यह आभास हो जाता है कि उनका मासिक धर्म आने वाला है. पीएमएस ऐसे लक्षणों का समूह है, जिनकी पीरियड्स से एक-दो सप्ताह पहले शुरू होने की संभावना है. ऐसे में परेशान होने की जरूरत नहीं होती है, क्योंकि पीएमएस पीरियड्स के बाद आना बंद हो जाता है.
पीएमसी के लक्षण
- व्यवहार में चिड़चिड़ापन
- शरीर में दर्द होने की वजह से रुलाई आना
- थकान होना
- पेट के निचले हिस्से में दर्द होना
- घबराहट या बैचेनी होना
- कमर में दर्द होना
सुझाव
- वाटर बैग से पेट की सिकाई करें
- पीरियड्स के दौरान कोई भी दवाई खाने से बचें
- पेट में अधिक दर्द होने पर डॉक्टर से परामर्श लें
- सामाजिक टोना टोटका पर भरोसा कतई न करें
- मूड परिवर्तित करने की कोशिश करें
- पीरियड्स के समय खाली पेट बिल्कुल न रहें
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