लखनऊः यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) के नजदीक आते ही एक बार फिर समाजवादी कुनबे की एक होने चर्चाएं शुरू हो गई हैं. इसका संकेत खुद प्रगतिशील पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह लगातार दे रहे हैं. शिवपाल लगातार समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने की आस लगाए हुए हैं और अपने भतीजे अखिलेश यादव के जवाब का इंतजार कर रहे हैं. आइए जानते हैं मुलायम सिंह यादव के परिवार में बिखराव के मुख्य क्या कारण थे.
जानिए 'समाजवादी कुनबे' में झगड़े की पूरी कहानी. बता दें कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में अलगाव और बिखराव ऐसा हुआ कि पूरे समाजवादी कुनबे में कलह मच गई. विधानसभा चुनाव 2017 से करीब डेढ़ साल पहले मई, जून में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए और शिवपाल सिंह यादव से तकरार शुरू हुई. कोई झुकने को तैयार नहीं हुआ और इसका खामियाजा पूरी समाजवादी पार्टी को भुगतना पड़ा. 'यादव परिवार' की लड़ाई के कारण 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को बड़ा सियासी नुकसान उठाना पड़ा था. अब 2022 के विधानसभा चुनाव में अगर यादव परिवार तमाम सुलह समझौते और कोशिशों के बावजूद अगर एक नहीं हो पाता तो समाजवादी पार्टी को एक बार फिर बड़ा सियासी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
मुलायम सिंह और शिवपाल की फाइल फोटो. 2016 में शुरू हुआ था झगड़ा
राजनीतिक विश्लेषकों और समाजवादी पार्टी के अंदर तमाम नेताओं से बातचीत से पता चलता है कि 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी की सरकार में सबसे ताकतवर कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव के बीच तकरार की शुरुआत हुई थी. तब 2017 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों को आगे बढ़ाने का काम शिवपाल सिंह यादव बढ़ा रहे थे. इसी दौरान जून 2016 में ही समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और सपा सरकार में मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने अफजाल अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय करा दिया. बस यहीं से समाजवादी कुनबे में कड़वाहट शुरू हो गई. यह बात अखिलेश यादव को नागवार गुजरी और अखिलेश यादव ने हस्तक्षेप किया और कौमी एकता दल के विलय को निरस्त कर दिया. इसके बाद से मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव के बीच बातचीत हुई. इसको लेकर अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव से नाराजगी जाहिर की.
अखिलेश, मुलायम सिंह और शिवपाल की फाइल फोटो. मुख्तार को आने से अखिलेश ने रोका था
तब अखिलेश ने कहा था कि पार्टी कार्यकर्ता मेहनत और संघर्ष करेंगे तो किसी दल से गठबंधन या विलय की जरूरत नहीं पड़ेगी. उन्होंने मुख्तार अंसारी की एंट्री पर रोक लगा दी. जिसकी तारीफ भी हुई, लेकिन यह मुलायम और शिवपाल को रास नहीं आया. यही नहीं कौमी एकता दल के विलय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शिवपाल के करीबी मंत्री बलराम यादव को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया. बलराम यादव जैसे ही बर्खास्त किए गए वैसे ही समाजवादी पार्टी में लड़ाई और तेज होती गई. इसके कुछ दिनों बाद शिवपाल सिंह यादव ने अफसरों पर अपनी भड़ास निकाली और समाजवादी पार्टी सरकार से इस्तीफा देने की पेशकश कर दी. इसके बाद मुलायम सिंह शिवपाल का साथ देते हुए नजर आए. मुलायम सिंह ने कहा कि अगर शिवपाल सिंह यादव ने इस्तीफा दे दिया तो समाजवादी पार्टी को नुकसान होगा और पार्टी के दो टुकड़े हो जाएंगे. इस बीच अखिलेश और शिवपाल के बीच कुछ बातचीत भी शुरू हुई लेकिन तकरार बनी रही.
अखिलेश और शिवपाल यादव की फाइल फोटो.
गायत्री को मंत्रिमंडल से हटाया गया
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि सितंबर 2016 में अखिलेश यादव ने तत्कालीन खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति को भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित कर दिया था. इसके बाद उन्होंने उद्यान मंत्री राजकिशोर पर भी कार्रवाई की. यह दोनों मंत्री शिवपाल सिंह यादव और मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे हैं. ऐसे में शिवपाल सिंह और अखिलेश यादव के बीच तकरार और बढ़ गई.
चीफ सेक्रेटरी के हटाने से शिवपाल हुए थे नाराज
वहीं, 13 सितंबर 2016 को अखिलेश यादव ने तत्कालीन मुख्य सचिव दीपक सिंघल को हटाकर राहुल भटनागर को प्रदेश का नया मुख्य सचिव बना दिया था. जबकि दीपक सिंघल शिवपाल सिंह के करीबी थे. इस दौरान अखिलेश और शिवपाल में शह और मात का खेल लगातार जारी रहा. समाजवादी पार्टी की लड़ाई अब सार्वजनिक हो गई थी.
मुलायम ने अखिलेश को कर दिया था बाहर
जब यह घटनाक्रम हुआ उस समय समाजवादी पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने इतना नाराज हुए कि उन्होंने अखिलेश यादव को 13 सितंबर को ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद पर हटाकर शिवपाल को सपा का प्रदेश अध्यक्ष घोषित कर दिया. इसके बाद अखिलेश यादव ने सरकार में वरिष्ठ मंत्री रहे शिवपाल सिंह यादव के पर कतरने शुरू कर दिए और उनसे कई विभाग वापस ले लिए.
अमर सिंह की सुलह की कोशिश नाकाम रही
इस बीच समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे स्वर्गीय अमर सिंह ने सुलह की कोशिश की लेकिन अखिलेश यादव ने उन्हें बाहरी बता कर परिवार के अंदर का झगड़ा कहकर मामले को और तूल दे दिया. इस दौरान शिवपाल की मुलायम से लंबी बातचीत हुई और सुलह समझौते की कवायद तेज हुई. सितंबर 2016 के अंत में अखिलेश यादव सरकार का कैबिनेट विस्तार हुआ और गायत्री प्रसाद प्रजापति की वापसी कराई गई और शिवपाल को दो विभाग दिए गए. इसके बावजूद भी अखिलेश और शिवपाल में तनातनी जारी रही.
शिवपाल ने कराया था कौमी एकता दल का विलय
इसी दौरान प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए शिवपाल सिंह ने कौमी एकता दल का विलय समाजवादी पार्टी में किया. इससे नाराज अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह यादव. नारद राय सहित कई अन्य लोगों को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाते हुए बर्खास्त कर दिया था. वहीं, शिवपाल सिंह यादव ने अखिलेश यादव के करीबी लोगों के पूर्व में घोषित टिकटों को काटकर प्रत्याशियों की नई लिस्ट जारी कर दी. इसके बाद शिवपाल और अखिलेश के बीच लगातार तकरार जारी रही.
प्रत्याशियों की सूची जारी होने से भी विवाद हुआ
विधानसभा चुनाव 2017 के लिए मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी के 300 से अधिक प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी. जिसमें अखिलेश यादव के करीबियों का पत्ता साफ कर दिया गया था. जिससे अखिलेश यादव काफी नाराज हुए और उन्होंने भी अपनी एक लिस्ट जारी कर दी. जिसमें मुलायम और शिवपाल सिंह यादव के करीबियों को अखिलेश ने टिकट नहीं दिया. यह पूरा घटनाक्रम तत्कालीन पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को रास नहीं आया और वह इतना नाराज हुए कि उन्होंने अखिलेश यादव और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रहे रामगोपाल यादव को 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया. इसके कुछ दिनों बाद सुलह समझौता हुआ और दोनों का निष्कासन रद्द कर दिया गया.
अखिलेश जब खुद बन गए अध्यक्ष तो बिगड़ गई बात
2017 में जनवरी की शुरुआत में ही तत्कालीन पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने एक अधिवेशन बुलाया और अखिलेश यादव को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष व मुलायम सिंह यादव को संरक्षक बनाने के प्रस्ताव को पास करा दिया. इससे मुलायम सिंह यादव काफी नाराज हुए. समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव 2017 में अपनी इस कलह के कारण चुनाव हार गई और पूरा खामियाजा समाजवादी पार्टी को भुगतना पड़ा.
2018 में शिवपाल ने बनाई पार्टी
इसके बाद शिवपाल सिंह यादव ने अगस्त 2018 महीने में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन किया और समाजवादी पार्टी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान किया. 2019 के लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर समाजवादी पार्टी के खिलाफ प्रसपा ने उम्मीदवार उतारे. इसमें फिरोजाबाद से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार रामगोपाल यादव के बेटे यादव चुनाव हार गए. इसके बाद यादव परिवार में खींचतान लगातार जारी रही.
सुलह की कोशिश हुईं लेकिन नाकाम रहीं
दोनों लोगों के बीच सुलह की तमाम कोशिश भी हुई लेकिन वह नाकाम साबित हुई. समाजवादी पार्टी के नेताओं का कहना है कि रामगोपाल यादव नहीं चाहते हैं कि अखिलेश और शिवपाल एक हों. वह अपने बेटे अक्षय की हार को अभी तक भूल नहीं पाए हैं. जबकि मुलायम सिंह यादव लगातार चाह रहे हैं कि शिवपाल समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ें. अगर सपा और प्रसपा का गठबंधन नहीं हुआ तो आगामी विधानसभा चुनाव में फिरोजाबाद, मैनपुरी, कन्नौज, इटावा, गोरखपुर आजमगढ़ की सीटों पर यादव वोटों में सेंधमारी होगी और इसका नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा.
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्र कहते हैं कि जब शिवपाल सिंह यादव पार्टी में थे और सरकार चल रही थी. राष्ट्रीय जनता दल के विलय की बातचीत शुरू हुई थी तो अखिलेश यादव इस पर सहमत नहीं हो पाए थे. इसके बाद अफजाल अंसारी की पार्टी के विलय की बात भी हुई और यह भी एक विवाद का बड़ा कारण बन गया था. अखिलेश यादव को लगता था कि शिवपाल सिंह यादव ज्यादा हस्तक्षेप कर रहे हैं ज्यादा ताकतवर हैं. संगठन में शिवपाल यादव का हस्तक्षेप बढ़ रहा था एक दूसरे के फैसलों से दोनों लोगों को दिक्कत होने लगी थी.
एटा, इटावा मैनपुरी, फिरोजाबाद, फर्रुखाबाद, कन्नौज, आजमगढ़, गोरखपुर यादव बहुल बेल्ट है. यहां नाम जरूर नेता जी यानी मुलायम सिंह यादव का होता था, लेकिन ग्राउंड लेवल पर शिवपाल सिंह यादव की लोगों को कनेक्ट करते थे. सब लोग चाहते हैं कि यादव परिवार एक हो जाए. अगर यादव परिवार एक नहीं हुआ तो इससे काफी नुकसान समाजवादी पार्टी को हो सकता है. अलग होकर चुनाव लड़ेंगे तो तमाम सीटों को हराने का काम शिवपाल अखिलेश को करेंगे. अखिलेश यादव जो छोटे-छोटे दलों से बात कर रहे हैं तो उन्हें शिवपाल सिंह यादव से बात करके सियासी स्थितियों को समझना होगा.
राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्र कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव ने सुलह की कोशिश की लेकिन दोनों लोगों के बीच अंडरस्टैंडिंग गफलत की है. उन बातों को लेकर आपस में अड़े हुए हैं जो अनकही बातें हैं. आपस में बैठना होगा बाकी दोनों लोगों की भी समझ अच्छी है बातचीत होती है, सिर्फ पॉलिटिकल अंडरस्टैंडिंग साफ नहीं है. पॉलीटिकल अंडरस्टैंडिंग साफ हो जाएगी तो सब कुछ ठीक हो जाएगा.
गठबंधन के आसार नहीं, बीच का रास्ता निकल सकता है
वहीं, राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय कहते हैं कि मुलायम परिवार में एकता कराने की कोशिश उस दौरान तमाम लोगों ने की थी. खुद मुलायम सिंह यादव ने सुलह कराने की कई कोशिश की थी, लेकिन सुलह नहीं हो पाई. अमर सिंह का जो रोल था और जो शिवपाल से नाराजगी थी उसकी वजह से अखिलेश यादव राजी नहीं हो सके थे. तमाम परिस्थितियों के बावजूद यादव परिवार एक नहीं हुआ, जिसमें रामगोपाल यादव का भी बड़ा रोल था. सपा जब अखिलेश यादव के पास आई और परिवार में विघटन हुआ तो उसका बड़ा कारण रामगोपाल यादव थे. जो अभी के ताजा हालात हैं, उसमें भी रामगोपाल और शिवपाल यादव के बीच तनाव है. शायद इसी वजह है अभी भी जो सुलह के हालात हैं, वह नहीं बन पा रहे हैं. विजय उपाध्याय कहते हैं कि शिवपाल और अखिलेश करीब आ सकते हैं, लेकिन रामगोपाल और शिवपाल एक नहीं हो सकते हैं. रामगोपाल बेटे अक्षय यादव की चुनाव की हार को अभी तक भूल नहीं पाए हैं. उन्होंने कहा कि सपा और प्रसपा का गठबंधन फिलहाल नजर नहीं आता है. हो सकता है बीच का कोई रास्ता निकालते हुए शिवपाल सिंह यादव को जसवंतनगर से चुनाव दोबारा लड़ाया जा सके.