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जानिए एक तांगेवाले का लड़का कैसे बन गया डॉन...

अहमदाबाद की जेल में बंद बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद का बुरा दौर शुरू हो चुका है. यूपी की योगी सरकार माफिया डॉन पर लगातार नकेल कस रही है. ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि कैसे एक तांगेवाले का लड़का इतना बड़ा डॉन बन गया. पेश है पूरी रिपोर्ट...

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Published : Apr 10, 2021, 4:24 PM IST

Updated : Apr 11, 2021, 12:06 PM IST

अतीक कीअतीक अहमद पर कसा शिकंजा. उलटी गिनती शुरू
अतीक अहमद पर कसा शिकंजा.

लखनऊ:माफिया डॉन और गुजरात के साबरमती जेल में बंद पूर्व सांसद अतीक अहमद पर अब प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लॉड्रिंग का मुकदमा दर्ज किया है. पुलिस रिकॉर्ड में लंबित मामलों को आधार बनाते हुए ईडी ने यह कार्रवाई की है. अतीक के सगे-संबंधियों के अलावा गुर्गों के नाम पर देश-विदेश में बड़े पैमाने पर अवैध चल-अचल संपत्ति है. इन सभी का पता लगाकर ईडी कुर्क करने की कार्रवाई करेगा. जिस अतीक अहमद को लेकर सरकार और प्रशासन सख्त है, आज हम उसी अतीक अहमद के बारे में वो बात बताने जा रहे है, जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे. आज हम आपको अपराध की दुनिया के सबसे खूंखार अतीक का अतीत बताते हैं.

कहानी शुरू होती है तांगेवाले के लड़के से

आज का प्रयागराज तब इलाहाबाद हुआ करता था. इलाहाबाद में उन दिनों नए कॉलेज बन रहे थे. उद्योग लग रहे थे. शराब के ठेके बंट रहे थे. नए लड़कों में अमीर बनने का चस्का लगना शुरू हो गया था. वो अमीर बनने के लिए कुछ भी करने को उतारू था. कुछ भी मतलब, कुछ भी! इलाहाबाद में एक मोहल्ला है चकिया. साल 1979 में इसी मोहल्ले का एक लड़का हाईस्कूल में फेल हो गया. उसके पिता इलाहाबाद स्टेशन पर तांगा चलाते थे, लेकिन अमीर बनने का चस्का तो उसे भी था. अतीक अहमद फिरोज तांगेवाले का लड़का है. इसके ऊपर पहली बार 17 साल की उम्र में हत्या का पहला आरोप लगा और इसके बाद उसका धंधा चलने लगा.

तांगेवाले का लड़का और चांद बाबा
पुराने शहर में उन दिनों चांद बाबा का खौफ हुआ करता था. पुराने जानकार बताते हैं कि पुलिस भी चौक और रानीमंडी की तरफ जाने से डरती थी. अगर कोई खाकी वर्दी वाला चला गया तो पिटकर ही वापस आता. स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिस और नेता दोनों उसे शह दे रहे थे. वे चांद बाबा के खौफ को खत्म करना चाह रहे थे, जिसका इलाके में दबदबा था.

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अतीक की आंखों में आंखें डालकर देखना संभव नहीं था
इस बाहुबली नेता के दर्जनों किस्से हैं. अतीक अहमद से मुलाकात कर चुके लोग बताते हैं कि एक समय था कि उसकी आंखों में आंखे डालकर देखना संभव नहीं था. लोगों को अपनी ऩजरें नीचे करने पर मजबूर होना पड़ता था. 5 फीट 6 इंच का यह बाहुबली नेता समय के साथ डॉन के रूप में खूब फेमस हुआ और इसकी शुरुआत होती है 70 के दशक से.

दिल्ली से फोन आया और अतीक छूट गया
1986 का साल था. प्रदेश में वीर बहादुर सिंह और केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी. अब तक चकिया के लड़कों का गैंग चांद बाबा से ज्यादा उस पुलिस के लिए खतरनाक हो चुका था, जिसे पुलिस ने शह दी थी. पुलिस अतीक और उसके लड़कों को गली-गली खोज रही थी. एक दिन पुलिस अतीक को उठा ले गई. किसी को कोई सूचना नहीं थी. लोगों को लगा कि अब काम खत्म है. इसके बाद परिचितों ने खोजबीन शुरू की. इलाहाबाद के ही रहने वाले एक कांग्रेस के सांसद को सूचना दी गई. बताया जाता है कि वह सांसद प्रधानमंत्री राजीव गांधी का करीबी था. इसके चलते दिल्ली से फोन आया और पुलिस ने अतीक को छोड़ दिया.

चांदबाबा के बाद अतीक भाई का दौर शुरू हुआ
चांद बाबा और अतीक में कई बार गैंगवार हुआ था. अपराध जगत में अतीक की तरक्की चांद बाबा को अखर रही थी. यही कारण था कि चांद बाबा ने सीधी चुनौती दी, लेकिन चुनाव हार गया. अतीक अहमद विधायक बन चुका था. कुछ ही महीनों बाद चांद बाबा की हत्या हो गई. धीरे-धीरे एक-एक करके चांद बाबा का पूरा गैंग खत्म हो गया. कुछ मार दिए गए और बाकी भाग गए. बाबा का दौर खत्म हो चुका था. अब भाई अतीक का दौर आ गया था. चांद बाबा की हत्या के बाद अतीक का खौफ इस कदर फैला कि लोग इलाहाबाद पश्चिमी सीट से टिकट लेने से खुद ही मना कर देते. यही कारण था कि अतीक ने निर्दलीय रहकर 1991 और 1993 में भी लगातार चुनाव जीते. इसी बीच सपा से नजदीकी बढ़ी. साल 1996 में सपा के टिकट से चुनाव लड़ा और चौथी बार विधायक बना. 1999 में अपना दल का हाथ थामा. प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाया. 2002 में अपना दल से ही चुनाव लड़ा पुरानी सीट से और 5वीं बार शहर पश्चिमी से विधानसभा में पहुंच गया.

नेता बना, लेकिन माफिया वाली छवि बनी रही
अतीक भले ही नेता बन गया था, लेकिन वह माफिया वाली अपनी छवि से कभी बाहर नहीं आ पाया. यह कहा जा सकता है कि सफेदपोश होने के बाद उसके अपराधों की संख्या में और तेजी आ गई. सियासत की आड़ में अतीक अपना आपराधिक साम्राज्य मजबूत करता रहा. यही वजह है कि उसके ऊपर दर्ज अधिकतर मुकदमे विधायक और सांसद रहते हुए दर्ज हुए. लोग कहते हैं कि वह अपने विरोधियों को छोड़ता नहीं है. 1989 में चांद बाबा की हत्या, 2002 में नस्सन की हत्या, 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी बताए जाने वाले भाजपा नेता अशरफ की हत्या और 2005 में राजू पाल की हत्या. बताते हैं कि जो भी अतीक के खिलाफ सिर उठाने की कोशिश करता मारा जाता. अतीक के खिलाफ 83 से अधिक मुकदमे दर्ज हैं. अशरफ और अतीक दोनों को मिला दें तो दोनों पर 150 से अधिक मुकदमे हैं. उसके गैंग में 120 से अधिक शूटर रहे. इलाहाबाद के कसारी-मसारी, बेली गांव, चकिया, मारियाडीह और धूमनगंज इलाके इनके आपसी गैंगवार में अक्सर दहलते रहे.

विदेशी गाड़ियों और हथियारों का शौक
इलाहाबाद के रहने वाले जिस सांसद ने अतीक पर हाथ रखा था, वे बड़े कारोबारी भी थे. इलाहाबाद के पुराने लोग बताते हैं कि उस वक्त शहर में सिर्फ उसी सांसद के पास निशान और मर्सिडीज जैसी विदेशी गाड़ियां होती थीं. अतीक को भी इसका चस्का लग गया था. कुछ ही दिन में उसने भी विदेशी गाड़ी खरीद ली. अब उसका नाम सांसद के नाम से बड़ा होने लगा था. सांसद जी को बात नागवार गुजरी और ऐसी गुजरी कि विदेशी गाड़ियां ही रखनी छोड़ दीं. गाड़ियों के बाद नंबर था हथियारों का. चकिया के रहने वाले लोग बताते हैं कि अतीक को दो ही चीजों का शौक रहा. हथियार और विदेशी गाड़ी. दर्जनों विदेशी लग्जरी गाड़ियां अब तक उसके काफिले में रहीं.

अशरफ के चुनाव हारने के बाद अतीक को अखरने लगा राजू पाल
चांद बाबा लोकल गुंडा था. अतीक चकिया या इलाहाबाद तक ही सीमित नहीं रहना चाहता था. यही कारण था कि वह विरोधियों को खत्म कर देता था. चाहे वो चांद बाबा हो या फिर राजू पाल. 2003 में मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी. अतीक की सपा में वापसी हुई. 2004 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर से चुनाव लड़ा और संसद पहुंच गया. इलाहाबाद पश्चिमी की सीट खाली हुई. अतीक ने अपने भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को वहां से मैदान में उतारा, लेकिन जिता नहीं पाया. 4 हजार वोटों से जीतकर राजू पाल बसपा से विधायक बने. वही राजू पाल जिसे कभी अतीक का दाहिना हाथ कहा जाता था. राजू पाल पर भी उस समय 25 मुकदमे दर्ज थे. अतीक के पतन की शुरुआत हो चुकी थी. यह हार अतीक को बर्दाश्त नहीं हुई. अक्टूबर 2004 में राजू विधायक बने. अगले महीने नवंबर में ही राजू पाल के ऑफिस के पास बमबाजी और फायरिंग हुई, लेकिन राजू पाल बच गए. दिसंबर में भी उनकी गाड़ी पर फायरिंग की गई. राजू पाल ने सांसद अतीक से जान का खतरा बताया.

राजू पाल की हत्या और शुरू हो गया बुरा दौर
25 जनवरी 2005 को राजू पाल के काफिले पर एक बार फिर हमला किया गया. राजू पाल को कई गोलियां लगीं. फायरिंग करने वाले फरार हो गए. पीछे की गाड़ी में बैठे समर्थकों ने राजू पाल को एक टेंपो में लादा और अस्पताल लेकर भागे. फायरिंग करने वालों को लगा कि राजू पाल अब भी जिंदा है तो एक बार फिर से टेंपो को घेरकर फायरिंग शुरू कर दी. करीब पांच किलोमीटर तक टेंपो का पीछा किया गया और गोलियां मारी गईं. अंत में जब राजू पाल जीवन ज्योति अस्पताल पहुंचे, उन्हें 19 गोलियां लग चुकी थीं. डॉक्टरों ने उनको मरा हुआ घोषित कर दिया. इसके बाद राजू की पत्नी पूजा पाल ने अतीक, भाई अशरफ, फरहान और आबिद सहित कई लोगों पर नामजद मुकदमा दर्ज करवाया.

राजू पाल पर था अनीस पहलवान की हत्या का आरोप
फरहान के पिता अनीस पहलवान की हत्या का आरोप राजू पाल पर था. 9 दिन पहले ही राजू की शादी हुई थी. बसपा समर्थकों ने पूरे शहर में तोड़फोड़ शुरू कर दी. राजू पाल की हत्या में नामजद होने के बावजूद अतीक सत्ताधारी सपा में बना रहा. 2005 में उपचुनाव हुआ. बसपा ने पूजा पाल को उतारा. सपा ने दोबारा अशरफ को टिकट दिया. पूजा पाल के हाथों की मेंहदी भी नहीं उतरी थी और वह विधवा हो गई थी. लोग बताते हैं कि पूजा मंच से अपने हाथ दिखाकर रोने लगती थीं, लेकिन पूजा को जनता का समर्थन नहीं मिला. लोग कहते हैं कि ये अतीक का खौफ था और अशरफ चुनाव जीत गया था. अतीक के भाई अशरफ के घर की 5 बार कुर्की हो चुकी है.

मायावती का 'ऑपरेशन अतीक'
साल 2007 में इलाहाबाद पश्चिमी से एक बार फिर पूजा पाल और अशरफ आमने-सामने थे. इस बार पूजा ने अशरफ को पछाड़ दिया. अतीक का किला ध्वस्त हो चुका था. मायावती की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी. सपा ने अतीक को पार्टी से बाहर कर दिया. मायावती सरकार ने ऑपरेशन अतीक शुरू किया. अतीक को मोस्ट वांटेड घोषित करते हुए गैंग का चार्टर तैयार हुआ. पुलिस रिकॉर्ड में गैंग का नाम दर्ज हुआ आईएस (इंटर स्टेट) 227. उस वक्त गैंग में 120 से ज्यादा लोग थे. 1986 से 2007 तक अतीक पर 12 से ज्यादा मामले केवल गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज किए गए थे. अतीक पर 20 हजार का इनाम घोषित किया गया. उसकी करोड़ों की संपत्ति सीज कर दी गई. बिल्डिंगें गिरा दी गईं. खास प्रोजेक्ट अलीना सिटी को अवैध घोषित करते हुए ध्वस्त कर दिया गया. इस दौरान अतीक फरार रहा. एक सांसद जो इनामी अपराधी था, उसे फरार घोषित कर पूरे देश में अलर्ट जारी कर दिया गया था. इसके बाद एक दिन दिल्ली पुलिस ने कहा कि हमने अतीक को गिरफ्तार कर लिया है. इसके बाद यूपी पुलिस दिल्ली से अतीक को यूपी लाई और जेल में डाल दिया.

अतीक अहमद पर 250 मुकदमे हैं दर्ज
अतीक पर अब तक लगभग 250 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. मायावती के शासनकाल में एक ही दिन में अतीक पर 100 मुकदमे दर्ज हुए थे. बाद में हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. अधिकतर मामलों में सबूत के अभाव और गवाहों के मुकरने की वजह से अतीक बरी भी हो चुका है. फिलहाल अतीक के खिलाफ 35 मुकदमे एक्टिव हैं. इनमें से कई मुकदमे कोर्ट में पेंडिंग हैं, जबकि 11 मामलों में अभी जांच पूरी नहीं हो सकी है. अब तक उसे किसी भी मामले में सजा नहीं मिली है. अतीक अहमद के खिलाफ जितने केस दर्ज हैं, उनकी सुनवाई में लंबा वक्त लग रहा है.

रस्सी टूटने के बाद भी ऐठन नहीं गई

साल 2012 में अतीक अहमद जेल में था. विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अपना दल से पर्चा भरा. इलाहाबाद हाईकोर्ट में बेल के लिए अप्लाई किया, लेकिन हाईकोर्ट के 10 जजों ने केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया. 11वें जज सुनवाई के लिए राजी हुए और अतीक को बेल दे दी. अतीक के पास गढ़ बचाने का अंतिम मौका था. अतीक खुद पूजा पाल के सामने उतरे, लेकिन जीत नहीं पाए. राज्य में सपा की सरकार बनी और अतीक ने फिर से अपनी हनक बनाने की कोशिश की. इलाहाबाद के कसारी-मसारी इलाके में कब्रिस्तान की जमीन कब्जाने का आरोप लगा. आरोप हैं कि खुद खड़े होकर कई घरों पर बुलडोजर चलवा दिया. जमीनों पर कब्जे के कई आरोप लगे, लेकिन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव एक बार फिर से अतीक पर मेहरबान हो गए. उन्होंने सुलतानपुर से टिकट दे दिया. इस पर पार्टी में विरोध हो गया. इसके बाद टिकट तो बरकरार रही, लेकिन सीट बदलकर श्रावस्ती हो गई. अतीक ने एक दिन सपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, 'मेरे खिलाफ 188 मामले दर्ज हैं. मैंने अपना आधा जीवन जेल में बिताया है, लेकिन मुझे इसका कोई अफसोस नहीं है. मैं अपने कार्यकर्ताओं के लिए किसी भी हद तक जा सकता हूं.' अतीक का संबोधन चुनाव में काम नहीं आया और चुनाव हार गए. इसके बाद अखिलेश यादव से रिश्ते भी खराब हो गए. उसके बाद सपा में अंदर-बाहर आने-जाने का सिलसिला शुरू हो गया.

जब जेलें अतीक को लेने से करती थीं मना
वो साल 2012 था, जब अतीक अहमद जेल में था. अतीक ने विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अपना दल से पर्चा भरा. इलाहाबाद हाईकोर्ट में बेल के लिए अप्लाई किया, लेकिन हाईकोर्ट के 10 जजों ने केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया. 11वें जज सुनवाई के लिए राजी हुए और अतीक को बेल दे दी. अतीक को यूपी की योगी सरकार की कोई भी जेल रखने को तैयार नहीं थी. लिहाजा 19 अप्रैल 2019 को चुनाव आयोग ने जेल अफसरों की शिकायत पर अतीक अहमद को देवरिया जेल से नैनी जेल ट्रांसफर किया. नैनी जेल ने अतीक को लेने से इनकार कर दिया. फिर उसे बरेली जेल भेजा गया, लेकिन बरेली जेल भी उसे रखने को तैयार नहीं थी. आखिर 3 जून 2019 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अतीक को गुजरात की अहमदाबाद जेल में भेज दिया गया.

योगी सरकार में कसता गया शिकंजा

आज हम इन घटनाओं की याद आपको इसलिए भी दिला रहे हैं, क्योंकि अतीक अहमद फिर चर्चा में है. यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अतीक पर शिकंजा तेज कर दिया है. अतीक की लगभग 60 करोड़ की 7 संपत्तियां कुर्क की जा चुकी हैं. 13 अन्य प्रॉपर्टी के खिलाफ भी कार्रवाई की तैयारी चल रही है. पुलिस का दावा है कि ये प्रॉपर्टियां गैर-कानूनी धंधे के पैसों से बनाई गई हैं. डीएम ने गैंगस्टर एक्ट के तहत 28 अगस्त 2020 तक अतीक की 7 संपत्तियों को कुर्क करने का आदेश दिया था. इससे पहले तीन साल से फरार चल रहे अतीक के छोटे भाई और पूर्व विधायक खालिद अजीम उर्फ अशरफ को 3 जुलाई 2020 को गिरफ्तार कर लिया गया था. अशरफ पर एक लाख का इनाम घोषि‍त था. देवरिया जेल कांड में फरार चल रहे अतीक के बेटे उमर पर सीबीआई ने दो लाख का इनाम घोषि‍त कर रखा है. इलाहाबाद के खुल्‍दाबाद पुलिस स्‍टेशन में अतीक हिस्‍ट्रीशीटर नंबर 39A हैं. पुलिस के मुताबिक, अतीक के गैंग को 'अंतरराज्‍य गिरोह 227' के रूप में लिस्‍टेड किया गया है, जिसमें 121 सदस्‍य शामिल हैं.



Last Updated : Apr 11, 2021, 12:06 PM IST

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