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योगी, केशव और दिनेश शर्मा के चुनाव लड़ने से भाजपा को नफा या नुकसान ?

आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में सियासी दल ताल ठोक रहे हैं. भाजपा अपने कद्दावर नेताओं को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रही है. पार्टी ऐसे नेताओं को उतारेगी जो विधान परिषद सदस्य के साथ सरकार में मंत्री भी हैं.

यूपी विधानसभा चुनाव.
यूपी विधानसभा चुनाव.

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Published : Jul 25, 2021, 1:13 PM IST

Updated : Jul 25, 2021, 1:31 PM IST

लखनऊः आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी दल ताल ठोक रहे हैं. भाजपा अपने कद्दावर नेताओं को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रही है. पार्टी ऐसे नेताओं को उतारेगी जो विधान परिषद सदस्य के साथ सरकार में मंत्री भी हैं. इसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा, केशव प्रसाद मौर्य, मंत्री महेंद्र सिंह, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और अशोक कटारिया जैसे नाम शामिल हैं. अब बात आती है कि पार्टी यदि इन बड़े कद्दावर नेताओं को चुनाव मैदान में उतारती है तो इससे विधानसभा चुनाव में नफा होगा या नुकसान.



चुनाव लड़ाए जाने को लेकर जितने नेताओं की अटकलें लगाई जा रही हैं, उसमें सबसे महत्वपूर्ण चेहरा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं. उन्हें सबसे चर्चित क्षेत्र अयोध्या से चुनाव लड़ना है. जनाकारों की मानें तो योगी आदित्यनाथ राम नगरी से चुनाव लड़ सकते हैं. उसकी वजह है कि, अयोध्या वैश्विक पटल पर अपनी पहचान रखती है. अभी तक यह विवादों के लिए जाना गया. अब यहां भव्य राम मंदिर निर्माण हो रहा है. राज्य सरकार इस पौराणिक शहर को विकसित करने के लिए हजारों करोड़ों की योजनाओं को लागू कर रही है.

राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ हार्ड कोर हिन्दू नेता के रूप में जाने जाते हैं. अयोध्या हमेशा भाजपा और संघ के एजेंडे में रह है. सीएम योगी के अयोध्या से चुनाव लड़ने से दो भाजपा को विधानसभा चुनाव में लाभ मिलता दिख रहा है. एक तो यह कि पूरे अवध की करीब 80 सीटों 100 सीटों पर असर पड़ेगा. दूसरा यह कि पूरे प्रदेश के एक बड़े वर्ग में अयोध्या का अलग सन्देश जाएगा. यहां से चुनाव लड़ने से उम्मीदवार को अपने चुनावी क्षेत्र में फंसना नहीं पड़ेगा.

विधायक के खिलाफ बने माहौल को कम कर सकते हैं दिनेश शर्मा

वहीं दिनेश शर्मा के लखनऊ की किसी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा है. लखनऊ के कुछ विधायकों के खिलाफ माहौल है. जनता के साथ ही पार्टी के कार्यकर्ता भी उन्हें इस बार चुनाव में सबक सिखाने की तैयारी में बैठे हैं. ऐसे में पार्टी नेतृत्व चाहता है कि अगर दिनेश शर्मा जैसे बड़े नेता को लखनऊ के किसी विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा जाता है तो वह अपनी सीट तो निकालेंगे ही दूसरी सीट पर भी असर होगा. इसका लाभ पार्टी को मिलेगा. विधायक के खिलाफ जो माहौल है वह हल्का होगा. हालांकि डॉ. दिनेश शर्मा मीडिया से यह बात कह चुके हैं कि विधान परिषद में उनका कार्यकाल अभी 2027 तक है. बावजूद इसके पार्टी यदि कोई निर्णय करती है तो उसका पालन किया जाएगा. ऐसे ही केशव प्रसाद मौर्य को चुनाव मैदान में उतारकर भाजपा पिछड़ों के बीच सन्देश देना चाहती है.

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योगी, दिनेश, केशव लड़ते आये हैं चुनाव

ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य ने चुनाव नहीं लड़ा है. इन सभी नेताओं ने चुनाव लड़े हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से लगातार पांच बार सांसद रहे हैं. वह सांसद रहते हुए मुख्यमंत्री के लिए चुने गए. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य 2012 के विधानसभा चुनाव में विधायक बने और 2014 के लोकसभा चुनाव में वह संसद पहुंचे. दूसरे डिप्टी सीएम की बात करें तो दिनेश शर्मा लखनऊ जैसे महानगर में वह दो बार नगर निगम के मेयर चुने गए हैं. लखनऊ नगर निगम क्षेत्र की आबादी संसदीय क्षेत्र से कम नहीं है.

यह नेता पहली बार लड़ेंगे चुनाव

इसके अलावा बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, परिवहन मंत्री अशोक कटारिया, जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह जैसे नेताओं के चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं. इनमें से भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह 2012 के विधानसभा चुनाव में कालपी क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके हैं. हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिल पाई थी. बाकी दो मंत्रियों की बात करें तो उन्होंने कभी विधानसभा या लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा है. अगर पार्टी इन लोगों को चुनाव मैदान में उतारती है तो अशोक कटारिया और महेंद्र सिंह पहली बार जनता के बीच चुनाव लड़ने उतरेंगे. ऐसे में माना जा रहा है कि उनकी यह राह आसान नहीं होगी.

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चुनाव नहीं लड़ने के पीछे के भी तर्क

प्रदेश भाजपा के इन शीर्ष नेताओं के विधानसभा चुनाव लड़ने की अटकलों के बीच नहीं लड़ने के भी तर्क दिए जा रहे हैं. पार्टी के जानकारों का मानना है कि इनमें से ज्यादातर नेताओं का विधान परिषद में कार्यकाल अभी काफी लंबा बचा हुआ है. ऐसे में पार्टी यह खतरा लेने से बचेगी. पार्टी सत्ता में आती है, तब कोई असर नहीं पड़ने वाला है, लेकिन यदि पार्टी 2022 में सत्ता से बाहर हो जाती है तो भाजपा के सामने यह चुनौती होगी कि इन नेताओं को विधान परिषद में बनाए रखा जाए या विधानसभा में. विधानसभा से इस्तीफा दिलाएंगे तो विपक्ष में रहते हुए विधानसभा चुनाव लड़ना काफी कठिन होगा.

यदि विधानसभा में बने रहेंगे तो विधान परिषद की सीटें कम हो जाएंगी. दूसरी बात पार्टी के यह सभी स्टार प्रचारक हैं और पार्टी यह कतई नहीं चाहेगी कि इन स्टार प्रचारकों को उनके चुनाव में फसाया जाए. लिहाजा अगर चुनाव लड़ना भी होगा तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ही पार्टी चुनाव लड़ा सकती है. माना जा रहा है कि अयोध्या सीट पर योगी आदित्यनाथ के लिए कोई चुनौती नहीं है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हीरो बाजपेई कहते हैं कि चुनाव लड़ने पर चर्चा का कोई औचित्य नहीं बनता. अभी आठ महीने के बाद चुनाव होने हैं. किसको चुनाव लड़ना है, किसको चुनाव नहीं लड़ना है. यह तय करने का काम पार्टी का पार्लियामेंट्री बोर्ड करता है. रही बात विपक्ष के आरोपों की तो हमारे सभी नेता चुनाव लड़ते हैं, मुख्यमंत्री हो या दोनों डिप्टी सीएम सब ने चुनाव लड़ा है.

Last Updated : Jul 25, 2021, 1:31 PM IST

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