केजीएमयू पहुंचे गठिया रोग के मरीजों से बातचीत. लखनऊः पहले गठिया (arthritis) की बीमारी 45 साल पार करने वाले लोगों को होती थी. लेकिन अब कम उम्र के लोग भी गठिया से परेशान हैं. केजीएमयू के गठिया विभाग में रोजाना 250 से अधिक मरीज इलाज के लिए आते हैं. प्रदेश के अन्य जिले से भी मरीज यहां पर इलाज के लिए आते हैं. ऐसे में दूरदराज से इलाज कराने के लिए आए मरीजों बताया कि यहां की दवाइयों का असर काफी होता है.
केजीएमयू के गठिया रोग विभाग के स्पेशलिस्ट डॉ. पुनीत कुमार ने बताया कि वर्तमान समय में काफी ज्यादा गठिया से पीड़ित मरीजों की संख्या है. ऐसा बिल्कुल नहीं है कि पहले नहीं थे. पहले भी गठिया के मरीजों की संख्या इतनी ही थी लेकिन पहले लोग इतने जागरूक नहीं थे. इस समय पब्लिक और डॉक्टर भी जागरूक है. इसलिए मरीज थोड़ी सी दिक्कत परेशानी में तुरंत अस्पताल आते हैं और विशेषज्ञ की सलाह लेते हैं. जिसके कारण
गठिया रोग से बचाव के तरीके. डॉ. पुनीत ने बताया कि ऐसा नहीं है कि गठिया से पीड़ित मरीज बुजुर्ग ही हों, कम उम्र के लोग भी इससे पीड़ित हैं. 4 साल के बच्चा भी घटिया से ग्रसित हो जाते हैं, जिसका इलाज हम करते हैं. यहां पर ऐसे आते हैं जो 35 साल के कम उम्र के लोग हैं. गठिया होने का एक कारण यह भी है कि हमारी जो इम्यून सिस्टम होता है, उसका काम होता है कि वह किसी अन्य बीमारी को होने से रोकता है. उससे फाइट करता है लेकिन इसमें यह उल्टा हो जाता है. मरीज की इम्युनिटी उसी पर अटैक कर देती है, जिस कारण मरीज को जोड़ों में दर्द होना शुरू हो जाता है.
डॉ. पुनीत ने बताया कि दरअसल चिकनगुनिया के जो लक्षण होते हैं, यह काफी ज्यादा डेंगू से अलग होते हैं. एक बार जिस मरीज को चिकनगुनिया हो जाता है उसके जोड़ों में काफी तकलीफ रहती है. लेकिन ऐसा नहीं है कि यह एक महीना या दो महीने के बाद भी हो. लेकिन इस बार जो चिकनगुनिया मरीजों को हुआ उसका असर अभी तक मरीज को है. इसमें मांसपेशियों में हड्डियों में काफी ज्यादा दर्द होता है. इस दौरान कुछ दवाइयां भी असर नहीं करती हैं, इसलिए मरीज को स्ट्राइड दिया जाता है.
हरदोई की एक महिला ने बताया कि उनके 15 वर्षीय बेटा कम उम्र से ही गठिया से पीड़ित था. बहुत इलाज कराया लेकिन कहीं भी कुछ नहीं हो पाया. लेकिन जब से केजीएमयू के गठिया रोग विभाग में बच्चों को लेकर आए हैं तबसे से काफी ज्यादा राहत है. पिछले एक साल से बच्चे का इलाज यहां पर चल रहा है. पहले यह स्थिति थी कि बच्चा चलने में असमर्थ था लेकिन अब धीरे-धीरे चलने लगा है. अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है. वहीं एक और महिला मरीज ने बताया कि यहां पर इलाज बहुत अच्छा होता है, डॉक्टर देखते भी बहुत अच्छे से हैं. थोड़ी सी दिक्कत परेशानी यह होती है कि इंतजार काफी करना पड़ता है. पर्चा बनवाने के लिए सुबह से लाइन में लगना पड़ता है और फिर अपनी बारी का इंतजार करते हैं. इन सब में पूरा एक दिन चला जाता है लेकिन पिछले कुछ महीनों से इलाज करा रहे हैं. यहां पर इलाज काफी अच्छा होता है. दवाइयां यहां की असर करती है.
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