लखनऊ: समाजवादी पार्टी का दो दिवसीय सम्मेलन संपन्न हो गया. इस सम्मेलन में अखिलेश यादव को पार्टी का दोबारा अध्यक्ष चुन लिया गया. अब अखिलेश यादव और पार्टी के सामने कई चुनौतियां होंगी, जिनसे पार पा लेने के बाद ही उन्हें कामयाबी का मुंह देखने का अवसर मिल सकेगा. हालांकि 2022 के चुनाव से पहले से ही अखिलेश यादव के कई कदमों ने पार्टी को मुसीबत में डाला और पराजय का मुंह देखने पर मजबूर किया. पार्टी के नेता यह उम्मीद जरूर करते हैं कि उन्होंने अपने अनुभवों से जो सीखा है, उनसे जो गलतियां हुई हैं, अब वह दोहराएंगे नहीं.
सपा अध्यक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती है मोदी-योगी की छवि के सामने विकास का बढ़िया एजेंडा सेट करने के साथ सरकार की नाकामियों को जोरशोर से उठाना. अब तक समाजवादी पार्टी योगी-मोदी सरकार को उनकी नाकामियों पर अच्छी तरह घेरने में नाकाम रही है. सपा पर आरोप लगते रहे हैं कि वह एसी कमरों में बैठकर राजनीति करते हैं और पार्टी में सड़क पर उतर कर संघर्ष करने का मादा नहीं रहा. यह आरोप कोई और नहीं उनके गठबंधन के साथी रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने ही लगाए हैं. कई मौकों पर इन आरोपों में सच्चाई भी दिखाई दी है.
भाजपा ने 2022 के चुनाव में छुट्टा पशुओं का समाधान सरकार गठन के एक माह के भीतर ही करने का वादा किया था. आज सरकार बनने के छह माह हो चुके हैं. निराश्रित पशुओं की समस्या यथावत है. सरकार के पास इसका कोई रोडमैप भी नहीं है, लेकिन मुख्य विपक्षी दल इस मुद्दे को न ठीक से उठा पाया है और न ही इसका लाभ ले पाया है. यह तो महज एक विषय है, महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार समेत न जाने कितने मुद्दे हैं, जिन्हें लेकर सरकार को कटघरे में लाया जा सकता है.
भाजपा का प्रदेश संगठन सपा के मुस्लिम-यादव वोट बैंक में सेंध लगाने में जुटा है. वहीं, सपा द्वारा मुसलमानों के मुद्दों को कमजोर ढंग से उठाए जाने के कारण मुस्लिम मतदाता अखिलेश यादव और उनकी पार्टी से नाराज है. ऐसे में यदि इस वोट बैंक को कोई और विकल्प मिला, वह सपा का साथ छोड़ सकता है. शिवपाल यादव के साथ अखिलेश यादव के बर्ताव को लेकर भी यादवों का सहानुभूति शिवपाल के साथ है.
वैसे भी सपा के साथ रहकर भी यादवों को बदनामी के सिवाय मिला भी क्या है? ऐसे में यादव मतदाता भी अपना मन बदल सकता है. ऐसे में सपा के सामने यह बड़ी चुनौती होगी कि वह इस वोट बैंक को बिखरने से रोके और उन्हें यह विश्वास दिलाए कि उनकी असली रहनुमा समाजवादी पार्टी ही है. स्वाभाविक है कि यह काम आसान नहीं है. परिवार के झगड़े भी अपनी जगह है. अखिलेश के छोटे भाई प्रतीक यादव की पत्नी डिम्पल यादव पहले भी भाजपा का दामन थाम चुकी हैं.