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यदि कला विचार पैदा नहीं कर पा रही तो वह फर्नीचर के समान: प्रतुल दास - lucknow news

राजधानी लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम में प्रख्यात समकालीन कलाकार प्रतुल दास ने कहा कि व्यक्ति अपनी संवेदनशीलता को अपने विचारों के माध्यम से प्रस्तुत करता है. यदि कला कोई विचार पैदा नहीं कर पा रही है तो वह एक कोने में पड़े फर्नीचर के समान है.

कला वार्ता कार्यक्रम
कला वार्ता कार्यक्रम

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Published : Aug 9, 2021, 7:46 AM IST

लखनऊ: व्यक्ति अपनी संवेदनशीलता को अपने विचारों के माध्यम से प्रस्तुत करता है. यदि कला कोई विचार पैदा नहीं कर पा रही है तो वह एक कोने में पड़े फर्नीचर के समान है. यह बातें रविवार को प्रस्तुत कला वार्ता कार्यक्रम में समकालीन चित्रकार प्रतुल दास ने कहीं.

अस्थाना आर्ट फोरम के ऑनलाइन मंच पर ओपन स्पेसस आर्ट टॉक एंड स्टूडियो विजिट के 14वें एपिसोड का लाइव रविवार को किया गया. इस एपिसोड में आमंत्रित कलाकार के रूप में भारत के प्रख्यात समकालीन कलाकार प्रतुल दास रहे. इनके साथ बातचीत के लिए नई दिल्ली के आर्टिस्ट व क्यूरेटर अक्षत सिन्हा और इस कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में जाने माने वरिष्ठ पत्रकार, फिल्म, साहित्य, कला एवं रंगमंच आलोचक रविन्द्र त्रिपाठी भी शामिल हुए. कार्यक्रम जूम मीटिंग द्वारा लाइव किया गया. देश और विदेशों से बड़ी संख्या में कलाकार इस कार्यक्रम से जुड़े रहे.

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कार्यक्रम के संयोजक भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि प्रतुल दास मूलतः बुर्ला, संबलपुर उड़ीसा के हैं. पिछले 22 वर्षों से समकालीन कला के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कलाकार के रूप में स्थापित हैं. प्रतुल दास समकालीन कला में अपनी चित्र शैली ही नहीं, बल्कि अपने विचारों और सरोकारों के लिए भी एक अलग पहचान रखते हैं. इनकी रेखाएं, रंग पारिस्थिति उस छोर तक जाते हैं, जहां पर्यावरण में हो रहे उथल-पुथल की चिंता है. इनके चित्रों में प्रकृति की खूबसूरती को आसानी से देखा और समझा जा सकता है. किसी भी प्रकार से कला प्रेमियों को कोई असहज या उलझन महसूस नहीं हो सकती. इनके कैनवास पर सिर्फ रंग या कुछ आकृतियां ही नहीं, बल्कि इनकी संवेदनशीलता और भावनाएं भी देख और समझ सकते हैं.

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प्रतुल दास ने कहा कि कलाकार के लिए कोई दायरा नहीं होना चाहिए. विचारों की स्वतंत्रता ही उसकी अभिव्यक्ति है. सिर्फ कला की शिक्षा ले लेने भर से कोई कलाकार नहीं हो सकता. बहुत से ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने कोई शिक्षा नहीं ली, लेकिन अच्छे प्रयोग और काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि हम कलाकारों का यह सामाजिक दायित्व बनता है कि हम संवेदनशीलता को अपने कला कर्म के माध्यम से अवश्य प्रस्तुत करें. इस दायित्व से भागें नहीं. कलाकार होना समाज के लिए सबसे बड़ा दायित्व है. इसे हर कलाकार को बख़ूबी समझना चाहिए. आज शहरीकरण ने सभी संबंधों और मूल्यों को बदला है. सिर्फ कलाकृतियों का ऊंचे-ऊंचे दामों में बिकना ही बड़ा कलाकार होने का अर्थ नहीं है.

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