लखनऊःख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय ने स्नातक स्तर पर उर्दू, अरबी या फारसी भाषा पढ़ने की अनिवार्यता समाप्त करने के लिए राजभवन से अनुमति मांगी है. विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर शनिवार को इस संबंध में राजभवन से अनुमति मांगी गई. अनुमति मिली तो इस विश्वविद्यालय में स्नातर स्तर पर उर्दू, अरबी, फारसी पढ़ने की अनिवार्यता समाप्त हो जाएगी. छात्रों को अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, जापानीज तथा अन्य विदेशी भाषाएं एवं 'इंट्रोडक्शन टू हिस्ट्री एंड कल्चर ऑफ लैंग्वेजेज' विषय पढ़ने का विकल्प मिलेगा.
एक साल में बदल गया स्वरूप
इस विश्वविद्यालय को हमेशा एक धर्म समुदाय से जोड़कर देखा जाता रहा है. इधर, पिछले एक साल में इसका स्वरूप बदला जा रहा है. पिछले वर्ष इसके नाम में परिवर्तन किया गया. ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी व फारसी विश्वविद्यालय से इसका नाम बदलकर ख्वाजा मुईनुद्दीन भाषा विश्वविद्यालय किया गया. अभी तक इस विश्वविद्यालय के लोगो में उर्दू का इस्तेमाल होता था. एक मार्च को नया लोगो जारी किया गया. इसमें उर्दू को हटा दिया गया. इसको लेकर काफी नाराजगी भी है.
कार्यपरिषद से लग चुकी है मुहर
भाषा विश्वविद्यालय की मीडिया प्रभारी डॉ. तनु डंग ने बताया कि विश्वविद्यालय की परिनियमावली के अनुसार स्नातक स्तर पर सभी विद्यार्थियों को उर्दू, अरबी या फारसी भाषाओं के प्रारंभिक स्तरीय अध्ययन को अनिवार्य किया गया है. बीती 5 फरवरी की कार्यपरिषद की बैठक में इस अनिवार्यता को समाप्त करने की अनुमति दे दी गई.