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खेलों में सुधार और बढ़ावा देने के लिए बेहतरीन पहल है खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स

खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स का आगाज गुरुवार को लखनऊ में हो चुका है. खेलों को बढ़ावा देने के लिए यह पहल काबिले तारीफ है. इससे खेलों को बढ़ावा मिलने के साथ तमाम प्रतिभाओं को उभरने के मौका मिलेगा. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण.

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Published : May 26, 2023, 10:27 PM IST

लखनऊ : प्रदेश में खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स का आरंभ हो चुका है. इसके तहत प्रदेश के चार शहरों लखनऊ, गोरखपुर, नोएडा और वाराणसी में विभिन्न खेल प्रतियोगियाओं का आयोजन किया जाएगा. गुरुवार को लखनऊ में शुरू हुए इन खेलों का समापन तीन जून को वाराणसी में होगा. खेलों को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई यह पहल बहुत ही सराहनीय है. इस तरह के खेलों से तमाम ऐसी प्रतिभाएं उभर कर सामने आ सकती हैं, जिन्हें अपना हुनर दिखाने का पर्याप्त अवसर नहीं मिला.

खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स के उद्घाटन के फाइल चित्र.
खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स से जुड़ी कुछ जानकारियां.
आज सोशल मीडिया और मोबाइल के इस दौर में बच्चे और युवा खेलों से दूर हो रहे हैं. ऐसे में इस तरह के आयोजन न सिर्फ नए पीढ़ी के लिए सेहत का खजाना खोलेंगे, बल्कि प्रतिभाएं भी सामने आ सकेंगे. इस तरह के आयोजनों से देश में क्रीडा संस्कृति को भी बढ़ावा देगी. इस प्रतियोगिता में हर साल हजारों युवा अपनी भागीदारी करते हैं. इस बार इस खेल प्रतियोगिता में देश के डेढ़ सौ विश्वविद्यालयों से चार हजार युवा प्रतिभाग कर रहे हैं. प्रतियोगिता में तीरंदाजी, मुक्केबाजी, वेट लिफ्टिंग, बास्केट बॉल, टेबल टेनिस, रग्बी, एथलेटिक्स, जूडो, कुश्ती, फुटबॉल, टेनिस, कबड्डी, तलवारबाजी, तैराकी, बैडमिंटन, हॉकी, वालीबॉल आदि लगभग बीस खेलों की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है. इन खेलों में छब्बीस वर्ष से कम आयु के युवा शामिल होते हैं. इन खेलों में आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की स्थिति बहुत ही खराब है. पदक तालिका में प्रदेश के विश्वद्यालयों का नाम मुश्किल से ही ढूंढ़े मिलता है.
खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स के उद्घाटन के फाइल चित्र.
खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स के उद्घाटन के फाइल चित्र.


केंद्र और राज्य सरकारें खेलों में अपनी स्थिति सुधारने के लिए लगातार कोशिशें कर रही हैं. निश्चितरूप से इसके नतीजे एकाएक नहीं आ जाएंगे. इसमें थोड़ा वक्त लगेगा. सरकारी तंत्र को यह भी देखना होगा कि यह आयोजन महज रस्मी न रहे. खेलों को लेकर सतत काम करने की जरूरत है. यदि इस तरह की प्रतियोगियाएं और आयोजन गांव-गिरांव तक लेकर आएं तो निश्चितरूप से खेलों में भातर का भविष्य बेहतर हो सकता है. पेश से शिक्षक डॉ. प्रदीप यादव कहते हैं अभी तक इन खेलों की जो स्थिति है, वह बहुत उत्साह जनक नहीं है. ऐसे आयोजनों को सरकारी तंत्र ग्लैमराइज तो कर देती है, पर यह नहीं देखती कि इससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को कैसे जोड़ा जा सके. लखनऊ में हो रही इस प्रतियोगिता का कोई आयोजन लखनऊ विश्वविद्यालय में नहीं किया जा रहा है. एक निजी विश्वविद्यालय, जहां एक खास वर्ग के विद्यार्थी आते हैं. ऐसे आयोजन होने से इसकी पहुंच सीमित ही रह जाएगी. सरकारी तंत्र को इस ओर ध्यान देना होगा. साथ ही इन खेलों की तैयारियां सालभर होनी चाहिए, ताकि पदक तालिका में प्रदेश की स्थिति में भी सुधार हो.


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