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सरकारी गाड़ी से साहब के घरेलू काम, अब लगेगा विराम

सरकारी पैसे को अपना समझ कर पानी की तहर बहाना सरकारी महकमें की फितरत है. सुविधा के नाम पर मिलने वाली सरकारी चीजों को लोग घर की संपदा समझ लेते हैं, फिर चाहे घर हो या गाड़ी. सरकारी गाड़ी में साहब के बच्चे स्कूल, कॉलेज जाते अक्सर दिख जाएंगे, यही नहीं मैडम तो बाजार जाती ही हैं वापसी में भरकर सब्जी भी लाती हैं. मगर अब सराकरी गाड़ी के इस मनमाने इस्तमाल पर KGMU प्रशासन हंटर चलाने जा रहा है.

सरकारी गाड़ी से साहब के घरेलू काम पर लगेगा विराम
सरकारी गाड़ी से साहब के घरेलू काम पर लगेगा विराम

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Published : Aug 13, 2021, 2:24 PM IST

लखनऊ: सरकारी वाहनों का अफसर जमकर फायदा उठाते हैं. फ्री का चालक जहां वाहन से साहब के बच्चों को स्कूल छोड़ते नजर आएगा, वहीं मैडम को भी बाजार ले जाना आम बात है. मगर, आमजन के पैसे को यूं धुंआ में उड़ाना अब केजीएमयू (KGMU) को रास नहीं आ रहा है. लिहाजा, आर्मी से रिटायर होकर कुलपति पद संभालने वाले ले.जनरल डॉ. विपिन पुरी ने मनमाने सिस्टम पर हंटर चलाने का फैसला किया है, ऐसे में अधीनस्थ अफसर अब घरेलू कामों में सरकारी वाहन से फर्राटा नहीं भर सकेंगे.



KGMU में 500 के करीब संकाय सदस्य हैं. इनमें से 30 डॉक्टर विभिन्न प्रशासनिक पदों पर हैं. इसके अलावा दूसरे कैडर के भी अफसर तैनात हैं. इन्हें शासकीय कार्य के लिए सरकारी वाहन मिले हैं. मगर इन वाहनों पर उनकी मनमानी चल रही है. संस्थान से मिले चालक उनके मौखिक फरमान से ही वाहनों को दौड़ा रहे हैं. वहीं, यह वाहन किस काम से गए, क्यूं गए? इसका कोई ठोस ब्योरा भी इनके पास नहीं है. बस, सरकारी काम के नाम पर डीजल-पेट्रोल की पर्ची धड़ल्ले से कट रही है. डीजल-पेट्रोल का मैनुअल वर्क होने से साहब के साथ-साथ चालकों की भी मौज है.

सरकारी गाड़ी से घरेलू काम पर लगेगा विराम
अब पेट्रो कार्ड-जीपीएस कसेगा शिकंजा
कुलपति ले.जनरल डॉ. विपिन पुरी के मुताबिक केजीएमयू में सरकारी वाहनों का उपयोग और उस पर आने वाले व्यय की कड़ी मॉनिटरिंग होगी. इसके लिए हर वाहन, एम्बुलेंस में जीपीएस सिस्टम लगेगा. इसके वाहनों की लोकेशन ट्रेस हो सकेगी. वहीं, डीजल-पेट्रोल के लिए मनमाना बिल थमाने या पर्ची बनवाने का सिलसिला खत्म होगा. अब पेट्रो कार्ड दिए जाएंगे. संस्थान के प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह के मुताबिक करीब 25 एम्बुलेंस हैं. यह मरीज की शिफ्टिंग के लिए हैं. इनका सालभर में 15 से 18 लाख का डीजल होता है. वहीं, कुल डीजल-पेट्रोल वाले करीब 70 वाहन संस्थान के पास हैं. इनका भी लाखों का बिल बनता है. नए सिस्टम से बेवजह के खर्चे को रोका जा सकेगा.

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