लखनऊ :अवध के कथक कलाकारों ने भले ही दुनिया में शहर को दुनिया में पहचान दिलाई हो, लेकिन अपनी ही जमीन पर अनदेखी का शिकार है. लखनऊ से ही पंडित लच्छू महाराज, पदमविभूषण पंडित बिरजू महाराज ने कथक को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई. लच्छू महाराज के अथक प्रयासों से ही कथक केंद्र की स्थापना हुई. कथक केंद्र के 51 वर्ष पूरे हो गए हैं. प्रदेश के पहले कथक केंद्र में सात वर्षों से निदेशक और कथक गुरु नहीं है.
कथक केंद्र के निदेशक व पहले कथक गुरु पंडिट लच्छू महाराज वर्ष 1972 से 1078 तक रहे. इसके बाद निदेशक विक्रम सिंघे बने जो बाद में कथक गुरु भी रहे. फिर निदेशक दमयंती जोशी और वर्ष 2000 में कथक नृत्यांगना कपिला राज निदेशक बनीं. इसी तरह कथक गुरुओं में राममोहन मिश्र, गुरु पंडित अर्जुन मिश्र व सुरेंद्र सैकिया आखिरी कथक गुरु रहे. वक्त-वक्त पर प्रशासनिक अधिकारियों ने निदेशक पद का कार्यभार संभाला, लेकिन कथक गुरु का पद अभी तक रिक्त है. मौजूदा समय में बिना कथक गुरु के आउटसोर्सिंग पर तैनात युवा कलाकर प्रशिक्षण देते हैं. कभी नामी कथक कलाकार देने वाली इस अकादमी के कथक केंद्र में महज सौ बच्चे ही प्रशिक्षण ले रहे हैं.