लखनऊ: 22 साल पहले 26 जुलाई 1999 की वह तारीख जो हमारे देशवासियों को अपनी बहादुर सेना पर गर्व कराती है. इसी दिन हमारे देश के रणबांकुरों ने दुश्मन सेना को धूल चटाते हुए कारगिल में भारत का झंडा बुलंद कर दिया था. इस लड़ाई की शुरुआत तब हुई थी, जब पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर घुसपैठ करके अपने ठिकाने बना लिए थे. करगिल युद्ध के दौरान कई भारतीय जांबाजों ने अपनी कुर्बानी दी, जिसकी वजह से भारत दोबारा अपने उस हिस्से पर नियंत्रण कर पाया, जहां पाकिस्तानी घुसपैठियों ने चुपके से कब्जा कर लिया था. इन्हीं में से एक नाम था कैप्टन मनोज पांडेय का. वह कारगिल वॉर (KARGIL WAR 1999) के ऐसे हीरो थे, जिनके बलिदान से इस युद्ध की इबारत लिखी गई थी.
लखनऊ के अमर शहीद कैप्टन मनोज पांडेय की अलग ही कहानी है. अपनी वीरता से उन्होंने दुश्मन सेना के छक्के छुड़ा दिए. दुश्मन देश भी परमवीर चक्र विजेता (मरणोपरांत) मनोज पांडेय की वीरता के आगे नतमस्तक हो गया. कैप्टन मनोज पांडेय ने देश की रक्षा में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. 26 जुलाई को देश कारगिल विजय के उपलक्ष में कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) मनाता है. देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडेय के पिता गोपीचंद पांडेय ने 'ईटीवी भारत' से एक्सक्लूसिव बातचीत की. उन्होंने कैप्टन मनोज के बारे में अपनी यादें साझा कीं.
सैनिक स्कूल से सेना में जाने का जागा जज्बा
परमवीर चक्र विजेता शहीद मनोज कुमार पांडेय के पिता गोपीचन्द्र पांडेय बताते हैं कि मनोज की पूरी पढ़ाई लिखाई राजधानी लखनऊ में हुई थी. बचपन से ही मनोज का खास व्यक्तित्व था. उनका सेना में जाने का मन उस वक्त बना जब उनका तत्कालीन यूपी सैनिक स्कूल में दाखिला हुआ. अब ये सैनिक स्कूल कैप्टन मनोज पांडेय सैनिक स्कूल के नाम से जाना जाता है. वहां, पर उन्होंने अपना शिक्षण कार्य शुरू किया तो मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्हें प्रेरणा मिली. फिर, उन्होंने सेना में जाने का अपना पूरा मन बनाया. उस समय बनारस में 67 बच्चों का इंटरव्यू हुआ था. यह विधि का विधान है कि मनोज अकेले उन 67 बच्चों में पास हुए. उसी समय सेना के अधिकारियों ने उनसे पूछा कि सेना में क्यों भर्ती होना चाह रहे हो ? मनोज ने अधिकारियों को सेना में जाने का उद्देश्य बताया था. कहा- उनका उद्देश्य परमवीर चक्र पाना है. इसीलिए भर्ती होने के लिए आया हूं.
इसे भी पढ़ें-लखनऊ: कारगिल विजय में क्या थी आर्टिलरी की भूमिका, जानिए मेजर आशीष चतुर्वेदी से
चारो बंकर अपने दम पर मनोज ने कर दिए थे तबाह
हां, यह सत्य है. 5 मई 1999 से कारगिल युद्ध में मनोज शामिल हुए. दो माह बराबर लड़ाई करने के बाद एक हफ्ते पहले उनको टारगेट दिया गया था कि खालूबार चोटी जो 7 किलोमीटर लंबी है उस पर 47 पाकिस्तानी कब्जा जमाए बैठे हुए हैं, जिनसे हमारी सेना को बहुत नुकसान पहुंचा है. जो भी सैनिक दिन में निकलता था उसको वह मार गिराते थे. यह सेना के सामने बड़ा अहम सवाल था. ऊपर जाकर 18000 फुट की ऊंचाई पर उन पाकिस्तानियों से टक्कर लेना आसान नहीं था. उस मुश्किल कार्य को मनोज ने करने का बीड़ा उठाया.