लखनऊ:कमलेश तिवारी हत्याकांड मामले में भले ही पुलिस ने सक्रियता दिखाते हुए 5 दिनों में हत्या करने वाले दोनों हत्यारों, तीन साजिशकर्ता वह एक मददगार को गिरफ्तार कर लिया हो, लेकिन इस पूरी घटना में लखनऊ पुलिस के ऊपर कई सवाल खड़े हुए हैं. वहीं लगातार सोशल मीडिया की निगरानी करने वाली (साइबर क्राइम) उत्तर प्रदेश पुलिस के दावों की असलियत सामने आ गई.
सोशल मीडिया की लापरवाही
जिस तरह से कमलेश तिवारी के हत्यारे पिछले लंबे समय से फेक आईडी बनाकर उनके संपर्क में थे और कमलेश तिवारी को लगातार जान से मारने की धमकी दी जा रही थी. इसको लेकर भी लखनऊ पुलिस ने कोई सतर्कता नहीं बरती. ऐसे में चर्चा यह है कि अगर लखनऊ पुलिस सोशल मीडिया पर होने वाली एक्टिविटीज पर नजर रखती और कमलेश तिवारी को लगातार मिल रही धमकियों पर कार्रवाई करती तो शायद अपराधियों का मनोबल इस कदर नहीं बढ़ता. राजधानी के बीचों-बीच कमलेश तिवारी की दर्दनाक हत्या नहीं होती.
फर्जी फेसबुक खाता बनाकर कमलेश से दोस्ती
कमलेश तिवारी की हत्या को अंजाम देने वाला अशफाक लंबे समय से कमलेश तिवारी के साथ फेसबुक के माध्यम से जुड़ा हुआ था. फेसबुक पर रोहित सोलंकी नाम से उसने फर्जी फेसबुक अकाउंट बनाया और उसी अकाउंट की मदद से कमलेश तिवारी से संपर्क साधा. अशफाक ने रोहित सोलंकी के नाम से फर्जी अकाउंट बनाकर दोस्ती बढ़ाई और लखनऊ पहुंचकर कमलेश तिवारी की हत्या कर दी.
साइबर व सोशल मीडिया पर लगाम लगाने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के पास कोई तंत्र नहीं है. पुलिस के पास कुशल कर्मचारी नहीं है, जिसके चलते साइबर क्राइम व सोशल मीडिया की निगरानी सही तरीके से नहीं हो पा रही है. इस पर लगाम लगाने के लिए मजबूती से काम करने की जरूरत है और कुशल कर्मचारियों की आवश्यकता है.
-अनुज अग्रवाल,साइबर एक्सपर्ट