लखनऊ:1913 के गदर आंदोलन और 1914 की कोमागाटा मारू घटना ने पंजाब के लोगों के बीच क्रांति की लहर शुरू कर दी थी. 1914 में शुरू हुए प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना में एक लाख 95 हजार भारतीय सैनिकों में से एक लाख 10 हजार सिर्फ पंजाब से थे. इन सैनिकों के बीच राष्ट्रवाद और देशभक्ति की ज्वाला धधक रही थी. क्योंकि उन्होंने दुनिया देख ली थी और उन्हें समझ में आ गया था कि देश का क्या मतलब है? अंग्रेजों को डर लगने लगा कि अगर इन सैनिकों ने विद्रोह कर दिया तो इन्हें रोकना मुश्किल हो जाएगा. ब्रिटिश सरकार के पास इन्हें रोकने के लिए कोई सख्त कानून नहीं था. पंजाब में बदलते परिवेश को देखते हुए अंग्रेजों ने एक नए कानून के बारे में सोचा. यह नया कानून रॉलेट एक्ट(Rowlatt Act)के रूप में सामने आना था. जब ब्रिटिश सरकार ने इस पर चर्चा करना शुरू किया तो विरोध भी शुरू हो गया और अखबारों ने भी इसका विरोध शुरू कर दिया.
रॉलेट एक्ट का विरोध: लेखक प्रशांत गौरव बताते हैं कि 1913 के गदर आंदोलन और 1914 की कोमागाटा मारू घटना ने पंजाब के लोगों में क्रांति की लहर पैदा करने का काम किया था. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, ब्रिटिश सेना में एक लाख 95 हजार भारतीय सैनिकों में से एक लाख 10 हजार सिर्फ पंजाब से थे. इन सैनिकों के बीच राष्ट्रवाद और देशभक्ति की ज्वाला धधक रही थी. क्योंकि उन्होंने दुनिया देख ली थी और उन्हें समझ में आ गया था कि देश का क्या मतलब है? अंग्रेजों को डर लगने लगा कि अगर इन सैनिकों ने विद्रोह कर दिया तो इन्हें रोकना मुश्किल हो जाएगा.उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सरकार के पास विद्रोह को रोकने के लिए कोई सख्त कानून नहीं था.
पंजाब में बदलते माहौल को भांपते हुए अंग्रेजों ने एक नया कानून बनाने पर विचार किया. यह नया कानून रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act) के रूप में सामने आना था. जब ब्रिटिश सरकार ने इस पर चर्चा करनी शुरू की, तो विरोध भी शुरू हो गया और पत्र-पत्रिकाओं ने भी इसके विरोध में लिखना शुरू कर दिया.इस काले कानून के खिलाफ सत्याग्रह के तहत देशभर में विरोध प्रदर्शन हुआ, पंजाब के कई हिस्सों में भी विरोध प्रदर्शन हुए. अमृतसर में भी इसके खिलाफ प्रदर्शन चल रहे थे.
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प्रो. प्रशांत गौरव बताते हैं, अमृतसर में दो व्यक्तियों, डॉ. सत्यपाल मलिक और डॉ. सैफुद्दीन किचलू ने इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया, दोनों के नेतृत्व में प्रदर्शन होते रहे. उस प्रदर्शन में महात्मा गांधी को भी बुलाने की योजना थी, महात्मा गांधी भी दो अप्रैल को मुंबई से पंजाब पहुंचने के लिए रवाना हुए, लेकिन पलवल में उन्हें रोक दिया गया और वापस मुंबई भेज दिया गया, इसलिए महात्मा गांधी अमृतसर नहीं पहुंचे. इन सबके बावजूद 18 मार्च, 1919 को रॉलेट बिल को 20 मतों के मुकाबले 35 मतों से पारित कर दिया गया. उन्होंने कहा कि 10 अप्रैल को अमृतसर के जिला अधिकारी इरविन ने सुबह 10 बजे डॉ. सत्यपाल और डॉ. किचलू को बुलाया और धोखे से दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तार करने के बाद उन्हें धर्मशाला भेज दिया गया.
अमृतसर में 20 हजार लोगों का वो प्रदर्शन: दो वरिष्ठ नेताओं की गिरफ्तारी के बाद अमृतसर में तनाव और बढ़ गया. कटरा जयमल सिंह, हॉल बाजार और ऊंचा पुल इलाकों में 20,000 से अधिक लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया. हिंसा की छिटपुट घटनाओं के बाद पंजाब के गवर्नर माइकल ओ'डायर (Michael O'Dwyer) ने स्थिति को संभालने के लिए जालंधर कैंट बोर्ड से सेना अधिकारी जनरल आर डायरे (Reginald Dyer) को बुलाया.लेखक प्रशांत गौरव के मुताबिक, फिर जालंधर से आर डायरे को बुलाया जा रहा है, क्योंकि उसका जनता के बारे में एक अजीब दृष्टिकोण है. उससे लगता था कि जनता किसी अंग्रेज के खिलाफ खड़ी होकर बदतमीजी कर ही नहीं सकती, क्योंकि यह हमारा देश है. ये तो कीड़े-मकोड़े हैं. उत्तरी क्षेत्र में केवल एक ही व्यक्ति था- जनरल आर डायर, जो गुस्से में बोलता था.
डायर का अमृतसर मार्च:जलियांवाला बाग हत्याकांड से एक दिन पहले जनरल आर डायर ने सशस्त्र बलों के साथ अमृतसर में मार्च किया और कर्फ्यू लगा दिया. उन्होंने बताया कि जब वे वापस घर पहुंचे, तो उन्होंने नक्शा देखा, नक्शा देखने के बाद उन्हें पता चला कि केवल 10 प्रतिशत क्षेत्र को कवर किया गया है, 90 प्रतिशत लोगों को पता नहीं था कि मार्शल लॉ या कर्फ्यू लगाया गया है. 90 प्रतिशत लोगों को पता नहीं चला कि शहर में कर्फ्यू लगा है.कर्फ्यू की जानकारी न होने के कारण लोग जलियांवाला बाग में एक सभा के लिए जमा हो गए. साथ ही बैसाखी का पर्व होने के चलते दूर-दूर से श्रद्धालु श्री हरमंदिर साहिब में पहुंचे थे. गोबिंदगढ़ पशु मेले में आए व्यापारी भी वहां मौजूद थे. वहीं, खुशहाल सिंह, मोहम्मद पहलवान और मीर रियाज-उल-हसन जासूसी कर रहे थे और पल-पल की जानकारी जनरल डायर को दे रहे थे.