लखनऊ:चांद के किस्से सुनते सुनाते अब हम चांद पर भी पहुंच गए. वर्षों की कड़ी मेहनत और लगन के बाद अंतरिक्ष विज्ञान में हिंदुस्तान लगातार परचम फहरा रहा है. हमारे वैज्ञानिक लगातार चांद के विभिन्न पहलुओं को जानने के प्रयास में लगे हुए हैं. 2008 में पहली बार चंद्रयान भेजने वाली भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी यानी ISRO आज नए कीर्तिमान रच रही है. ISRO अब 15 जुलाई को भारत के दूसरे चंद्र मिशन यानी चंद्रयान-2 को चांद पर भेजकर इतिहास रचने जा रही है. तो आइए जानते हैं चंद्रयान-2 से जुड़ी खास बातों के बारे में.
ISRO यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन 15 जुलाई को श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-2 को लॉन्च करेगा. लगभग 11 सालों बाद एक बार फिर हमारे वैज्ञानिक इस मिशन को पूरा करने जुटे हैं. इस मिशन को लेकर समूचे विश्व की निगाहें भारत पर टिकी हुईं हैं. इस मिशन के द्वारा हम चंद्रमा की सतह, वहां का वातावरण, भौगोलिक रचना, खनिजों की मौजूदगी, विकिरण, तापमान के साथ ही आने वाले समय में चंद्रमा की संरचना और उसके क्रमिक विकास जैसे मुद्दों के बारे में नई जानकारी हासिल करेगें.15 जुलाई को सुबह करीब 2 बजकर 51मिनट पर आंध्रप्रदेश में स्थित इसरो से चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण किया जाएगा.
चंद्रयान के ये हैं अहम कार्य
इस चंद्रयान में लैंडर ऑर्बिटर और रोवर नाम के तीन माड्यूल हैं. चंद्रयान-2 को लेकर GSLV MK III रॉकेट चांद की ओर बढ़ेगा. लगभग 50 से ज्यादा दिनों के सफर के बाद ये चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरकर वहां की जानकारियां एकत्रित करेगा. चंद्रयान-2 एक खास चंद्र मिशन है. ये चांद के दक्षिणी हिस्से पर उतरेगा जहां अभी तक कोई भी देश नहीं पहुंच सका है. दरअसल, चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सूर्य की किरणे सीधी नहीं पड़ती हैं इसलिए, यहां का तापमान कम होता है. चंद्रयान-2 को चांद की सतह पर लैंडिंग करते ही भारत चौथा देश बन जाएगा. इससे पहले रूस और चीन और अमेरिका अपने यानों को चांद की सतह पर भेज चुके हैं.
IIT कानपुर भी है इस मिशन में शामिल
ये चंद्रयान मानवरहित होगा ये चंद्रमा की सतह के कई रहस्यों से पर्दा उठाएगा. इस मिशन में ISRO के साथ ही IIT कानपुर भी शामिल है. आईआईटी कानपुर ने इसके मोशन प्लैनिंग सिस्टम पर काम किया है. यानी चांद की सतह पर रोवर कब, कहां और कैसे जाएगा. चंद्रयान-2 मिशन के तहत जब हमने IIT कानपुर के वैज्ञानिकों से बात की तो उन्होंने बताया. कानपुर आईआईटी के मेकैनिकल डिपार्टमेंट के प्रोफेसर आशीष दत्ता ने बताया कि 10 साल बाद दूसरी बार भारत चंद्रयान-2 को चांद पर भेज रहा है इससे पहले चंद्रयान-1 2009 में भेजा गया था. जब चंद्रयान-1 ने चांद की सतह पर पहुंच कर पानी को खोजा तो अंतरिक्ष विज्ञान में भारत का डंका बजने लगा. इस बड़ी उपलब्धि के बाद भारत अब दूसरे मून मिशन की तैयारी कर चुका है.
चंद्रयान के ये तीन हिस्से हैं खास
इसका वजन लगभग 3800 किलो है, इसको बनाने में कुल लागत लगभग 1000 करोड़ रुपये है. चंद्रयान-2 चांद पर 52 दिन बिताएगा. चंद्रयान-2 के 3 हिस्से हैं, पहला लैंडर जिसका नाम विक्रम रखा गया है. दूसरा है ऑर्बिटर, जो चंद्रमा का चक्कर लगाएगा साथ ही तीसरा और अंतिम भाग रोवर है, जिसका नाम प्रज्ञान रखा गया है, यह चंद्रमा का चक्कर लगाएगा और सोलर एनर्जी से चलेगा. ये चांद की सतह पर घूम-घूमकर मिट्टी और चट्टानों के नमूने जमा करेगा. सितंबर तक चंद्रयान चांद की सतह पर उतर सकता है. उतरने के बाद लैंडर और रोवर 14 दिनों तक एक्टिव रहेंगे, जबकि ऑर्बिटर 1 साल तक एक्टिव रहकर चांद की कक्षा में चक्कर लगाता रहेगा. इस मिशन से शोधकार्य के साथ-साथ अंतरिक्ष विज्ञान में भी नई खोजों के रास्ते खुलेंगे.
GSLV MK-III रॉकेट है खास
इस बार ISRO ने सबसे ताकतवर GSLV MK-III रॉकेट को लॉन्च के लिए चुना है, जिसका नाम बाहुबली दिया गया है. सबसे खास बात यह है कि इसकी मदद से चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों के गड्ढों में बर्फ के होने का भी पता लगाया जाएगा. पूरा देश चंद्रयान-2 की सफलता के साथ ही अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक और उपलब्धि का जश्न मनाने के लिए तैयार है.