लखनऊ: उत्तर प्रदेश में परिवहन विभाग के विशेष सचिव आईएएस अधिकारी डॉक्टर अखिलेश मिश्रा (poet ias akhilesh mishra) तामझाम से दूर लोगों में अपनी सुलभता और सादगी के लिए जाने जाते हैं. हालांकि सिर्फ यही उनकी पहचान नहीं है. पीलीभीत (Pilibhit) जिले के डीएम रहते उन्होंने गोमती के उद्गम स्थल माधोटांडा में नदी के पुनर्जीवन के लिए जो काम किया उसे लोग आज भी नहीं भूलते. यही नहीं वह एक मंचीय कवि और शायर भी हैं. प्रशासनिक दायित्वों के साथ वह इसके लिए समय कैसे निकाल पाते हैं? एक कवि या शायर के साथ वह समाज के विभिन्न विषयों को उठाने में न्याय कैसे कर पाते हैं? वह जिन सपनों को लेकर इस सेवा में आए थे, क्या वह पूरे हो पाए? इन्हीं विषयों पर हमने डॉ. अखिलेश मिश्रा से बातचीत की .
मूलरूप से बनारस के निवासी डॉ. मिश्रा की आरंभिक शिक्षा केंद्रीय विद्यालय से हुई और उच्च शिक्षा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से. प्रशासनिक सेवा में आने के बाद भी उनके व्यक्तित्व में एक बनारसी अंदाज और विद्रोही तेवर झलकता है. यह उनकी कविताओं में देखा जा सकता है.
अब्दुल्ला बुखारी हों, ठाकरे हों तोगड़िया,
करते हो सियासत खुदा-भगवान बेचकर !
मुंशी, वकील, अहलम, ये हाकिम ये पेशकार,
हिस्सा बटेगा सबमें ये फरमान बेचकर !
चिट्ठी तो लिख दिया है, पता क्या लिखे बिटिया,
बाबुल ने शादी कर दिया मकान बेचकर...!
शायद यही कारण कि वह अब तक के सेवाकाल में 33 बार स्थानांतरण का सामना कर चुके हैं. वह कहते हैं कि जब आप किसी पद पर हैं, तो यह आपकी जिम्मेदारी है कि जो गलत लगे उसका विरोध करें. जेनेटिक्स विषय में पीएचडी डॉ. मिश्रा ने बड़ी बेबाकी से न्याय व्यवस्था पर लिखा है...
अब कहां इस मुल्क में कातिल को फांसी हो रही है,
अब अदालत में खड़ी मूरत रुआसी हो रही है...!