लखनऊ : तमाम बीमा पॉलिसी देने वाली कंपनियां अब अपने नियम और शर्तें सिर्फ अंग्रेजी में ही नहीं दे सकेंगी, बल्कि इसके साथ ही हिंदी में भी और स्पष्ट रूप से बड़े अक्षरों में नियम एवं शर्तें लिखने का प्रावधान करना पड़ेगा. राज्य उपभोक्ता आयोग ने एक मामले की सुनवाई करते हुए बड़ा आदेश दिया है, जिसमें कहा गया है कि बीमा कंपनियों को ग्राहकों को आसान और सरल भाषा में अपने नियम और शर्तें देनी होंगी, जिससे वह लोग क्लेम करने में परेशान ना हों. अंग्रेजी में और छोटे-छोटे अक्षर में नियम व शर्तें लोग पढ़ते नहीं हैं और बाद में धोखाधड़ी का शिकार होते हैं, ऐसे में अब उपभोक्ता आयोग ने हिंदी में भी नियम शर्तें देने की बात कही है.
3.20 लाख रुपए का हर्जाना भरने का आदेश :राज्य उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष जस्टिस अशोक कुमार ने उपभोक्ता आयोग में पिछले 14 साल से चल रहे एक मामले की सुनवाई करते हुए जीवन बीमा कंपनी को 3.20 लाख रुपए का हर्जाना भरने का आदेश दिया है. आगरा निवासी मान सिंह ने वर्ष 2009 में अपने 13 वर्षीय बेटे अजय कुमार के नाम से पॉलिसी ली थी. प्रीमियम की दो किस्त जमा कर दी थीं, तभी 2010 में करंट लगने से बेटे अजय की मौत हो गई थी. एलआईसी ने यह कहते हुए उन्हें क्लेम देने से इनकार कर दिया था कि बीमा पॉलिसी में बेटे की उम्र 12 साल थी, जबकि 14 साल बताया गया है.
'अक्षर भी बड़े छापे जाएं' : इस पूरे मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस अशोक कुमार ने आदेश दिया कि पीड़ित व्यक्ति को 3.20 लाख रुपए 7 फीसदी ब्याज के साथ भारतीय जीवन बीमा निगम को देना होगा. इसके साथ ही उन्होंने अपने आदेश में लिखा कि बीमा एजेंट अपना लाभ देखकर ग्राहकों को गुमराह करते हैं और पॉलिसी जारी करते हैं. बीमा कंपनियों की तरफ से भी अंग्रेजी में और छोटे अक्षरों में नियम शर्तें लिखी होती हैं जो सामान्य तौर पर लोग नहीं पढ़ पाते हैं या उसे समझ नहीं पाते हैं. बीमा एजेंट के भरोसे के आधार पर लोग अपना बीमा खरीदते हैं. बाद में जब पॉलिसी खरीदने वाला व्यक्ति क्लेम के लिए जाता है तो उसे अंग्रेजी में छपी शर्तें और नियम का हवाला देकर कई बार क्लेम देने से इनकार कर दिया जाता है. ऐसी परिस्थितियों को देखते हुए राज्य उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष जस्टिस अशोक कुमार ने अपने आदेश में कहा है कि सभी बीमा कंपनियां अपने नियम, दस्तावेज, फॉर्म आदि हिंदी भाषा में भी छपवाने का काम करें. साथ ही अक्षर भी बड़े छापे जाएं, जिससे लोगों को उन्हें पढ़ने और समझने में दिक्कत ना हो. उन्होंने कहा कि अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी भाषा में भी नियम शर्तें बीमा कंपनियों को देनी होगी.