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Indian Air Force News : वायुवीर को लड़नी पड़ी विकलांगता पेंशन की जंग, जानिए क्या थी वजह - भारतीय वायु सेना

देश की रक्षा में बीमारी और विकलांगता का शिकार होने की दशा में पेंशन के लिए जवानों को कानूनी जंग लड़ना काफी मानसिक आघात पहुंचाता है. ऐसे ही एक प्रकरण में वायुवीर एक्स सार्जेंट संजय कुमार सिंह को 27 साल तक सेवा देने के बाद सशत्र-बल अधिकरण में मुकदमा लड़ना पड़ा.

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Published : Mar 23, 2023, 5:05 PM IST

लखनऊ : वैश्विक पटल पर विशेष स्थान रखने वाली भारतीय वायु सेना के वायुवीर एक्स सार्जेंट संजय कुमार सिंह 27 साल एयरफोर्स में तैनात रहे. उसके बाद अपने हक के लिए लखनऊ के सशत्र-बल अधिकरण में उन्हें फरियाद लगानी पड़ी. काफी समय तक चली पेंशन की जंग को आखिरकार वायु सेना के जवान ने अपने हौसले के पर पर जीत ही लिया. अब रक्षा मंत्रालय को अधिकरण के फैसले के बाद वायुवीर संजय कुमार सिंह को पेंशन देनी ही पड़ेगी.


बिहार के भोजपुर निवासी वर्तमान में लखनऊ निवासी वायु सैनिक एक्स सार्जेंट संजय कुमार सिंह वर्ष 1995 में एयरमैन के रूप में भर्ती हुए और 2021 में पेंशन भेज दी गई, जबकि उन्हें प्राइमरी हायपर टेंशन और सीएडी जैसी घातक बीमारियां थीं. इसके बावजूद रक्षा-मंत्रालय ने इंकार करते हुए कहा कि बीमारियां पीस एरिया भुज और बंगलौर में हुई हैं कह कर उच्चाधिकारियों ने भी अपील खारिज कर दी. वायुवीर ने हिम्मत नहीं हारी और अधिवक्ता विजय कुमार पांडेय के माध्यम से सशत्र-बल अधिकरण लखनऊ में वाद दायर किया. सुनवाई के दौरान अधिवक्ता विजय कुमार पांडेय ने वादी का पक्ष रखते हुए कहा कि वादी दिव्यांगता पेंशन का हक़दार है, क्योंकि बीमारी 26 साल बाद हुई, भर्ती के समय स्वस्थ था. पीस और फील्ड पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सैनिकों के पक्ष में दे चुका है. विपक्षी मनमाना रवैया अपना रहे हैं जिससे सहमत नहीं हुआ जा सकता. प्रकरण धर्मवीर सिंह और रामअवतार मामले से आच्छादित है. इस पर वायुसेना की तरफ से जबर्दस्त विरोध किया गया.

दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति उमेश चन्द्र श्रीवास्तव (रिटायर्ड) और वाईस एडमिरल अतुल कुमार जैन (रिटायर्ड) की खंडपीठ ने वादी के पक्ष में फैसला सुनाया. खंडपीठ ने कहा कि बीमारी की शुरुआत नौकरी के 14-15 साल बाद हुई और वादी 50 प्रतिशत दिव्यांग है. बीमारी को पीस और फील्ड के आधार पर नहीं देखा जा सकता. तर्क दिया कि वायु सेना के अपने तनाव होते है और पूरा सत्य यदि सामने नहीं आता तो संदेहास्पद परिस्थितयों का लाभ वादी को ही जाएगा, इसलिए वादी 75 प्रतिशत पेंशन का हक़दार है. उसे डिस्चार्ज की तारीख से चार महीने के अंदर यह लाभ दिया जाए. नहीं तो सरकार को आठ प्रतिशत ब्याज सहित पूरी रकम के साथ-साथ आजीवन पेंशन देनी होगी .

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