लखनऊ: देश में कोरोना के खिलाफ जंग जारी है. एक तरफ जहां स्वास्थ्य ढांचे को अपग्रेड किया जा रहा है. वहीं दूसरी तरफ वैक्सीनेशन अभियान भी छेड़ दिया गया है, मगर भारत के टीकाकरण प्रोटोकॉल में अभी डबल डोज का ही नियम है. ऐसे में क्या आपका शरीर लंबे वक्त तक वायरस से सुरक्षित रह पाएगा, इसे लेकर लोगों में ऊहापोह की स्थिति है. उधर, सरकार भी इस मसले पर खामोश है. वहीं अंदर खाने एक कंपनी देश में तीसरी डोज के ट्रायल को लेकर भी प्लानिंग कर रही है. उम्मीद है कि यह ट्रायल बूस्टर डोज का रास्ता साफ करेगा.
वैक्सीन के बूस्टर डोज पर डॉ. सुब्रत चन्द्रा की राय. 15 जनवरी से शुरू हुआ कोविड वैक्सीनेशन
देश में 15 जनवरी से कोरोना वैक्सीनेशन अभियान शुरू किया गया. सरकार ने पहले हेल्थ वर्करों के टीकाकरण का फैसला किया. इसके बाद फ्रंटलाइन वर्करों का वैक्सीनेशन शुरू किया गया. बाद में 60 वर्ष से ऊपर 45 साल से अधिक लोगों का वैक्सीनेशन किया गया. अब 45 साल से ज्यादा सभी लोगों का वैक्सीनेशन किया जा रहा है. साथ ही पांचवें चरण में 18 से 44 साल तक के लोगों का टीकाकरण किया जाने लगा है.
अब तक लग चुकी है करीब 20 करोड़ डोज
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देश में अब तक करीब 20 करोड़ डोज लग चुकी है. वहीं यूपी में मंगलवार तक 1 करोड़ 65 लाख 43 हजार 234 डोज लग चुकी हैं. इसमें दूसरी डोज अभी 33 लाख 63 हजार 47 लोगों को लगी है. अब सवाल यह है कि टीकाकरण की इस रफ्तार से पूरी आबादी को कब तक वैक्सीन की डबल डोज लग पाएगी. वहीं डबल डोज भी लोगों को कब तक वायरस से सुरक्षा प्रदान करेगी.
तीन माह में खत्म होने लगती एंटीबॉडी
लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुब्रत चन्द्रा ने कोविड वैक्सीनेशन अभियान की ऑनलाइन स्टडी की है. साथ ही वायरस के प्रभाव का भी आंकलन किया है. डॉ. सुब्रत के मुताबिक, अभी तक हुए शोध में संक्रमित व्यक्ति में कोरोना के खिलाफ बनी एंटीबॉडी 3 माह में खत्म होने लगती है और 6 माह में नगण्य हो जाती है. ऐसे में वैक्सीन से बनी एंटीबॉडी की मियाद भले ही अभी स्पष्ट न की गई हो, मगर यह ताउम्र नहीं बनी रह सकती. केजीएमयू में ही वैक्सीनेशन कराने वाले स्टाफ की एंटीबॉडी चेक की गई तो दो फीसदी भी एंटीबॉडी नहीं मिली. वहीं कई कर्मियों में एंटीबॉडी का लेवल कम पाया गया.
अमेरिका में गाइड लाइन में शामिल हुई बूस्टर डोज
डॉ. सुब्रत चन्द्रा ने दुनिया की सभी कंपनियों की 11 कोरोना वैक्सीन, उनके प्रभाव के दावे व गाइड लाइन की पड़ताल की. इसमें मॉडर्ना ने 94, फाइजर ने 95, स्पुतनिक लाइट 79, स्पुतनिक वी 92, ऑक्सफोर्ड आस्ट्राजेनेका 78, बीबीआईबीपी-कॉर वी 78, जॉनसन एंड जॉनसन की नोवावैक्स 66, को-वैक्सीन 78, कॉनवीडिसिया ने 66 एफेसिएंसी का दावा किया है. वहीं सबसे ज्यादा वायरस से सुरक्षा का दावा करने वाली अमेरिकन कंपनी मॉडर्ना व फाइजर ने दो डोज के बाद बूस्टर डोज को गाइड लाइन में शामिल कर लिया है. यह डोज 6 माह से 12 माह के बीच दिया जाएगा.
भारत में तीसरी डोज़ के ट्रायल पर मंथन
डॉ. सुब्रत चन्द्रा के मुताबिक अमेरिका में 6 माह से 12 माह के भीतर बूस्टर डोज की गाइड लाइन बन गई है. वहीं भारत की को-वैक्सीन निर्माता कंपनी भी ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया से तीसरी डोज के लिये ट्रायल की अनुमति के लिए प्रयासरत है. ऐसे में देश में बूस्टर डोज को लेकर भले ही अभी गाइड लाइन नहीं बनी हो, लेकिन कंपनी का यह ट्रायल सम्भवतः बूस्टर डोज को लेकर की जा तैयारी ही है. उन्होंने कहा कि वायरस से लंबी सुरक्षा के लिए बूस्टर डोज की भी आवश्यकता होगी. देश में इंफ्यूएंजा समेत ज्यादातर वैक्सीन की बूस्टर डोज लग रही हैं. ऐसे में कोरोना वायरस के सफाये के लिए भी बूस्टर डोज का अहम रोल होगा.
देश में वैक्सीन की गणित
आबादी
कुल आबादी: लगभग 135 करोड़
18 से 44 साल: लगभग 62 करोड़
45 साल से ऊपर : लगभग 44 करोड़
18 से कम आयु : लगभग 32 करोड़
अनुमानत: आवश्यक डोज
- 18 से 44 साल के लिए करीब 118.5 करोड़ डोज़ की और जरूरत
- 45 साल से ऊपर के लिए अभी लगभग 70 करोड़ डोज़ की और जरूरत
- 18 साल से ऊपर सभी 106 करोड़ लोगों को साल भर में टीका लगाने के लिए रोज 54 लाख टीके लगाने होंगे
- हर्ड इम्युनिटी के लिए 70 फीसद आबादी को एक साल में टीका लगाने के लिए रोज 40 लाख लोगों को टीका लगाना होगा
- देश में रोज औसतन 20-25 लाख लोगों को लग पा रही डोज
- टीकाकरण में रफ्तार के लिए स्वदेशी टीका की उत्पादन क्षमता बढ़ानी होगी
- राज्यों को समय पर वैक्सीन की आपूर्ति के लिए विदेशी कंपनियों की अनुमति
- प्राइवेट टीकाकरण के केन्द्रों को बढ़ाया जाए. इन पर 24 घण्टे, सातों दिन की सुविधा हो
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