लखनऊ : एक्लेम्पसिया (Eclampsia) एक गंभीर जटिलता होती है. इस स्थिति में गर्भवती महिला को हाई ब्लड प्रेशर रहने के कारण दौरे पड़ने लगते हैं. क्वीन मैरी अस्पताल (Queen Mary Hospital) की वरिष्ठ डॉ. सीमा अग्रवाल ने बताया कि अगर एक्लेम्पसिया का इलाज न किया जाए तो मां और बच्चे की जान को खतरा हो सकता है. प्रदेश में लगभग 14 फीसदी गर्भवती महिलाओं की मृत्यु एक्लेम्पसिया के कारण होती है. जब महिलाएं पांच महीने की प्रेग्नेंट होती है उस समय शरीर के हार्मोनस में बदलाव होता है. गर्भावस्था के दौरान ब्लड प्रेशर का बढ़ जाना घातक साबित हो सकता है. नॉर्मल किसी व्यक्ति में जब ब्लड प्रेशर बढ़ता है, उस समय भी खतरनाक होता है, लेकिन जब यही ब्लड प्रेशर गर्भावस्था के दौरान किसी महिला का बढ़ता है. उस समय महिला को झटके आते हैं और यह झटके मां और बच्चे दोनों के लिए काफी ज्यादा खतरनाक होता है.
प्रदेश में एक्लेम्पसिया से पीड़ित गर्भवतियों की बढ़ी संख्या, जानिए क्या है बचाव का तरीका...
एक्लेम्पसिया (Eclampsia) एक गंभीर जटिलता होती है. इस स्थिति में प्रेगनेंट महिला को हाई ब्लड प्रेशर रहने के कारण दौरे पड़ने लगते हैं. महिलाएं पांच महीने की प्रेग्नेंट होती है उस समय शरीर के हार्मोनस में बदलाव होता है.
इसे भी पढ़ेंःबुलन्दशहरः प्रेगनेंट महिला को चारपाई पर लेकर घूमते रहे परिजन, जानिए क्यों
एक्लेम्पसिया के कारण
- ब्लड प्रेशर बढ़ जाना
- रक्त वाहिका से संबंधित समस्याएं
- मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र (न्यूरोलॉजिकल) से जुड़े कारक
- आहार
- जीन
शुरुआती लक्षण
- हाई बीपी
- चेहरे या हाथों में सूजन
- सिरदर्द
- अधिक वजन बढ़ना
- जी मचलाना और उल्टी
- नजर से संबंधित समस्याएं जिसमें कम दिखना या धुंधला दिखना शामिल है.
- पेशाब करने में दिक्कत
- पेट में दर्द (विशेष रूप से पेट के ऊपर दाईं तरफ)
दौरे पड़ना
- बहुत ज्यादा घबराहट होना
- बेहोशी की हालत
उपाय
- गर्भावस्था के दौरान समय-समय पर बीपी की जांच आवश्यक है.
- डिलीवरी का समय तय करने से पहले डॉक्टर बीमारी की गंभीरता के साथ-साथ ये देखते हैं कि गर्भ में शिशु का कितना विकास हो चुका है.
- अगर डॉक्टर आपमें प्रीक्लेम्पसिया के हल्के लक्षणों का निदान करते हैं, तो वे स्थिति को लगातार मॉनिटर कर सकते हैं और इस स्थिति को एक्लेम्पसिया में बदलने से रोकने के लिए दवा दे सकते हैं.
- गंभीर रूप से प्रीक्लेम्पसिया या एक्लेम्पसिया से ग्रस्त महिलाओं को डॉक्टर जल्दी प्रसव का सुझाव दे सकते हैं. प्रभावित महिला के लिए देखभाल की योजना इस बात पर निर्भर करेगी कि बीमारी की गंभीरता क्या है और प्रेग्नेंसी कितने महीने की हो चुकी है.
- इलाज के तौर पर दौरों को रोकने के लिए डॉक्टर दवा दे सकते हैं. शुरुआती लक्षण दिखाई देने पर संपर्क करें.
- इसके अलावा वे हाई बीपी को कंट्रोल करने के लिए भी दवा लिख सकते हैं. अगर बीपी फिर भी हाई रहता है तो प्रसव करवाने की जरूरत पड़ सकती है.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप