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यूपी में लगातार बढ़ रही हैं मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं, आखिर क्यों आबादी वाले क्षेत्रों में घुसपैठ कर रहे Leopards

उत्तर प्रदेश के कई जिलों से मानव वन्यजीव संघर्ष (Human Wildlife Conflict) की घटनाएं अक्सर सुनने को मिल जाती हैं. बीते दिनों राजधानी लखनऊ में शहीद पथ पर तेंदुए की हादसे में मौत से आबादी क्षेत्रों में हिंसक जीवों की सक्रियता बढ़ने की बात सामने आई है. ऐसे में सवाल यह है कि वन विभाग या संबंधित एजेंसियां वन्यजीवों से सुरक्षा और मानव वन्यजीव संघर्ष रोकने को लेकर क्या कर रही हैं.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 16, 2023, 2:19 PM IST

लखनऊ :उत्तर प्रदेश के कई जिलों में मानव और वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं (Human Wildlife Conflict) बढ़ती जा रही हैं. पिछले छह माह में कई लोगों की मौत हुई तो काफी लोग ऐसी घटनाओं में घायल भी हुए हैं. वन विभाग के पास ऐसी घटनाएं रोक पाने के लिए कोई योजना नहीं है. वहीं लोगों में इन घटनाओं को लेकर आक्रोश बढ़ता जा रहा है. वन क्षेत्रों के आसपास बसे गांवों के लोग बाड़ लगाने की मांग कर रहे हैं तो वहीं तमाम लोग ऐसे भी हैं, जो चाहते हैं कि नरभक्षी हो चुके बाघों और तेंदुओं को काबू कर अन्यत्र ले जाया जाए. सबसे अधिक चिंता का विषय है, तेंदुओं की बढ़ती तादाद. देखा जा रहा है कि तेंदुए गन्ने के खेतों में प्रजनन करने लगे हैं और इन खेतों को अपना आवास बना लिया है. जब खेत कटते हैं, तब यह जानवर ज्यादा दिखने लगते हैं और हमलों की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं.

मानव वन्यजीव संघर्ष.


वाइल्ड लाइफ के जानकार बताते हैं कि तेंदुओं की अपेक्षा बाघों और मानव में संघर्ष की घटनाएं बहुत कम हैं. वनों से सटे क्षेत्रों में यदाकदा ऐसी घटनाएं हो जाती हैं, जबकि तेंदुए के हमले बहुतायत में हो रहे हैं. नेपाल की तराई स्थिति सीमावर्ती गोरखपुर, बलरामपुर, बहराइच, श्रावस्ती, लखीमपुर और पीलीभीत आदि जिलों में तेंदुओं के हमलों की वारदातें सबसे अधिक हो रही हैं. यह सभी जिले गन्ना उत्पादन के लिए भी जाने जाते हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भी कई जिले तेंदुओं का प्रकोप झेल रहे हैं. इनमें बिजनौर जिला सबसे ज्यादा प्रभावित है.अन्य जिलों में भी तेंदुओं के हमले होते रहे हैं. बाघ, तेंदुए और इस नस्ल के अन्य वन्य जीव ऊंची घास में रहना पसंद करते हैं. यह घास गन्ने से मिलती-जुलती है. इसी कारण तेंदुए गन्ने के खेतों को अपना स्थायी ठिकाना बनाने लगे हैं. साल में दो बार जब गन्ने की फसल कटती है, तब यह हमले बढ़ जाते हैं, क्योंकि तेंदुओं के पास छिपने की जगह नहीं रहती है. मार्च-अप्रैल और नवंबर-दिसंबर के महीनों में गन्ने की फसल कटती है और इन महीनों में ही तेंदुओं के हमले बढ़ जाते हैं. गन्ने के खेतों ने तेंदुओं को छोटे जीव-जंतु भी खाने के लिए मिल जाते हैं. इसलिए बाकी समय इन्हें खाने की तलाश में बाहर नहीं निकलना पड़ता है.

मानव वन्यजीव संघर्ष पर रिपोर्ट.


12 नवंबर को बलरामपुर स्थित सोहेलवा वन्य क्षेत्र स्थित गांव में छह वर्षीय बच्चे को तेंदुआ घसीट ले गया. ग्रामीणों ने तेंदुए का पीछा किया, तो पता चला कि वह बच्चे को पास के गन्ने के खेत में ले गया है. बाद में बच्चे का शव बरामद हुआ. एक सप्ताह पहले भी इसी गांव से तेंदुआ एक तीन साल की बच्ची को उठा ले गया था. पांच दिन बाद बच्ची का शव बरामद हुआ था. तेंदुओं के हमलों से हो रही मौतों से नाराज लोगों से मिलने पहुंचे अधिकारियों ने पीड़ित परिजनों से की मुलाकात कर भरोसा दिलाया. वन विभाग के प्रति जताई अपनी नाराजगी. आदमखोर तेंदुए को सूट करने की मांग की. 12 नवंबर को ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के हसनपुर क्षेत्र में तेंदुए ने मोटरसाइकिल सवार पर हमला कर दिया. जब वह किसी तरह बचने में सफल हुआ, तो तेंदुए ने साइकिल सवार पर हमला बोल दिया. बाद में वन विभाग ने तेंदुए को पकड़ने के लिए पिंजरा लगाया, किंतु तेंदुआ पकड़ा नहीं जा सका.

मानव वन्यजीव संघर्ष पर रिपोर्ट.



11 नवंबर को पीलीभीत टाइगर रिजर्व क्षेत्र के निकट स्थित एक गांव में बाघ ने चरवाहे को मारडाला था. बाद में स्थानीय लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया था. पिछले छह माह में पीलीभीत में बाघ और तेंदुओं के हमलों में चार लोगों ने दम तोड़ा है. कई लोग घायल भी हुए. हालांकि इसके बाद एक बाघ को पकड़ा भी गया, लेकिन मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं लगातार जारी हैं. क्षेत्र के ग्रामीणों ने बचाव के लिए वन प्रशासन से तारबंदी करने की मांग की है. वहीं 02 नवंबर को श्रावस्ती जिले के दो गांवों में तेंदुओं ने हमले किए. इन घटनाओं में बच्चों सहित दो लोग घायल हो गए, बाद में दोनों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. इससे पहले 21 अक्टूबर को बहराइच जिले के मिहींपुरवा क्षेत्र में एक आठ साल की बच्ची पर तेंदुए ने हमला कर दिया, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गई. क्षेत्र में उपरोक्त घटना से एक पहले पखवारे में दो लोगों की मौत गई थी, जबकि छह लोग घायल हुए थे. विगत 02 सितंबर को बहराइच जिले के मिहींपुरवा क्षेत्र में तेंदुए ने एक अधेड़ महिला पर हमला कर दिया. घटना में महिला को गंभीर चोटें आई थीं, जिन्हें बाद में अस्पताल में भर्ती कराया गया. इस घटना से ग्रामीणों में खौफ का माहौल है. वहीं इससे पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बिजनौर जिले में करीब सात माह में पंद्रह लोगों ने तेंदुओं के हमलों में दम तोड़ा है. इसके बाद वन विभाग ने कई टीमें बनाकर तेंदुओं को पकड़ने की रणनीति बनाई, लेकिन उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली है.

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इस संबंध में वन्यजीव संरक्षण के लिए सक्रिय रूप से काम करने वाले अली हसनैन आब्दी 'फैज' कहते हैं 'बाघों और तेंदुओं के ज्यादातर हमले वन क्षेत्रों से सटे इलाकों में ही हो रहे हैं. देखना चाहिए कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि वन क्षेत्रों में लोगों का दखल बढ़ रहा हो. दुधवा, कतर्नियाघाट और सोहेलवा के जंलगों में भी कई गांव आबाद हैं. स्वाभाविक है कि ऐसी जगहों पर लोगों के लिए संकट हो रहता ही है. इन क्षेत्रों में चोरी-छिपे जंगलों की कटान भी हुआ करते हैं. कई बार मामले पकड़े भी जाते हैं और लोगों पर कार्रवाई भी होती है. इन जंगलों का क्षेत्रफल इतना बड़ा है कि बाड़ लगाना संभव नहीं है. ऐसे में यदि लोग सावधानी बरतें तो ऐसी घटनाओं को टाला जा सकता है. वन्यजीव हमले तभी करते हैं, तब उन्हें इंसान से नुकसान का अंदेशा होता है. यदि लोग सजग रहें और वन क्षेत्रों में असमय विचरण न करें, तो घटनाओं में सहज ही कमी आ सकती है. गन्ने के खेतों में तेंदुओं के निवास के कारण होने वाली घटनाओं को भी थोड़ी सावधानी से टाला जा सकता है. यदि किसी को ऐसे जानवर दिखते हैं, तो उसे तत्काल वन विभाग को खबर करनी चाहिए. वह इसका निदान करेंगे.

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