उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

लखनऊः गुम होती जा रही कुम्हारों की चाक, अब है मजदूरी से आस - कुम्हार

मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार आज अपने हुनर को छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं. कुम्हारों का कहना है कि इस धंधे में उनका बिल्कुल भी फायदा नहीं है. इसकी वजह से उनको अपने इस हुनर को छोड़ना पड़ रहा है. आज दिहाड़ी मजदूर बनकर वह अपनी जिंदगी को काटने पर मजबूर हैं.

गुम होती जा रही है कुम्हारों की चाक.

By

Published : Oct 26, 2019, 7:58 AM IST

लखनऊः दिवाली आने पर कुम्हारों को लगता है कि इस बार उनकी आमदनी बढ़ जाएगी, लेकिन आधुनिकता के इस माहौल में कुम्हारों के दिन जाने कब अच्छे होंगे. ईटीवी भारत की टीम कुम्हारों की वास्तविक स्थिति को देखने राजधानी लखनऊ के सीमावर्ती इलाकों में पहुंची. गांव के कुम्हारों का कहना है कि मिट्टी के बर्तन बनाने में उनका फायदा न के बराबर होता है. आम दिनों में रोज की आमदनी 50 से 100 रुपये के बीच हो पाती है.

गुम होती जा रही है कुम्हारों की चाक.

काम न आई योगी-मोदी की योजना
सरकार ने पॉलीथिन को जब बैन किया तो कुम्हारों को लगा कि अब अच्छे दिन आएंगे. इससे उम्मीद जगी कि होटलों में कुल्हड़ों का इस्तेमाल फिर से शुरू हो जाएगा. वहीं कुम्हारों का कहना है कि प्लास्टिक के गिलास बंद होने के बाद इनकी जगह फाइबर के गिलासों ने ले ली. इससे कुम्हारों की स्थिति जस की तस रह गई है.

पढे़ं-बहराइच: बाजारों में चाइनीज वस्तुओं की चकाचौंध, कुम्हारी कला के अस्तित्व पर छाया संकट

पुश्तैनी काम छोड़ कर रहे मजदूरी
कुम्हारों ने बताया कि अब वह अपने पुश्तैनी काम को छोड़ चुके हैं, क्योंकि उस काम से उनके परिवारों का जीवन-यापन नहीं हो पा रहा था. उन्होंने बताया कि आज कोई कुम्हार दिहाड़ी मजदूरी करता है तो कोई चाट का ठेला लगाता है. कुम्हारों का कहना है कि सरकार को कुम्हारों के विषय में ध्यान देना चाहिए और अधिक से अधिक कुल्हड़ों के इस्तेमाल का प्रचार करवाएं तो शायद उनके दिन बदल सकते हैं. दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में कुम्हारों को सरकार की तरफ से चलाई जा रही किसी भी योजना का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details