लखनऊः दिवाली आने पर कुम्हारों को लगता है कि इस बार उनकी आमदनी बढ़ जाएगी, लेकिन आधुनिकता के इस माहौल में कुम्हारों के दिन जाने कब अच्छे होंगे. ईटीवी भारत की टीम कुम्हारों की वास्तविक स्थिति को देखने राजधानी लखनऊ के सीमावर्ती इलाकों में पहुंची. गांव के कुम्हारों का कहना है कि मिट्टी के बर्तन बनाने में उनका फायदा न के बराबर होता है. आम दिनों में रोज की आमदनी 50 से 100 रुपये के बीच हो पाती है.
काम न आई योगी-मोदी की योजना
सरकार ने पॉलीथिन को जब बैन किया तो कुम्हारों को लगा कि अब अच्छे दिन आएंगे. इससे उम्मीद जगी कि होटलों में कुल्हड़ों का इस्तेमाल फिर से शुरू हो जाएगा. वहीं कुम्हारों का कहना है कि प्लास्टिक के गिलास बंद होने के बाद इनकी जगह फाइबर के गिलासों ने ले ली. इससे कुम्हारों की स्थिति जस की तस रह गई है.