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आखिर निषाद समाज सभी दलों के लिए क्यों बना है दुलारा...? - उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022

विधानसभा चुनाव 2022 नजदीक आते ही जोड़तोड़ की राजनीति तेज होने लगी है. ऐसे में विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने निषाद पार्टी के साथ हाथ मिला लिया है. इसकी बड़ी वजह यह है कि 403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में 165 सीटों पर इनका दबदबा है. हालांकि बाकी राजनीतिक पार्टियों की निगाहें भी इसपर हैं.

यूपी राजनीति में निषाद समाज
यूपी राजनीति में निषाद समाज

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Published : Dec 16, 2021, 8:49 PM IST

हैदराबाद : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही निषाद समाज और उसका प्रतिनिधित्व करने वाली निषाद पार्टी यहां की राजनीति के केंद्र में आ गई है. शुक्रवार (17 दिसंबर) को लखनऊ में होने जा रही इसकी रैली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पहुंच रहे हैं, ऐसे में बाकी राजनीतिक पार्टियों की निगाहें भी इस पर टिकी हैं.

उत्तर प्रदेश और बिहार के 17 ओबीसी समुदायों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाली इस पार्टी के मुखिया संजय निषाद को भाजपा किसी भी स्थिति में नाराज नहीं करना चाहती है, तो वहीं अन्य विपक्षी पार्टियां भी डोरे डालने में जुटी हैं. सियासी समीकरणों को मजबूत करने में जुटी भाजपा निषाद समाज की अहमियत को समझ चुकी है. यही वजह है कि यूपी विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने निषाद पार्टी के साथ हाथ मिला लिया है. इसकी बड़ी वजह यह है कि 403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में 165 सीटों पर इनका दबदबा है. यहां करीब 60 सीटों पर तो निषाद समाज निर्णायक स्थिति में है. संजय निषाद पेशे से होम्योपैथिक डॉक्टर हैं और निषाद NISHAD (निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल) पार्टी का वर्ष 2015 में गठन किया था.

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निषाद समाज का वोट 18 प्रतिशत

वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक उत्तर प्रदेश में निषाद समाज का वोट करीब 18 प्रतिशत है. यहां की 165 विधानसभा सीटें निषाद बाहुल्य हैं, जिसमें प्रत्येक विधानसभा में 90 हजार से एक लाख तक वोटर हैं और बाकी विधानसभा में 25 हजार से 30 हजार तक इसी समाज के वोटर हैं. भदोही सदर में करीब 65 हजार निषाद समाज का वोट है. जनपद भदोही के विधानसभा जौनपुर में एक लाख 25 हजार निषाद मथुआ समाज का वोट है. औराई विधानसभा जनपद भदोही में 85 हजार निषाद मथुआ समाज और हंदीआ विधानसभा में 95 निषाद समाज का वोट है.

ये हैं निषाद बाहुल्य जिले

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया, संत कबीर नगर, मऊ, मिर्जापुर, वाराणसी, भदोही, इलाहाबाद, फतेहपुर और पश्चिम के कुछ जिलों में निषादों की अच्छी खासी आबादी है. कई सीटों पर ये जीत-हार तय करते हैं. इसलिए सभी दलों की नजर निषाद वोटों पर रहती है. इनकी रहनुमाई का दावा निषाद पार्टी करती है. इस वोट बैंक को साधने के लिए अन्य दलों ने इस समाज के नेताओं को पार्टी में जगह दी है. जैसे भाजपा ने जयप्रकाश निषाद को राज्यसभा भेजा है. वहीं सपा ने विश्वभंर प्रसाद निषाद को राज्यसभा भेजा है तो राजपाल कश्यप को पिछड़ा वर्ग मोर्चे का प्रमुख बनाया है. निषादों को अपने पाले में करने के लिए कांग्रेस ने इस साल के शुरुआत में नदी अधिकार यात्रा भी निकाली थी.

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2017 में भाजपा के साथ थे राजभर

वर्ष 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. उसे 4 सीटों पर जीत मिली थी. जिन सीटों पर वह हारी उसमें से 3 पर वह दूसरे नंबर पर थी. वहीं निषाद पार्टी ने किसी बड़े दल से गठबंधन तो नहीं किया था लेकिन, उसके टिकट पर भदोही की ज्ञानपुर सीट से विजय मिश्र जीते थे. इस जीत में पार्टी का योगदान कम विजय मिश्र के प्रभाव का योगदान ज्यादा था. यूपी की राजनीति में आज ये दोनों पार्टियां प्रमुख हो गई हैं. सुभासपा अभी समाजवादी पार्टी के साथ है.

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यूपी की राजनीति में जाति आधारित पार्टियों की भूमिका

उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाति आधारित पार्टियों की महत्वपूर्ण भूमिका बनती जा रही है. ये मुख्य तौर पर पिछड़ी जातियां हैं और इन्हीं को एक करने के उदेश्य से निषाद समुदाय बना, जिसमें केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, नोनिया, मांझी और गोंड जैसी उप-जातियां शामिल हैं. यूपी की करीब 60 विधानसभा और 20 लोकसभा सीटों पर इनका दबदबा है. यही वजह है कि निषाद समाज राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण बन गया है.

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नौका विहार और मछली पकड़ना मुख्य व्यवसाय

निषाद विभिन्न समुदायों को निरूपित करते हैं, जिनके पारंपरिक व्यवसाय जल-केंद्रित रहे हैं, जिनमें रेत ड्रेजिंग, नौका विहार और मछली पकड़ना शामिल है. 1930 के दशक के बाद से इन समुदायों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले विभिन्न जाति संगठनों ने इन सभी समुदायों को छत्र शब्द 'निषाद' के तहत एकजुट करने के केंद्रीय उद्देश्य के साथ सम्मेलन आयोजित करना शुरू कर दिया. पहले इन समुदायों को 'सबसे पिछड़ी जाति' के रूप में वर्गीकृत किया गया था लेकिन, सामाजिक-आर्थिक स्थिति में वह अनुसूचित जातियों के अधिक करीब थे.

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