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समाजवादी पार्टी में बनी रहेगी मुसलमानों की अहमियत - Muslim angry with SP

समाजवादी पार्टी ने हाल ही में मुरादाबाद से सांसद डॉ. सैय्यद तुफैल हसन (एसटी हसन) को लोकसभा में पार्टी का नेता नियुक्त किया है. पार्टी ने यह फैसला मैनपुरी संसदीय सीट पर डिंपल यादव की जोरदार जीत के बाद लिया है. इस कदम से समाजवादी पार्टी ने कई समीकरण साधने की कोशिश की है. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण...

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Published : Dec 16, 2022, 3:18 PM IST

लखनऊ : समाजवादी पार्टी ने हाल ही में मुरादाबाद से सांसद डॉ. सैय्यद तुफैल हसन (एसटी हसन) को लोकसभा में पार्टी का नेता नियुक्त किया है. पार्टी ने यह फैसला मैनपुरी संसदीय सीट पर डिंपल यादव की जोरदार जीत के बाद लिया है. सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद से यह पद रिक्त हो गया था. समाजवादी पार्टी ने एसटी हसन को लोकसभा में पार्टी का नेता बनाकर कई समीकरण साधने की कोशिश की है. हालांकि वह इसमें कितने कामयाब होंगे यह कहना कठिन है, क्योंकि 2022 के विधानसभा चुनावों के पहले से ही यह संदेश जाने लगा था कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव मुसलमानों के मसले उठाने से बचने लगे हैं. बावजूद इसके सपा ने जहां भी अवसर मिला मुसलमानों को प्रतिनिधित्व देने में कोई कोताही नहीं की है.

समाजवादी पार्टी की राजनीति.

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी महज पांच सीटों पर जीतने में कामयाब हुई. इनमें मुलायम सिंह यादव मैनपुरी से, अखिलेश यादव आजमगढ़ से, मो. आजम खान रामपुर से, शफीकुर्रहमान बर्क संभल से और डॉ. एसटी हसन मुरादाबाद सीट से लोकसभा चुनाव जीते थे. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव और वरिष्ठ सपा नेता मो. आजम खान ने अपनी लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था, जबकि मैनपुर सीट मुलायम सिंह यादव के निधन के कारण रिक्त हो गई थी. इन तीनों सीटों पर हुए उप चुनावों में आजमगढ़ और रामपुर सीटें सपा को गंवानी पड़ी थीं. हाल में हुए उप चुनाव में मैनपुरी सीट पर अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव (dimple yadav) ने बड़े मार्जिन से जीत हासिल की. ऐसे में जो तीन सांसद लोकसभा में सपा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उनमें डिंपल यादव का राजनीतिक अनुभव (Political Experience of Dimple Yadav) काफी कम है और वह कुशल वक्ता भी नहीं मानी जाती हैं. वहीं शफीकुर्रहमान वर्क की छवि कट्टर मुसलमान वाली है और वह कई बार अपने बयानों को लेकर आलोचनाओं के शिकार होते रहे हैं. ऐसे में सपा प्रमुख अखिलेश यादव के सामने एक ही विकल्प था कि वह डॉ. एसटी हसन को लोकसभा (Lok Sabha to Dr. ST Hasan) में अपना नेता सदन बनाएं. इससे मुसलमानों में भी अच्छा संदेश जाने वाला था.

समाजवादी पार्टी की राजनीति.

उत्तर प्रदेश में विगत लगभग तीन दशक में ज्यादा समय मुस्लिम मतदाताओं (muslim voters) की पहली पसंद समाजवादी पार्टी ही रही है. मुसलमान मुलायम सिंह यादव को खुले मन से अपना नेता मानते थे. मुलायम सिंह ने भी कभी कोई अवसर नहीं दिया कि उनकी यह छवि टूटे. फिर चाहे राम मंदिर आंदोलन के दौरान राम भक्तों पर गोली चलाने का आदेश देने का मामला हो या ईद पर रोजा-इफ्तार पार्टियों का. वह खुलेमन से इन आयोजनों में न सिर्फ शामिल होते, बल्कि पार्टी कार्यालय पर भी वह इफ्तार पार्टी करने से गुरेज नहीं करते. वर्ष 2012 में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद स्थितियों में थोड़ा बदलाव देखने को मिलने लगा. बाद में जब अखिलेश ने खुद पार्टी की कमान अपने हाथों में ली, तो स्थितियों में और बदलाव देखने को मिले. वर्ष 2017 के चुनाव में भगवा लहर दिखाई दी और भाजपा ने व्यापक जनसमर्थन से पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा की जोरदार जीत हुई. स्वावभाविक है कि सपा को अपनी रणनीति पर विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा. राम मंदिर के निर्माण का फैसला भी आ चुका था और प्रदेश में हिंदुत्व की लहर थी. ऐसे में समाजवादी पार्टी विवादित मुद्दों पर बयान देने से बचने लगी. शायद यह रणनीति मुसलमानों को रास नहीं आई.

समाजवादी पार्टी की राजनीति.

वर्ष 2022 में ही हुए उप चुनावों में सपा को अपने गढ़ वाली रामपुर और आजमगढ़ की लोकसभा सीटें गंवानी पड़ीं. रामपुर विधानसभा की भी वह सीट, जो भाजपा आज तक नहीं जीती थी, उप चुनाव में जीत ली. रामपुर सीट मुस्लिम बहुल है और इस सीट पर पराजय का सीधा संकेत है कि कहीं न कहीं मुसलमान सपा से नाराज (Muslim angry with SP) है. यही कारण है कि अखिलेश यादव ऐसा कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते, जिसमें मुसलमानों को लुभाया जा सके. लगभग छह माह पूर्व विधान परिषद की चार सीटों के लिए सपा ने दो मुस्लिम चेहरों को चुना, जबकि पार्टी में कई बड़े और अखिलेश यादव के करीबी सीट के दावेदार थे. इन चार सीटों पर सपा ने जासमीर अंसारी, शाहनवाज खान 'शिब्बू', स्वामी प्रसाद मौर्य और सोबरन सिंह यादव को विधान परिषद भेजा. संदेश साफ है कि सपा बहुत खुलकर भले ही मुसलमानों की पैरोकारी न कर पा रही हो, बावजूद इसके पार्टी में इनका महत्व बना रहेगा और जहां भी उचित अवसर आएगा इस वर्ग को प्रतिनिधित्व भी दिया जाएगा.

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