लखनऊ :पिछले सप्ताह नोएडा में हुए एक लिफ्ट हादसे में आठ लोगों की मौत हो गई थी. इस हादसे के साथ ही एक बार फिर लिफ्टों में सुरक्षा का मुद्दा चर्चा में है. यह हादसा ऐसे वक्त में हुआ है, जब सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष और नोएडा से विधायक पंकज सिंह ने विधानसभा के मानसून सत्र में लिफ्टों में सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कानून बनाने की बात की थी. हालांकि इस मांग पर सरकार ने अब तक कोई कदम नहीं उठाया है.
देश में शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है. यही कारण है कि प्रदेश के बड़े शहरों में भी हाईराइज बिल्डिंग का निर्माण तेज हो रहा है. इन बहुमंजिला इमारतों के लिए लिफ्ट एक बड़ी जरूरत बन गई हैं. हालांकि कई बार बिल्डर अथवा मेंटेनेंस रखने वाली समितियां सुरक्षा उपायों का पर्याप्त ध्यान नहीं रखती हैं और इस तरह के बड़े हादसे हो जाते हैं. भाजपा उपाध्यक्ष पंकज सिंह ने पिछले दिनों विधानसभा में उठाया था और कहा था कि शहरवासियों की इस समस्या का समाधान लिफ्ट एक्ट लागू किए जाने के बाद हो जाएगा. पंकज सिंह ने कहा था कि 'शहरों में आवासीय भवनों, व्यावसायिक इमारतों, सरकारी संस्थाओं और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स आदि में लिफ्ट खराब होने, दुर्घटनाग्रस्त होने सहित अन्य घटनाएं लगातार होती रहती हैं. ऐसी घटनाओं पर नियंत्रण के लिए जरूरी है लिफ्ट एक्ट लागू किया जाए. प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष पंकज सिंह के सवाल पर शहरी विकास एवं ऊर्जा मंत्री एके शर्मा ने बताया कि इस दिशा में सरकार जल्दी ही निर्णय करेगी.'
राजधानी लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, गोरखपुर, मेरठ, गाजियाबाद, नोएडा सहित प्रदेश के तमाम बड़े शहरों में अपार्टमेंट कल्चर खूब प्रचलित हो रहा है. समस्या यह है कि इन अपार्टमेंट्स में लिफ्ट को लेकर कोई नियम आदि नहीं होता है. इसीलिए लापरवाही बरतने वाले बच निकलते हैं. लिफ्ट एक्ट में लागू होने पर निर्माण अथवा रखरखाव कर्ता को इसके नियमित मेंटेनेंस के लिए बाध्य होना होता है. कई अपार्टमेंट्स में देखभाल के अभाव में लिफ्ट अपनी तय आयु के पहले ही खराब हो जाती हैं. कानूनन पंद्रह मीटर से ऊंची सभी इमारतों में लिफ्ट लगाना अनिवार्य होता है. इसी तरह से तीस मीटर या उससे अधिक ऊंचाई होने पर भवन में स्ट्रेचर लिफ्ट लगाना अनिवार्य किया गया है. लिफ्ट के रखरखाव के लिए भी समय निर्धारित होता है. यही नहीं सरकार द्वारा तय की गई नियामक संस्था की मंजूरी के बिना लिफ्ट लगाना गैरकानूनी माना जाता है. लिफ्ट में हुई किसी भी दुर्घटना को छिपाने के लिए दो साल तक की सजा भी हो सकती है. समय-समय पर नियामक संस्था के अधिकारी लिफ्ट की जांच करेंगे और उन्हें रोका नहीं जा सकता है. अब तक देश के ग्यारह राज्यों में यह व्यवस्था लागू है.