लखनऊ: विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने शुक्रवार को सीपीए सम्मेलन संबोधित किया. उन्होंने कहा कि निर्वाचित सांसद, विधायक के कर्तव्य बहुआयामी हैं. विधायिका का सदस्य होने के नाते उसका मुख्य कार्य विधि निर्माण है. विधि निर्माता होने के कारण ही वह विधायक है. सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट का अनुशीलन, निर्वचन और विवेचन करना उसका संवैधानिक दायित्व है.
सरकार को जवाबदेह बनाए रखना भी विधायक का कर्त्तव्य है. इसके लिए प्रश्नोत्तर का समय प्रथम वरीयता में होता है. अविलम्बनीय लोक महत्व के विषयों पर ध्यानाकर्षण और सदन के समक्ष विद्यमान कार्य को रोककर चर्चा पर बल देने की व्यवस्था भी सुन्दर विकल्प है. इसके अतिरिक्त महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की मांग की भी व्यवस्था और परम्परा है.
'जनभावनाओं को रखना जनप्रतिनिधित्व का आदर्श'
हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि सदन में विभिन्न जन-समस्याओं से जुड़ी जनभावनाओं को रखना जनप्रतिनिधित्व का आदर्श है. जनसमस्याओं के रूप भिन्न-भिन्न होते हैं. कुछ दीर्घकालिक प्रभाव वाली होती हैं और कुछ तात्कालिक अविलम्बनीय लोक महत्व से जुड़ी होती हैं. ऐसी सभी समस्याएं सदन में विमर्श योग्य होती हैं. विधायक सांसद ऐसी समस्याओं से अवगत भी होते हैं, लेकिन उन्हें नियमों की परिधि में भी लाना होता है. ऐसे प्रयत्न जनहित का संवर्द्धन करते हैं.
'जनता विकास मांगती है'
विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में जनसमस्याओं की प्रकृति भिन्न है. भारत में आमजन विधायक और सांसद को सर्वाधिकार संपन्न मानते हैं. यह धारणा सांसद और विधायकों के विरूद्ध होती है. इस धारणा से एक और खतरनाक धारणा का विकास हुआ है कि सांसद और विधायक सर्वाधिकार संपन्न होने के बावजूद जनता का काम नहीं करते. विधायक और सांसद के पास कोई अधिशाषी या निर्णायक अधिकार नहीं हैं. लेकिन जनता उनसे सड़क, पानी, बिजली आदि की विकास मांगती हैं. जनता प्रशासनिक गड़बड़ियों के लिए भी विधायक सांसद को आरोपित करती है. ऐसे में विधायक और सांसद का मूल कर्त्तव्य निर्वहन प्रभावित होता है.
उन्होंने कहा कि विधायक और सांसद के पास सिर्फ बोलने का अधिकार है. बेशक वह निर्बाध है, लेकिन अवसरों की कमी भी होती है. सदन में सब बोलने आते हैं. सुनने की भी जरूरत होती है. बिना सुने बोलना प्रासंगिक नहीं होता. सुनना प्रतीक्षा धर्म है. इसी धर्म के पालन में ही बोलना राष्ट्रधर्म बनता है.
'विधायकों को विधेयक के सम्बन्ध में अध्ययन करना चाहिए'
विधान मण्डलों में विधेयकों पर होने वाली चर्चा की गुणवत्ता घटी है. कई बार महत्वपूर्ण विधेयक बिना चर्चा के ही पारित हो जाते हैं. विधायकों को प्रत्येक विधेयक के सम्बन्ध में पूर्ण अध्ययन करना चाहिए. उन्हें विधि निर्माण की बारीकियों से सुपरिचित होना चाहिए. विधायकों को वित्तीय विषयों में भी अपने विशिष्ट ज्ञान और अनुभव का प्रयोग करना चाहिए. राज्य के वित्त मंत्री द्वारा आम बजट सदन में प्रस्तुत किया जाता है, उस पर भी चर्चा होती है. सदस्यों को इस चर्चा में भाग लेने का अवसर प्राप्त होता है.