लखनऊःआबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश है, वहीं अगर देश भर के ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश का ही परिवहन निगम सबसे ज्यादा बस बेड़े वाला निगम है. ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन की फ्लीट में 12000 से ज्यादा बसें शामिल हैं जो हर रोज 18 लाख से ज्यादा यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाती हैं. वैसे तो ज्यादातर कॉर्पोरेशन घाटे का ही सौदा साबित होते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम ऐसा निगम है जो पिछले पांच सालों से फायदे के ट्रैक पर सरपट दौड़ रहा है. यह जानकारी उत्तर प्रदेश के परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक धीरज साहू ने दी.
परिवहन निगम पर थी 15 करोड़ की देनदारी
प्रबंध निदेशक धीरज साहू ने बताया कि देश की आजादी से पहले 15 मई 1947 को राजकीय रोडवेज ने लखनऊ से बाराबंकी के बीच पहली रोडवेज बस सेवा संचालित की. इसके बाद लगातार रोडवेज बसों की फ्लीट में इजाफा होता गया. उन्होंने बताया कि साल 1972 में एक जून को राजकीय रोडवेज से उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की स्थापना हुई. रोडवेज के सीनियर अधिकारी बताते हैं कि जब राजकीय रोडवेज से ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन बना, उस समय कारपोरेशन की देनदारियां 15 करोड़ रुपये से ऊपर थीं. यानी लगातार रोडवेज के चालक परिचालकों ने मेहनत कर देनदारियां तो खत्म की ही, आज उन्हीं की मेहनत का नतीजा है कि जब सारे कारपोरेशन घाटे में चल रहे हैं. वहीं, वर्तमान में उत्तर प्रदेश स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन 300 करोड़ रुपये से ज्यादा के फायदे में है. उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के घाटे की बात करें तो पावर कारपोरेशन 90,000 करोड़ रुपये के घाटे में चल रहा है.
लोकलुभावन नीतियों के कारण उठाना पड़ता है नुकसान
बता दें कि उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम भले ही वर्तमान में 300 करोड़ रुपये से ज्यादा के फायदे में चल रहा हो, लेकिन लोक लुभावन नीतियों और बसों का राजनीतिकरण होने के कारण भी परिवहन निगम को नुकसान उठाना पड़ता है. कभी किसी राजनीतिक दल की तरफ से किसी ऐसे रूट पर बसों के संचालन की मांग की जाती है, जहां पर लोड फैक्टर नहीं आता है, फिर भी बस सेवा शुरू करनी होती है जिससे सीधे तौर पर निगम को नुकसान होता है. वहीं, वोट बैंक साधने के लिए राजनीतिक दल बसों का भरपूर इस्तेमाल करते हैं.
पूर्व में उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की मुख्यमंत्री मायावती ने 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' नाम से बस का संचालन कराया. इसके बाद जब समाजवादी पार्टी सरकार आई तो अपना हित साधने के लिए 'समाजवादी लोहिया' बसों का संचालन शुरू किया. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार में तमाम बसों को भगवा रंग में रंग कर 'संकल्प बस' नाम से बसों की शुरुआत कर दी गई. इन बसों को उन रूटों पर भी भेजा गया जहां से परिवहन निगम को नुकसान भी उठाना पड़ा, लेकिन राजनीतिक दलों को इसका फायदा जरूर मिला.
किराए में रियायत भी नुकसान का कारण
यात्रियों को बस से यात्रा करने को लुभाने के लिए परिवहन निगम समय-समय पर यात्रियों को किराए में छूट भी देता है. मासिक पास बनाकर यात्रियों को छूट दी जाती है तो सर्दी के मौसम में एसी बसों में सवारी न मिलने को लेकर किराए में भी रियायत दी जाती है. हालांकि इससे परिवहन निगम को बहुत ज्यादा फायदा तो नहीं होता है, लेकिन नुकसान जरूर उठाना पड़ता है. इन सबकी भरपाई रोडवेज की साधारण बसे कर देती हैं. यही वजह है कि छह साल पहले जो निगम घाटे का निगम था वह आज लगातार पांच साल से लाभ की स्थिति में है.
वर्कशॉप में होता है बसों का रखरखाव
बसों के रख-रखाव के लिए परिवहन निगम ने सभी डिपो में वर्कशॉप स्थापित किए हैं. इन वर्कशॉप में बसों के रूट से लौटते ही इनकी मरम्मत का काम होता है. बसें जब अपनी उम्र पूरी कर लेती हैं तो इन्हें फ्लीट से हटाकर नई बसों को जोड़ा जाता है. इन बसों की नीलामी कर दी जाती है. हालांकि, अभी भी उत्तर प्रदेश में तमाम ऐसी बसें सड़कों पर दौड़ रही हैं जो अपनी उम्र पूरी कर चुकी हैं और जो जर्जर स्थिति में भी हैं.
कोरोना के चलते नहीं शामिल हुई एक भी नई बस
प्रबंध निदेशक ने कहा कि कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण ऐसा पहली बार हो रहा है कि इस वित्तीय वर्ष में परिवहन निगम की फ्लीट में एक भी नई बस नहीं जुड़ पाई है, जबकि 1000 नई बसों को जुड़ना था. इनमें वातानुकूलित बसें भी शामिल थीं. इससे आने वाले गर्मी के मौसम में यात्रियों को एसी बसें कम मात्रा में उपलब्ध हो पाएंगी. बता दें कि रोडवेज के कुल 12000 के बस बेड़े में विभिन्न श्रेणियों की बसें में शामिल हैं, जिनमें रोडवेज की साधारण बस, एसी जनरथ बस, एसी वॉल्वो, सुपर लग्जरी स्कैनिया बस और सस्ती दर वाली एसी शताब्दी. यह बसें यात्रियों को सफर में राहत प्रदान करती हैं.
ईंधन की कीमतें तो बढ़ीं पर नहीं हुई किराए में वृद्धि
उन्होंने बताया कि डीजल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है बावजूद इसके परिवहन निगम ने पिछले डेढ़ साल से अपनी बसों का किराया नहीं बढ़ाया है. इससे यात्रियों को काफी राहत मिल रही है. अगर परिवहन निगम बसों का किराया बढ़ा दें तो निश्चित तौर पर निगम के बजट में और भी सुधार हो जाएगा, लेकिन यात्रियों का बजट काफी बिगड़ जाएगा. परिवहन निगम के अधिकारी बताते हैं कि सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर ही बसों के किराए में बढ़ोतरी की जाती है. डीजल भले ही कितना महंगा हो गया हो, लेकिन अभी भी परिवहन निगम ने यात्रियों पर महंगे किराए का बोझ डालने के बारे में कोई विचार नहीं किया है, जिससे यात्रियों की यात्रा मंगलमय हो सके.
किराए से ही चलता है निगम का काम