लखनऊ:कैंट विधानसभा सीट पर उपचुनाव का नतीजा गुरुवार को आ जाएगा. सभी पार्टियों के प्रत्याशियों ने अपनी जीत के दावे कितने ही क्यों न किए हैं, लेकिन इस सीट का इतिहास रहा है कि कांग्रेस और बीजेपी के आगे किसी भी पार्टी की एक भी नहीं चली. कभी इस सीट पर कांग्रेस ने भाजपा के कमल को खिलने से रोककर पंजे का वर्चस्व कायम रखा तो कभी पंजे को पटककर इस सीट पर कमल खिला. लेकिन न कभी समाजवादी पार्टी की साइकिल इस सीट पर दौड़ी और न ही कभी बसपा का हाथी ही तेजी से दौड़ पाया. कुल मिलाकर वर्ष 1957 से लगातार हो रहे चुनाव में इस सीट पर दो पार्टियों का ही वर्चस्व रहा है.
कैंट विधानसभा का अब तक का चुनावी इतिहास
लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट पर पहली बार इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रत्याशी श्याम मनोहर मिश्रा ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद 1962 में कांग्रेस प्रत्याशी बालक राम वैश, 1967 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में बद्री प्रसाद अवस्थी, 1969 में भारतीय क्रांति दल के सच्चिदानंद, 1974 में कांग्रेस पार्टी के चरण सिंह,1977 में जनता पार्टी के कृष्ण कांत मिश्रा, 1980 में कांग्रेस की प्रेमवती तिवारी, 1985 में प्रेमवती तिवारी और 1989 में भी लगातार तीन बार कांग्रेस की प्रेमवती तिवारी ही सभी पार्टियों पर भारी पड़ीं.
साल 1991 में पहली बार इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में सतीश भाटिया ने कमल का फूल खिलाया. 1993 में फिर यह सीट भारतीय जनता पार्टी के खाते में आई. 1996 में पहली बार सुरेश चंद्र तिवारी भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े और फिर 2002-2007 में लगातार भारतीय जनता पार्टी ने ही इस सीट पर विजयश्री हासिल की. 2012 में फिर से बाजी पलट गई और कांग्रेस प्रत्याशी रीता बहुगुणा जोशी ने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी सुरेश चंद्र तिवारी को हराकर बीजेपी से यह सीट छीन कर कांग्रेस के पाले में ला दी.
2017 में कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर रीता बहुगुणा जोशी ने ही इस सीट पर विजय हासिल की, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें प्रयागराज से लोकसभा प्रत्याशी बना दिया और वह चुनाव जीत गईं, जिसके बाद कैंट विधानसभा सीट पर विधानसभा उपचुनाव हो रहा है.
1957 से 2017 तक इस सीट पर कुल 16 बार चुनाव हुआ और इन 16 चुनावों में कई प्रत्याशी एक से ज्यादा बार जनप्रतिनिधि चुने गए। इनमें तीन बार कांग्रेस की प्रेमवती तिवारी, तीन बार भारतीय जनता पार्टी के सुरेश चंद्र तिवारी के साथ ही दो बार रीता बहुगुणा जोशी और सतीश भाटिया को जनता ने जीत दिलाई.
सपा-बसपा को हर बार मिली निराशा
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी कैंट विधानसभा सीट पर कभी भी जीत हासिल नहीं कर पाई. 1993 में पहली बार समाजवादी पार्टी ने इस सीट पर अपना प्रत्याशी उतारा था. एसपी प्रत्याशी के तौर पर गुरबख्श सिंह चुनाव लड़े थे, जिन्हें 26 हजार 852 मत मिले थे. बीजेपी के सतीश भाटिया ने उन्हें हराया था. 1996 में सपा प्रत्याशी के रूप में राज किशोर मिश्रा ने चुनाव लड़ा. उन्हें 18 हजार 50 मत प्राप्त हुए थे. सपा को मिलने वाले मतदान का प्रतिशत 18.63 था.
समाजवादी पार्टी ने 2002 में शारदा प्रताप शुक्ला को इस सीट पर चुनाव मैदान में उतारा. उन्हें 21,126 वोट मिले, जो 23.47 प्रतिशत था. 2007 में फिर से सपा ने शारदा प्रताप शुक्ला को ही प्रत्याशी बनाया. इस बार उन्हें 19, 290 मत मिले, जो कुल 19.49 प्रतिशत था. 2012 में सपा ने सुरेश चौहान को प्रत्याशी बनाया. उन्हें 22,544 मत मिले जो 13.93 प्रतिशत था. 2017 में सपा प्रत्याशी के तौर पर कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी के रूप में अपर्णा यादव उतरीं. उन्हें 61, 606 मत मिले, जो 32.87 प्रतिशत था.
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साल 2017 में जब इस सीट पर विधानसभा चुनाव हुआ तो भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी डॉ. रीता बहुगुणा जोशी को 95,402 मत मिले थे, जो कुल मतदान का 50.90 प्रतिशत था. वहीं समाजवादी पार्टी की अपर्णा यादव को 61, 606 मत मिले थे, जो 32.87 प्रतिशत था.
मुलायम की छोटी बहू होते हुए भी प्रतिष्ठा की इस सीट पर सपा को बीजेपी ने मात दी थी. बीएसपी से योगेश दीक्षित ने चुनाव लड़ा था. उन्हें 26, 036 वोट प्राप्त हुए थे, जो 13.89 प्रतिशत था. नोटा के रूप में 1150 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था, जो कुल 0.61 प्रतिशत था. 2017 में 1,87,433 मतदाताओं ने वोट डाला था. वोटिंग औसत 5 0.89 प्रतिशत था. इस बार 21 अक्टूबर को हुए चुनाव में कुल 1,13,789 मतदाताओं ने अपने मत का इस्तेमाल किया और यहां पर मतदान का प्रतिशत 29.55 रहा.
इन प्रत्याशियों की किस्मत का होगा फैसला
इस बार इस सीट पर बीजेपी के प्रत्याशी सुरेश चंद्र तिवारी, समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी रिटायर्ड मेजर आशीष चतुर्वेदी, कांग्रेस के प्रत्याशी दिलप्रीत सिंह विर्क और बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी अरुण द्विवेदी हैं. इस सीट पर इस बार समाजवादी पार्टी ने रिटायर्ड मेजर आशीष चतुर्वेदी पर दांव लगाया है. जहां तक पिछले परिणामों पर नजर डालें तो समाजवादी पार्टी कभी जीती ही नहीं और अगर इस सीट पर जीतती है तो यह किसी इतिहास से कम नहीं होगा.
वर्तमान में समाजवादी पार्टी की स्थिति उत्तर प्रदेश में भी अच्छी नहीं है. कैंट विधानसभा सीट पर पार्टी का रिकॉर्ड ही खराब रहा है. ऐसे में अगर सपा को इस सीट पर कामयाबी मिलती है, तो किसी बड़े सपने को साकार होने जैसा होगा.