लखनऊ : उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली सहित देश के कई राज्यों में मुसाफिरों को पेयजल उपलब्ध कराने और भूगर्भ जल भंडारों को भरने के लिए बाउली बनाई जो खूबसूरत सीढ़ियों से युक्त है. बड़ी संख्या में इनका निर्माण किया गया. राजधानी लखनऊ में भी कई नबाबों ने खूबसूरत बाउली का निर्माण कराया था. जो आज भी इस बात गवाह है कि उस समय अपनी प्रजा के लिए पानी की उपलब्धता को बनाए रखने के साथ-साथ जल संरक्षण का भी ध्यान था.
शाही बाउली के अस्तित्व पर संकट. सरकार की बेरुखी से अस्तित्व पर संकट
लेकिन समय के साथ-साथ जल संरक्षण पर तो सरकारों ने ध्यान दिया लेकर पुराने समय के इन ऐतिहासिक तालाबों और बाउली को संरक्षित करने का प्रयास नहीं हुआ. इसके चलते यह अब सूख रही हैं. जिनमें बड़े इमामबाड़ा स्थित शाही बाउली प्रमुख है. इसके अतिरिक्त टिकैत राय तालाब, बक्शी का तालाब, बुद्धेश्वर तालाब सहित अनेक बाउली व तालाबों का निर्णाम इतिहास के पन्नों में दर्ज तो है. लेकिन आज इनकी स्थिति अच्छी नही है. राजधानी की ये ऐतिहासिक बाउली आज संरक्षण के अभाव में नष्ट हो रही है.
अवध के नवाबों में सुंदर बाउलियों की निर्माण की रही है परंपरा
अवध में राजस्थान की तरह ही खूबसूरत इमारतों के साथ-साथ खूबसूरत तालाब, जलकुंड और बाउली (राजस्थान में बाबड़ी को अवध की भाषा में बाउली कहा जाता है) बनाने की परंपरा रही है. नवाबों ने इन बाउलियों का निर्माण खुद के प्रयोग के साथ-साथ आम जनता को पानी उपलब्ध कराने के लिए किया था. सन 1784 ईस्वी में नवाब आसफुद्दौला ने शाही इमाम बाड़ा के बाई तरफ एक 8 मंजिला बाउली का निर्माण कराया, जिसकी पांच मंजिला हमेशा पानी में डूबी रहती थी. बाउली तो आज भी सुरक्षित है जिसे देखकर पर्यटक भी हैरान हो जाते हैं. क्योंकि खूबसूरती के साथ-साथ इसमें इंजीनियरिंग का भी अच्छा प्रयोग है. इसी के साथ साथ शाही तालाब, टिकैत राय का तालाब, बख्शी का तालाब का निर्माण भी उसी दौरान किया गया.
वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है शाही बाउली अवध के चौथे नवाब आसफुदौला ने 1784 ई. में अकाल के समय कई इमारतें बनवाई जिसमें बड़े इमामबाड़े के भीतर बाईं ओर एक खूबसूरत बाउली है. जिस पर हिंदू भवन की पूरी छाप देखने को मिलती है. इसीलिए इसे नवाब के साथ-साथ हिंदू राजाओं के साथ भी जोड़ा जाता है. कहा जाता है कि 1784 के अकाल में ही नवाब आसफुदौला ने अलीशान इमामबाड़ा, भूलभुलैया, रूमी गेट, आसफी मस्जिद और शाही बाउली का निर्माण कराया था. बाउली के इर्द-गिर्द इसी भवन निर्माण शैली में बनी इमारतों का बड़ा हिस्सा भूमिगत है. बाउली के अंदर बनी सीढ़ियां पानी में उतर जाती हैं. इस गोल महल की कई मंजिलें पानी में डूबी हुई रहती हैं. यह बावली लखनऊ की सबसे प्राचीन बाउली मानी जाती है. मान्यता है कि इस बाउली में आज खजाना छिपा हुआ है.
लखनऊ के ऐतिहासिक तालाबों की वर्तमान दशा टिकैत राय तालाब अवध के नवाब चौथे आसिफुद्दौला ने रूमी दरवाजा बनवाया. बताया जाता है कि फैजाबाद पहले अवध की राजधानी हुआ करती थी. मां से अनबन होने के बाद आसिफुद्दौला घर से चले आए थे. वह जानते थे कि उनकी मां बहुत दबंग हैं. इसलिए आसिफुद्दौला फैजाबाद छोड़कर लखनऊ आ गए. इसके बाद उन्होंने लखनऊ को नये तरीके से आबाद किया. उन्हीं के शासनकाल में 1775 से 1798 के बीच टिकैत राय तालाब का निर्माण हुआ. नवाब साहब दीवान राजा टिकैत राय ने इस तालाब का निर्माण कराया था. हालांकि उस समय यह तालाब लोगों की पानी की जरूरतों को पूरा करता था, लेकिन वर्तमान समय में जीर्णोद्धार के नाम पर इस तालाब को नया रूप देकर पार्क बना दिया गया है. तालाब के चारों तरफ केवल सुंदर पेड़ हैं जबकि तालाब पूरी तरह से सूखा हुआ है.
बक्सी का तालाब
लखनऊ में इस तालाब के निर्माण की कहानी बड़ी रोचक है. बताया जाता है कि एक बार नवाब साहब ने राजा बख्शी से फौज के लिए कुछ हाथी खरीदने के लिए नेपाल जाने को कहा. यात्रा के दौरान राजा बख्शी ने खैराबाद की तरफ जाते हुए पहला पड़ाव इसी स्थान पर किया, जहां पर आज यह तालाब है. रात में उन्हें एक सपना आया और उन्होंने वहां एक मंदिर बनवाने का निश्चय लिया. इसके बाद वे वापस लखनऊ आ गए और सारी बात नवाब को बता दी. इसके बाद इस तालाब का निर्माण कराया गया. ये तालाब उस समय का शाही तालाब था. इस तालाब को इस तरह से बनाया गया था कि इस तालाब में हर महीने पानी मौजूद रहता था. समय के साथ-साथ उचित देख-रेख के अभाव में इस तालाब का पानी खत्म हो गया.
वर्तमान सरकार ने इन ऐतिहासिक बाउलियों को भुलाया
17वीं और 18वीं शताब्दी में अवध के राजाओं और नवाबों ने बड़ी संख्या में तालाब, बाउली और जलकुंड का निर्माण कराया. क्योंकि उस दौरान लंबे समय तक अकाल पढ़ते थे, जिसके कारण आम जनता पानी के लिए काफी परेशान होती थी. नवाबों, आसफुद्दौला ने इन पर ध्यान दिया और वास्तुकला के ढंग से बेहतरीन तालाबों और बाउलियों का निर्माण कराया. इतिहासकार नवाब मीर जाफर अब्दुल्ला बताते हैं कि अवध के चौथे नवाब आसफुद्दौला ने शाही बाउड़ी का निर्माण कराया जो आज सूख गई है. वहीं टिकैत राय तालाब, बख्शी का तालाब, शाही तालाब और ऐसे कितनी ही बाउलियों का निर्माण कराया गया, जो उस समय आम जनता की पानी की जरूरत को पूरा करती थीं. आज की वर्तमान सरकार जल संरक्षण पर जोर दे रही है, फिर भी लखनऊ में कोई नया तालाब नहीं बनया गया. बल्कि इन ऐतिहासिक तालाबों और बाउलियों की दशा भी खराब है. इनके संरक्षण के साथ-साथ इनमें जल संरक्षण भी किया जाना चाहिए.