लखनऊ.हिजाब पहनकर छात्राओं के स्कूल कॉलेज में प्रवेश को लेकर उठे विवाद पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने तो अपना फैसला सुना दिया लेकिन इस फैसले से नाखुश मुस्लिम संस्थाएं अब देश की सर्वोच्च अदालत में जाने का मन बना रहीं हैं. देश में मुसलमानों की सबसे बड़ी संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMIM) ने भी अपना रुख साफ करते हुए कह दिया कि हाईकोर्ट के फैसले से न्याय की मांग पूरी नहीं हो सकी है. ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट से न्याय की गुहार लगाएंगे.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी हज़रत मौलाना ख़ालिद सैफ़ुल्लाह रहमानी ने एक लिखित बयान में कहा है कि 14 मार्च 2022 को बोर्ड की लीगल कमेटी और सेक्रेटरीज़ की ऑनलाइन मीटिंग हुई. इस अहम मीटिंग में लीगल कमेटी के संयोजक और सीनियर एडवोकेट यूसुफ़ हातिम मछाला, एडवोकेट एम आर शमशाद, ताहिर हकीम, फ़ुज़ैल अहमद अय्यूबी, नयाज़ अहमद फ़ारूक़ी के अलावा बोर्ड के सेक्रेटरीज़ मौलाना फ़ज़्लुर्रहीम मुजद्दिदी और मौलाना मुहम्मद उमरैन महफ़ूज़ रहमानी के साथ डाक्टर सय्यद क़ासिम रसूल इलयास, कमाल फ़ारूक़ी, मौलाना सग़ीर अहमद रशादी साहब-अमीरे शरीयत कर्नाटक, मौलाना अतीक़ अहमद बस्तवी और के. रहमान ख़ान ने भाग लिया.
कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले का विश्लेषण
बैठक में हिजाब के बारे में कर्नाटक हाईकोर्ट के हालिया फ़ैसले का विश्लेषण किया गया. ये पाया गया कि इसमें बहुत सी त्रुटियां हैं. कहा गया कि इसमें व्यक्ति की स्वतंत्रता की अनदेखा की गई है. इस्लाम में किस काम को अनिवार्यता प्राप्त है और किस को नहीं, इस विषय पर अदालत ने अपनी राय से फ़ैसला करने की कोशिश की है.
किसी भी क़ानून की व्याख्या का अधिकार उस क़ानून के विशेषज्ञों को होता है. इस लिए शरीयत के किसी क़ानून का कोई मामला हो तो उसमें उल्मा की राय महत्वपूर्ण होगी. हालांकि फ़ैसले में इस पहलू को सामने नहीं रखा गया है. इसलिए अदालत के इस फ़ैसले से न्याय की मांग पूरी नहीं हो सकी. लिहाज़ा इसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया जाएगा.