लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा-2019 के 69 हजार पदों पर भर्ती मामले में शिक्षामित्रों को बड़ा झटका लगा है. न्यायालय ने एकल पीठ के उस निर्णय को निरस्त कर दिया है, जिसमें क्वालीफाइंग मार्क्स को घटा कर 40 और 45 प्रतिशत कर दिया गया था. न्यायालय ने बुधवार को यह निर्णय सुनाया. यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज कुमार जायसवाल और न्यायमूर्ति करुणेश सिंह पवार की खंडपीठ ने सुनाया. राज्य सरकार की दो दर्जन से अधिक विशेष अपीलों की विस्तृत सुनवाई के बाद यह पारित किया गया. निर्णय में न्यायालय ने एकल पीठ द्वारा दिये गए 29 मार्च 2019 के निर्णय को खारिज कर दिया है.
एकल पीठ ने मार्क्स बढ़ाने वाले शासनादेश को किया था रद
एकल पीठ ने शिक्षामित्रों की याचिका पर न्यूनतम क्वालीफाइंग मार्क्स तय करने संबधी 7 जनवरी 2019 के शासनादेश को खारिज कर दिया था. उक्त शासनादेश के अनुसार क्वालीफाइंग मार्क्स को सामान्य के लिए 65 और आरक्षित वर्ग के लिए 60 प्रतिशत किया गया था. एकल पीठ ने क्वालीफाइंग मार्क्स 45 व 40 प्रतिशत रखते हुए परिणाम घोषित करने का आदेश दिया था.
29 मई 2019 को ही लग गई थी एकल पीठ के आदेश पर अंतरिम रोक
सरकार के अलावा बीएड डिग्रीधारी अभ्यर्थियों ने भी 29 मार्च 2019 के निर्णय को चुनौती दी थी, जिसके पश्चात 29 मई 2019 को डिवीजन बेंच ने एकल पीठ के निर्णय पर अंतरिम तौर पर रोक लगा दी थी. साथ ही राज्य सरकार को आपत्तियां आमंत्रित करने के बाद उत्तर पुस्तिकाएं प्रकाशित करने की इजाजत भी दी थी. हालांकि न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि बिना अनुमति या विशेष अपीलों के निस्तारण तक परीक्षा का अंतिम परिणाम घोषित नहीं किया जाएगा.
तीन माह में भर्ती प्रक्रिया करें पूर्ण
वहीं एक अपीलार्थी के अधिवक्ता अमरेंद्र नाथ त्रिपाठी के अनुसार बुधवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से निर्णय सुनाते हुए न्यायालय ने दो माह में परिणाम घोषित करने का आदेश दिया है, जबकि अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा ने बताया कि तीन माह में भर्ती प्रक्रिया को भी पूर्ण करने का आदेश दिया गया है.
सरकार ने क्वालिटी एजुकेशन का दिया था हवाला
उल्लेखनीय है कि मामले में शिक्षामित्रों की दलील थी कि लिखित परीक्षा होने के बाद क्वालीफाइंग मार्क्स घोषित करना विधि के सिद्धांतों के विरुद्ध था और सरकार ने शिक्षामित्रों को भर्ती से रोकने के लिये पिछली परीक्षा की तुलना में इस बार अधिक क्वालीफाइंग मार्क्स घोषित कर दिया था, जबकि सरकार की ओर से दलील दी गई कि राइट टू एजुकेशन में राइट टू क्वालिटी एजुकेशन समाहित है. कहा गया कि सरकार की मंशा है कि योग्य अभ्यर्थियों का चयन हो. सरकार शिक्षामित्रों के खिलाफ नहीं है, लेकिन क्वालिटी एजुकेशन के अपने दायित्व को निभाने के लिए प्रतिबद्ध है.