लखनऊ : डॉ. वाईएस सचान की जेल में मौत के मामले में तत्कालीन डीजीपी करमवीर सिंह, तत्कालीन एडिशनल डीजीपी विजय कुमार गुप्ता व तत्कालीन जेलर भीम सेन मुकुंद समेत सीबीआई कोर्ट द्वारा बतौर अभियुक्त तलब किए गए सभी अधिकारियों को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बड़ी राहत दी है. न्यायालय ने इन सभी अधिकारियों को तलब किए जाने के विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट, सीबीआई के सात जुलाई 2022 के आदेश को खारिज कर दिया है.
यह निर्णय न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने तत्कालीन डीजीपी करमवीर सिंह, एडिशनल डीजीपी विजय कुमार गुप्ता व आईजी जोन लखनऊ सुबेश कुमार सिंह, लखनऊ जेल के तत्कालीन जेलर भीम सेन मुकुंद, डिप्टी जेलर सुनील कुमार सिंह, प्रधान बंदीरक्षक बाबू राम दूबे व बंदीरक्षक पहिंद सिंह की ओर से दाखिल अलग-अलग याचिकाओं पर पारित किया. याचियों की ओर से दलील दी गई थी कि मामले में सीबीआई जांच कर चुकी थी. डॉ. सचान की मृत्यु को आत्महत्या पाते हुए, दो-दो बार क्लोजर रिपोर्ट भी दाखिल कर दी गई थी. यह भी दलील दी गई कि याचियों के सरकारी अधिकारी होने के कारण उन्हें तलब किए जाने से पूर्व शासन से संस्तुति प्राप्त करना अनिवार्य था. वहीं सुनवाई के दौरान सीबीआई की ओर से कहा गया कि सीबीआई ने मामले की बारीकी से जांच की थी. डॉ. सचान की मृत्यु को आत्महत्या पाए जाने के बाद ही क्लोजर रिपोर्ट लगाई गई थी.
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि सीबीआई ने सभी पहलुओं की विस्तृत और वैज्ञानिक विवेचना की, लेकिन 22 जून 2011 को जेल हॉस्पिटल में डॉ. वाईएस सचान की हत्या का उसे कोई साक्ष्य नहीं मिला. न्यायालय ने आगे कहा कि गवाहों के बयानों के अलावा, एम्स दिल्ली की एक्सपर्ट ओपिनियन, सीएफएसएल रिपोर्ट, केमिकल एक्जामिनर रिपोर्ट व फॉरेंसिक साइकोलॉजिस्ट रिपोर्ट भी डॉ. सचान द्वारा आत्महत्या किए जाने का ही इशारा करती हैं. न्यायालय ने कहा कि याचियों को तलब किए जाने और सीबीआई की क्लोजार रिपोर्ट को खारिज किए जाने के 7 जुलाई 2022 के आदेश में न्यायिक मस्तिष्क का प्रयोग न करते हुए, निचली अदालत ने किसी भी आधार का उल्लेख नहीं किया है. न्यायालय ने यह भी पाया कि याचियों के सरकारी अधिकारी होने के कारण संज्ञान लिए जाने से पूर्व शासन से संस्तुति प्राप्त करना अनिवार्य था.