लखनऊ : कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय पाठक (Vinay Pathak, Vice Chancellor of Kanpur University) की याचिका पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया है. इसके साथ ही न्यायालय ने प्रो. पाठक के खिलाफ निर्णय सुनाए जाने तक कोई भी उत्पीड़नात्मक कार्रवाई न करने के मौखिक आदेश पुलिस को दिए हैं. पाठक ने अपने खिलाफ इंदिरा नगर थाने में दर्ज एफआईआर को चुनौती दी हुई है.
यह आदेश न्यायमूर्ति राजेश सिंह व न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह की खंडपीठ ने पारित किया. बहस के दौरान याची की ओर से दलील दी गई कि एफआईआर में लगाए गए आरोपों के अनुसार याची के विरुद्ध आईपीसी की धारा 386 का मामला नहीं बनता. इस दलील पर याची के अधिवक्ता ने विशेष जोर दिया कि मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 भी लगाई गई है, जबकि इस अधिनियम की धारा 17 ए के तहत एफआईआर दर्ज करने से पूर्व नियुक्ति प्राधिकारी से संस्तुति लेना अनिवार्य है जो इस मामले में नहीं ली गई है. वहीं याचिका का विरोध करते हुए, मामले के वादी व राज्य सरकार के अधिवक्ताओं ने दलील दी कि एफआईआर में लगाए गए आरोपों के अनुसार मामले में संज्ञेय अपराध बन रहा है लिहाजा एफआईआर नहीं खारिज की जा सकती. कहा गया कि निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के तहत जिन मामलों में एफआईआर नहीं खारिज हो सकती, उनमें गिरफ़्तारी पर रोक का अंतरिम आदेश भी नहीं दिया जा सकता.