रक्षा मंत्री के क्षेत्र में मरीजों की रक्षा 'रामभरोसे'
यूपी का पावर सेंटर यानी लखनऊ, जहां मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक बैठते हैं. बड़े-बड़े अफसरों के दफ्तर हैं. यहां की जनता ने देश को रक्षा मंत्री दिया है. कई दावे किए गए हैं कि ऑक्सीजन और बेड की कमी नहीं हैं. मगर, यह शहर वर्तमान में कोरोना महामारी से कराह रहा है. यहां लचर स्वास्थ्य सेवाओं की सांसें फूल रही हैं. ऐसे में ईटीवी भारत ने हकीकत की पड़ताल की तो अस्पताल से लेकर श्मशान तक हालात भयावह दिखे...
लखनऊ के अस्पताल.
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Published : Apr 30, 2021, 7:30 PM IST
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Updated : Apr 30, 2021, 8:28 PM IST
लखनऊ: राजधानी में सरकारी अस्पतालों में बेड्स को लेकर मारामारी है. वहीं नर्सिंग होमों में ऑक्सीजन का संकट है. यहां 850 के करीब रजिस्टर्ड नर्सिंग होम हैं. इसमें 95 फीसदी नर्सिंग होम ऑक्सीजन के संकट से जूझ रहे हैं. मेदान्ता, सहारा, अपोलो जैसे बड़े अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट हैं. वहीं कोविड के लिए बनाए गए अधिकतर निजी अस्पतालों में 4 से 6 घण्टे का ही ऑक्सीजन बैकअप है. नॉन कोविड के कई निजी अस्पतालों ने ऑक्सीजन के अभाव में मरीजों की भर्ती बंद कर दी है.
ग्राउंड रिपोर्ट.
सरकारी अस्पतालों में केजीएमयू, लोहिया संस्थान, पीजीआई में ऑक्सीजन प्लांट हैं. शेष में 24 घण्टे का ही बमुश्किल स्टॉक है, जबकि सीएम ने हर अस्पताल में 36 घण्टे की ऑक्सीजन स्टोर करने का आदेश दिया है. रेल, ट्रक, जहाज सभी की सेवाएं लेने के बावजूद शहर में ऑक्सीजन की पर्याप्त उपलब्धता नहीं हो पा रही है. होमआइसोलेशन के मरीज सिलेंडर के लिए शहर भर में चक्कर लगा रहे हैं. गम्भीर रोगियों की शिफ्टिंग न होने से तीमारदार मरीजों को लेकर ई-रिक्शा से इमरजेंसी के चक्कर लगा रहे हैं.
इन अस्पतालों की ग्राउंड रिपोर्टः-
मदर केयर हॉस्पिटल
हॉस्पिटल की ग्राउंड रिपोर्ट के लिए ईटीवी भारत की टीम सबसे पहले इंदिरानगर में मदर केयर एंड आईवीएफ सेंटर पहुंची. यहां 'ओपीडी बंद' की नोटिस चस्पा मिली. साथ ही गेट अंदर से लॉक था. आवाज लगाने पर एक कर्मचारी बाहर निकला. उससे गंभीर महिला की भर्ती की गुजारिश की गई. उसने ऑक्सीजन न होना बताकर पांच दिन से मरीजों की भर्ती बंद होने बात कही और वापस अंदर चला गया.
सिप्स हॉस्पिटल
शाहमीन शाह रोड स्थित अस्पताल में 25 बेड पर कोरोना मरीजों की भर्ती की व्यवस्था है. गुरुवार सुबह तीमारदार मरीजों को लेकर अस्पताल गेट के बाहर खड़े नजर आए. वहां तीमारदारों को ऑक्सीजन न होने की जानकारी देकर लौटाया जा रहा था. अस्पताल की कमी से नए मरीजों की भर्ती नहीं हो पा रही है. गेट के बाहर नोटिस भी चस्पा कर दी गई है, जिसमें भर्ती मरीजों को दूसरे अस्पताल में ले जाने की सलाह दी गई थीं.
अस्पताल के बाहर ई-रिक्शा पर मरीज.
सांई हॉस्पिटल
ग्राउंड रिपोर्ट के अगले पड़ाव में ईटीवी की टीम सांई अस्पताल पहुंची. यहां अस्पताल के बाहर दो एम्बुलेंस खड़ी थी. जिसमें मरीजों को ऑक्सीजन सिलेंडर से सांसे दी जा रही थीं. अस्पताल के कर्मचारियों ने ऑक्सीजन की कमी बताते हुए मरीजों को दूसरे अस्पताल में ले जाने को कहा. यहां तड़प रहे मरीजों की सुनवाई नहीं हो रही थी. दुखी तीमारदार मरीजों को दूसरे अस्पताल ले जाने को मजबूर नजर आए.
सीएनएस हॉस्पिटल
पड़ताल के दौरान इंदिरानगर स्थित सीएनएस अस्पताल गेट के बाहर एक मरीज एम्बुलेंस में ऑक्सीजन सपोर्ट पर दिखा. अस्पताल में 80 बेड हैं. ऑक्सीजन की कमी से 40 बेड पर ही मरीज भर्ती किए जा रहे हैं. अस्पताल का अपना ऑक्सीजन प्लांट है, जिससे सिर्फ रोजाना 30 से 35 सिलेंडर ऑक्सीजन का निर्माण हो रहा है. इसलिए सभी बेड पर मरीज भर्ती नहीं किए जा रहे हैं.
विद्या हॉस्पिटल
विद्या अस्पताल कोरोना मरीजों के लिए आरक्षित किया गया. यहां ऑक्सीजन की किल्लत बनी हुई है. मरीज अस्पताल के बाहर भर्ती की आस में एम्बुलेंस में तड़प रहे थे. कर्मचारी मरीज के तीमारदारों को ऑक्सीजन न होने की बात कहकर लौटा रहे थे. अस्पताल में 95 बेड हैं. 45 आइसोलेशन, 40 एचडीयू और 10 आईसीयू के बेड. हालात यह है कि आधे बेड ही रन हो रहे हैं. ऑक्सीजन की कमी से नए मरीज भर्ती नहीं किए जा रहे हैं.
राजधानी में कोरोना मरीजों के इलाज के लिए कागजी आकंडें गुलाबी हैं. यहां 47 कोविड अस्पताल बनाए गए हैं. इनमें कुल 5,478 बेड हैं. इसमें 2500 बेड आइसोलेशन के, 1904 बेड एचडीयू के, 1074 वेंटीलेटर बेड हैं। वहीं ऑक्सीजन की कमी से करीब 500 आईसीयू बेड पर भर्ती बंद है।
राजनाथ सिंह ने बेड और ऑक्सीजन सिलेंडर पहुंचाने का किया था वादा
लखनऊ के अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन सिलेंडर को लेकर मारामरी मची है. वहीं 19 अप्रैल को सांसद और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ऑक्सीजन की बड़ी खेप भेजने की बात कही थी. इसके अलावा शहर में डीआरडीओ की मदद से एक बड़ा अस्पताल तैयार करने का ऐलान किया था.
श्मशान पर चिताओं में जलते दिखे झूठे आंकड़े
राजधानी लखनऊ में लगातार हो रही मौतों पर सरकारी आंकड़ों में झोल है. कारण, श्मशान पर लाइन से जल रहीं चिताओं की लपटें कुछ और ही दास्तां बयां कर रही हैं. यदि पिछले दिनों पर नजर डालें तो 13 अप्रैल को सरकारी आंकड़ों में 18 लोगों की मौत बताई गई थी. जबकि श्मशान घाटों पर 173 डेड बॉडी का अंतिम संस्कार किया गया. वहीं 14 अप्रैल को सरकारी आंकड़ों में 14 लोगों की मौत बताई गई. जबकि श्मशान घाट पर 166 डेड बॉडी का अंतिम संस्कार किया गया.
श्मशान घाट पर लगातार बड़ी संख्या में आने वाली डेड बॉडी के सवाल पर नगर आयुक्त अजय द्विवेदी का कहना है कि औसतन प्रतिदिन नॉर्मल दिनों में 15 से 20 डेड बॉडी श्मशान घाटों पर आती थी, लेकिन कोरोना संक्रमण के बाद से ही लगातार श्मशान घाटों पर डेड बॉडी की संख्या बढ़ गई है. इसी को ध्यान में रखते हुए 90 से अधिक प्लेटफॉर्म भी बनाए गए, जिससे कि लोगों को अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करने के लिए लाइन न लगानी पड़े. नगर आयुक्त अजय द्विवेदी का कहना है कि श्मशान घाटों पर लकड़ियों की व्यवस्था आपूर्ति करने के लिए मजिस्ट्रेट को भी तैनात किया गया है, जिससे कि लोगों को समस्याओं का सामना ना करना पड़े.
संक्रमण का असर सिर्फ श्मशान घाटों पर ही नहीं है. इसका असर कब्रिस्तान पर भी पड़ा है और यही कारण है कि जिन कब्रिस्तान में प्रतिदिन पांच से छह लोगों को दफनाया जाता था. आज उन कब्रिस्तान में 60 से 70 लोगों को दफनाया जा रहा है. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए ऐशबाग कब्रिस्तान कमेटी के इमाम अब्दुल मतीन ने बताया कि राजधानी में छोटे बड़े मिलाकर कुल लगभग 100 कब्रिस्तान हैं और कोरोना महामारी में प्रतिदिन 60 से 70 डेड बॉडी को दफनाया जा रहा है.
कोरोना के गंभीर मरीजों को समय पर अस्पताल में शिफ्ट करने का प्रयास किया जाता है. हर रोज तमाम मरीज संक्रमित हो रहे हैं. इसको लेकर सेवाओं का विस्तार भी किया जा रहा है. ऑक्सीजन की उपलब्धता को लेकर भी प्रयास जारी हैं.