लखनऊ : चीन के हांगझोऊ शहर में एशियाई खेलों में भारतीय खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन के बाद अब पैरा एशियाई खिलाड़ी भारत दम दिखाने के लिए तैयार है. इन खिलाड़ियों में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की भी आंशिक दृष्टिबाधित खिलाड़ी गुलशन शामिल हैं. गुलशन की खेलों की यात्रा बिल्कुल भी आसान नहीं रही. उनका संघर्ष अद्भुत है. पिता कार ड्राइवर हैं और बेटी को शिखर तक पहुंचाने में भरपूर योगदान है. पढ़ाई के साथ ही खेलों में पसीना बहाकर गुलशन ने जो मुकाम हासिल किया है वह देश और प्रदेश की अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणा है. गुलशन को स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी नहीं मिली, लेकिन उन्होंने पढ़ाई करके स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी हासिल की और अब डिप्टी मैनेजर के पद पर तैनात हैं. पैरा एशियाई खेलों में चीन रवाना होने से पहले गुलशन ने "ईटीवी भारत" से बचपन से अब तक के सफर पर एक्सक्लूसिव बातचीत की. उन्होंने उम्मीद जताई कि चीन में भारत और उत्तर प्रदेश का नाम गोल्ड मेडल हासिल कर जरूर रौशन करूंगी. गुलशन एशिया में चौथी रैंक और विश्व में 14 वीं रैंक की महिला खिलाड़ी हैं.
इस बार मेडल की होड़ में :गुलशन बताती हैं कि 'यहां तक पहुंचने में काफी मेहनत करनी पड़ी है. पिछले दो साल से जूडो की लगातार प्रैक्टिस कर रही हूं. पिछले डेढ़ साल से मैं लखनऊ में रहकर प्रैक्टिस कर रही हूं. पूरी उम्मीद है कि इस बार हम मेडल की होड़ में हैं.'
'छोटी बहन को भी मैं कर रही हूं तैयार, वह भी जीतेगी मेडल' :मेरे घर में माता-पिता, दो भाई और दो बहनें हैं. मेरी जो छोटी बहन है वह एथलेटिक्स करती है. वह 1500 मीटर की लॉन्ग रेसर है. वह भी नेशनल मेडलिस्ट है. आगे जाकर पूरी उम्मीद है कि वह इंटरनेशनल मेडल करेगी. मैं उसको तैयार कर रही हूं. अभी वह सिर्फ 18 साल की है. दोनों भाई छोटे हैं वह पढ़ाई कर रहे हैं और माताजी गृहिणी हैं.'
'स्पोर्ट्स कोटे से नहीं एग्जाम क्रैक कर बनी डिप्टी मैनेजर' :गुलशन बताती हैं कि 'वर्तमान में वह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में डिप्टी मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं. मुझे जॉब स्पोर्ट्स कोटे से नहीं मिली. मैंने एक्जाम क्रैक किया है. दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और मिरांडा हाउस से ही मैंने मास्टर किया है. मैंने एसबीआई के पीओ का एग्जाम क्रैक किया. उसका प्री, मेंस और इंटरव्यू क्रैक करके यह जॉब हासिल की है.'