लखनऊः1975 का वो दौर. देश कभी नहीं भूल सकता. आपातकाल लागू हो चुका था. बड़े बड़े नेता जेलों में थे. तब छात्रों ने सरकारी विरोध आंदोलन की कमान संभाली. मूलायम सिंह, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी जैसी कई बड़े नाम इसी छात्र राजनीति से निकले. खैर, वर्तमान में उत्तर प्रदेश में राजनीति की इस नर्सरी पर रोक लगी है. यानी यहां के ज्यादातर राज्य विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनावों पर रोक लगा दी गई है.
वहीं, ETV Bharat की पड़ताल में सामने आया है कि विश्वविद्यालय प्रशासन से लेकर शासन और सत्ता में बैठे लोग ही छात्रसंघ बहाली का विरोध कर रहे हैं. चर्चा तो यह भी हैं कि राजनेता खुद नहीं चाहते कि नई पीढ़ी उनको टक्कर देने के लिए तैयार हो. जानकारों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणासी के सम्पूर्णानंद विश्वविद्यालय और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में बीते फरवरी और अप्रैल में चुनाव कराए गए थे. यहां एबीवीपी को एक भी सीट नहीं मिली थी.
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बता दें कि 2012 में समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने के बाद ही अखिलेश यादव ने छात्रसंघ बहाली के आदेश जारी किए थे, लेकिन राज्य विश्वविद्यालय से लेकर सत्ता में बैठे हुक्मरानों की बेरुखी के चलते यह प्रभावी रूप से लागू नहीं हो पाए. नतीजा, कहीं कोर्ट केस की आड़ लेकर तो कहीं कोई और कारण बताकर छात्रसंत्र चुनाव नहीं कराए गए.
एलयूः भूलने लगे छात्र, क्या होता है छात्रसंघ
लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव को करीब डेढ़ दशक गुजर चुका है. आखिरी छात्रसंघ चुनाव 2005 में हुआ था. 2012 में दोबारा चुनाव की प्रक्रिया शुरू की गई. तब एक छात्र हेमंत सिंह के कोर्ट जाने के चलते प्रक्रिया फंस गई. छात्र हेमंत सिंह ने याचिका दायर कर चुनाव लड़ने की अनुमति मांगी थी. इसी प्रकरण में कोर्ट ने 2012 में अंतरिम आदेश जारी करते हुए 15 अक्तूबर 2012 से होने वाले चुनावों पर रोक लगा दी थी. यह रोक लगी रही.
इसी को आधार बनाकर विश्वविद्यालय प्रशासन चुनाव से बचता रहा. दिसम्बर 2019 में इस याचिका को वापस लेने के बाद यह रोक स्वतः ही समाप्त हो गई लेकिन, अभी तक विश्वविद्यालय ने छात्रसंघ बहाली पर विचार नहीं किया है. छात्रों का आरोप है कि अगर छात्रसंघ लागू हुआ तो विश्वविद्यालय प्रशासन की मनमानी खत्म हो जाएगी. इसलिए वह बच रहे हैं.
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इविविः छात्रसंघ भंग कर बना रहे छात्र परिषद
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीते दो वर्षों से छात्र लगातार छात्रसंघ बहाली के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यहां 2005 से 2012 तक छात्र संघ चुनाव पर रोक लगी रही. इसके बाद 2012 से 2018 तक छात्र संघ चुनाव लगातार हुए. 2019 में छात्र संघ को भंग कर छात्र परिषद बनाया गया ,लेकिन परिषद के गठन के लिए उम्मीदवार नहीं मिले लिहाजा छात्र परिषद शून्य हो गया.
आगरा विविः 2017-18 में हुए थे आखिरी चुनाव