लखनऊ : प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath government of state) ने बेसिक और माध्यमिक शिक्षा में सुधार के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया है. अब बेसिक और माध्यमिक दोनों का मुखिया एक यानी महानिदेशक स्कूल शिक्षा हो गया है. इसमें संदेह नहीं कि सरकार की इस पहल का कुछ लाभ तो मिलेगा, लेकिन इससे शिक्षा में कितना सुधार होगा यह कहना कठिन है. एक दौर था, जब बेसिक और माध्यमिक शिक्षा के लिए सरकारी स्कूलों और कॉलेजों पर ही निर्भरता रहती थी, तब विद्यालयों में शिक्षा का स्तर भी अच्छा था, किंतु जैसे-जैसे निजी विद्यालय बढ़ते गए, शिक्षा के स्तर में गिरावट देखी जाने लगी.
प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों का एक मुखिया होने का सबसे बड़ा लाभ यह मिलेगा कि दोनों विभागों में तालमेल बेहतर होगा. महानिदेशक प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के निदेशकों की मदद से प्रशासनिक कार्यों पर नजर रखेंगे. इसके साथ ही नई शिक्षा नीति के अनुरूप बोर्ड परीक्षाओं में सुधार आदि के कार्यों को भी अंजाम दिया जा सकेगा. भर्ती और स्थानांतरण के अधिकार भी डीजी के पास ही होंगे. इससे अन्य दिक्कतों से छुटकारा मिल जाएगा. बावजूद इन बातों के यह कहना कठिन है कि इस व्यवस्था के लागू हो जाने के बाद शिक्षा के स्तर में उत्थान होगा. सरकार विद्यालयों में शिक्षक समय से पहुंचें, विद्यालयों का रखरखाव अच्छा हो, बच्चों को मध्यान्ह भोजन मिले, यूनिफॉर्म और अन्य सुविधाएं मिलती रहें, इस पर तो ध्यान देती है, लेकिन शिक्षा का स्तर कैसे सुधरे, इसके लिए सरकार के पास कोई नीति अभी तक नहीं है.
क्या सरकार की नई पहल ला सकेगी शिक्षा में सकारात्मक बदलाव
प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath government of state) ने बेसिक और माध्यमिक शिक्षा में सुधार के लिए एक मुखिया बनाया है. माना जा रहा है कि इस पहल का कुछ लाभ भी मिलेगा, लेकिन शिक्षा के स्तर पर क्या बदलाव होगा यह देखने वाली बात होगी. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण...
1980-90 के दशक में राजधानी के जुबली इंटर कॉलेज जैसे सरकारी विद्यालयों में दाखिले के लिए विधायक और मंत्रियों की सिफारिश लगती थी. आज ऐसे विद्यालय अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं. सरकार को उन कारणों की पड़ताल करनी होगी, जिनकी वजह से शिक्षा का स्तर दिनों दिन गिरता जा रहा है. यही नहीं शिक्षा का स्तर ऊपर उठाने के लिए शिक्षकों की जिम्मेदारी और जवाबदेही भी तय करनी होगी. इसके लिए बाकायदा एक रोडमैप बनाना होगा. निजी स्कूलों की पढ़ाई इस कदर महंगी हो चुकी है कि आम आदमी इन विद्यालयों में अपने बच्चों को पढ़ा नहीं सकता. मध्यम वर्गीय परिवार जरूर इसके लिए अपनी अन्य जरूरतों में कटौती कर बच्चों को निजी विद्यालयों में पढ़ाते हैं. यदि सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का स्तर सुधरे और शिक्षकों की जवाबदेही बने तो इन विद्यालयों के अच्छे दिन भी लौट सकते हैं. यदि महानिदेशक स्कूल शिक्षा यह करने में कामयाब रहे, तो निश्चित है सरकार की यह पहल रंग लाएगी अन्यथा दूसरे विकल्पों पर विचार करना होगा.
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