गोपाष्टमी पर हुआ गाय का पूजन, ये खास शख्स भी थे मौजूद
यूपी की राजधानी लखनऊ में गोपाष्टमी पर गाय का पूजन किया गया. इस दौरान गोपालकों को सम्मानित भी किया गया. महिलाओं ने भजन कीर्तन किए. मथुरा-वृन्दावन से आए कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए.
लखनऊ: गोपाष्टमी पर चौक की अवध गोशाला के प्रांगण में गाय का पूजन किया गया. इस अवसर पर गायों को हरा चारा देने के साथ-साथ उनकी पूजा भी की गई. भजन और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुए. उत्सव का प्रारंभ भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, कैबिनेट मंत्री ब्रजेश पाठक, अवध क्षेत्र के अध्यक्ष शेष नारायण मिश्रा, पार्टी उपाध्यक्ष संतोष सिंह और आयोजक अनुराग मिश्रा पार्षद ने किया.
गोपालकों का हुआ सम्मान
गोपूजन में गोपालकों को भी सम्मानित किया गया. पूजन के बाद स्वतंत्र देव सिंह ने लोगों से गायों की सेवा करने की अपील की. उन्होंने कहा कि गाय पावनता की पोषक है. हर घर की भाग्यविधाता है. गाय को पशु न समझें. गाय हर हिन्दू की माता है. महंत विशाल गौड़ और पंडित ईशान अवस्थी ने विधि विधान से पूजा कराई.
गायों को सजाया गया
रविवार सुबह गोसाज सज्जा प्रतियोगिता में लगभग 68 गायों ने भाग लिया. प्रतिभागियों का सम्मान साकेत शर्मा, मनोज गुप्ता, डॉ. उमंग खन्ना, मराठी समाज के अध्यक्ष श्री उमेश पाटिल, आनंद रस्तोगी, जगन्नाथ रथ यात्रा समिति के अनुराग दीक्षित और संजीव झिंगरन ने किया.
भजन और सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए
रविवार शाम के समय में गौशाला प्रांगण में महिलाओं ने भजन कीर्तन किया. मथुरा-वृन्दावन से आये हुए कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया. अंत में पुरस्कार देकर उनको सम्मानित किया गया .
मलिहाबाद में भी हुआ गो-पूजन
मलिहाबाद में गोपेश्वर गोशाला में भी गायों का पूजन किया गया. महर्षि गुरुकुलम् के बच्चों ने वेद मंत्रों से सुरभि यज्ञ किया. सप्त गो-परिक्रमा की गई. इसके अलावा गायों को हरा चारा खिलाकर पूजा की गई.
गोपाष्टमी की महत्ता
गोपाष्टमी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है. पौराणिक मान्यता है कि गोकुल में भगवान श्री कृष्ण कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से सप्तमी तक गाय, गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊंगली पर उठाए रहे थे. आठवें दिन जब इंद्र भगवान का अहंकार टूटा, तब उन्होंने क्षमा मांगी. कामधेनु माता ने भगवान का अभिषेक किया. तब भगवान श्री कृष्ण का एक नाम गोविन्द भी पड़ा.