लखनऊ :उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव की घोषणा हो चुकी है. चुनाव की घोषणा होने के साथ ही उन समस्याओं की ओर भी ध्यान जाना शुरू हो गया है, जो नगर निगम और निकाय से जुड़ी होती हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी की बात करें तो 1984 से लेकर 2023 तक गोमती नदी को स्वच्छ करने के नाम पर करीब 10 हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, मगर नतीजा यह है कि आज भी गोमती में डेढ़ दर्जन नाले सीधे गिर रहे हैं. सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के नाम पर तीन एसटीपी काम कर रहे हैं, मगर उनकी क्षमता इतनी नहीं है कि इन सभी नालों का पानी ट्रीट कर सकें. नतीजा यह है कि आज गोमती स्वच्छ नहीं है. पानी में स्नान और आचमन तो दूर गोमती के किनारे टहल भी नहीं सकते. पानी का डिसोल्वड ऑक्सीजन मानकों से कहीं कम है. इससे जलीय वनस्पति और जलीय जीवों पर संकट है.
गोमती नदी का वोट बैंक होता तो आज वह भी स्वच्छ होती, 10 हजार करोड़ हो चुके हैं खर्च - गोमती नदी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की लाइफ लाइन गोमती को स्वच्छ और निर्मल बनाने की मुहिम वर्षों से चल रही है. वर्ष 1984 से अबतक विभिन्न सरकारों ने करीब 10 हजार करोड़ रुपये खर्च कर दिए हैं, लेकिन गोमती नदी आज तक साफ नहीं हो सकी है.
अखिलेश यादव की सरकार ने हनुमान सेतु से लेकर ला मार्टिनियर कॉलेज तक दोनों ओर 16 किलोमीटर में घाटों पर रिवरफ्रंट विकसित किया था. लगभग साढे़ तीन साल में 14 सौ करोड़ रुपये का खर्च इस परियोजना पर किया गया था, मगर इस योजना के दूसरे हिस्से में गोमती को प्रदूषण मुक्त करने पर काम कभी नहीं किया गया. जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार 2017 में आई तब रिवरफ्रंट परियोजना की जांच सीबीआई से कराने का निर्णय लिया गया. इसके अलावा गोमती को प्रदूषण से बचाने के लिए जीएच कैनाल के मुहाने पर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण शुरू किया गया. पिछले करीब पांच साल में यह निर्माण 70 प्रतिशत तक भी नहीं पहुंचा है. इस घोटाले के मामले में सिंचाई विभाग के तत्कालीन अफसर अभी जेल में हैं. इन सबके बीच गोमती का प्रदूषण वैसी ही बना हुआ है. अब हैदर कैनाल पर ट्रीटमेंट प्लांट बनाया जा रहा है.