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सरकार को कृषि के ढांचागत विकास में करना होगा बड़ा निवेश: गिरि विकास अध्ययन संस्थान

किसानों की आय दोगुनी करने को लेकर 'गिरि विकास अध्ययन संस्थान' ने सरकार को फॉर्मूला सौंपा है. इसी सिलसिले में ईटीवी भारत ने संस्थान के निदेशक बी.के बाजपेई से खास बातचीत की.

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Published : May 9, 2020, 6:32 PM IST

Updated : May 10, 2020, 12:07 PM IST

ईटीवी भारत से बातचीत करते गिरि विकास अध्ययन संस्थान के निदेशक बी.के बाजपेई
ईटीवी भारत से बातचीत करते गिरि विकास अध्ययन संस्थान के निदेशक बी.के बाजपेई

लखनऊ: किसानों की आय दोगुनी करने का फॉर्मूला प्रदेश और केंद्र की सरकार को मिल गया. सरकार के निर्देश पर गिरि विकास अध्ययन संस्थान ने उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में किसानों की स्थिति का आकलन करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रदेश सरकार को सौंपी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए सरकार को कृषि के ढांचागत विकास में बड़ा निवेश करना होगा.

ईटीवी भारत से बातचीत करते गिरि विकास अध्ययन संस्थान के निदेशक बी.के बाजपेई

दरअसल, राजधानी लखनऊ स्थित गिरि विकास अध्ययन संस्थान को देश के सामाजिक आर्थिक अध्ययन का प्रमुख केंद्र माना जाता है. केंद्र और राज्य सरकार के लिए काम करने वाले संस्थान को पिछले दिनों सरकार ने किसानों की आर्थिक स्थिति और उनकी प्रतिमाह आय का आकलन करने का दायित्व सौंपा था.

संस्थान ने सरकार को सौंपी अध्ययन रिपोर्ट
गिरि विकास अध्ययन संस्थान के निदेशक बी.के बाजपेई से ईटीवी भारत ने विशेष बातचीत की. इस दौरान संस्थान के निदेशक बीके बाजपेई ने बताया कि प्रदेश सरकार को किसानों की मौजूदा आर्थिक आय के साथ ही उनकी आय दोगुनी करने के लिए अपनाए जाने वाले उपायों की एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी गई है. इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों के 15 हजार किसान परिवारों का सर्वे किया गया है.

किसानों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब
बी.के बाजपेई ने बताया कि सर्वे के अनुसार किसानों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है. अगर किसानों को कृषि जोत के आधार पर पांच वर्गों में बांटा जाए तो किसानों की सर्वाधिक आय 19,350 रुपये प्रतिमाह प्रति परिवार है, जबकि न्यूनतम प्रति परिवार प्रतिमाह आय 4,200 रुपये है. किसानों की औसत आय 7,234 रुपये प्रतिमाह प्रति परिवार के लगभग है. इसकी वजह किसानों की कृषि उत्पादन लागत अधिक होना है.

किसानों के पास निजी साधन नहीं
बी.के बाजपेई ने बताया कि जिन किसानों के पास सिंचाई के अपने साधन हैं, उनकी लागत कम आती है और आय अधिक हो जाती है, लेकिन प्रदेश में 80 प्रतिशत किसान लघु श्रेणी में हैं. ऐसे में उनके पास सिंचाई के निजी साधन नहीं हैं. वे लोग मृदा परीक्षण कराने की आवश्यकता नहीं महसूस करते. इससे खाद और कीटनाशक का ज्यादा उपयोग होता है और लागत बढ़ जाती है.

बी.के बाजपेई ने बताया कि छोटे किसानों को अपना उत्पाद सरकार के खरीद केंद्र या मंडी तक पहुंचाना भी मुश्किल है. ऐसे में वह खेत पर ही कम दाम देकर संतोष करने के लिए विवश हैं. इससे भी उनकी प्रतिमाह आय कम हो जाती है.

अध्ययन रिपोर्ट में सुझाव

  • कृषि क्षेत्र में सब्सिडी आधारित व्यवस्था के बजाय इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश सिस्टम लागू किया जाए.
  • नहर, वेयरहाउस, शीतगृह और स्थानीय स्तर पर मंडी का निर्माण किया जाए.
  • खेतों का मृदा परीक्षण अनिवार्य किया जाए.
  • सरकार इसे अपने स्तर से कराए.
  • हर खेत तक नहर या तालाब से पानी पहुंचे, जिससे किसान की सिंचाई लागत न्यूनतम हो.

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Last Updated : May 10, 2020, 12:07 PM IST

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